संजय चौधरी के लोमढ़ी जैसे दिमाग के आगे, चारों खाने चित्त हुए विरोधी!

संजय चौधरी के लोमढ़ी जैसे दिमाग के आगे, चारों खाने चित्त हुए विरोधी!

संजय चौधरी के लोमढ़ी जैसे दिमाग के आगे, चारों खाने चित्त हुए विरोधी!

-उपस्थित रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके एक तरह से जिला पंचायत सदस्यों ने अपने हाथ को काट लिया

-यही दांव खेलकर अध्यक्ष ने कहा कि बैठक सकुशल संपन्न हुआ, अब चाहे विरोधी सुप्रीम कोर्ट ही क्यों ना जाएं संजय चौधरी का कुछ नहीं होगा

-एक साजिश के तहत अध्यक्ष ने पहले सदस्यों से हस्ताक्षर करवाया, और जैसे ही हंगामा शुरु हुआ, अध्यक्ष यह कहते हुए बाहर निकल गए, कि बैठक संपन्न हो गया

-एक व्यक्ति ने 43 राजनीति के धुरंधरों कों ऐसी पटकनी दी कि सब देखते रह गए,पुतला फुंकना भी काम ना आया, इससे पहले भी अध्यक्ष यही दांव खेल चुके

-अब अगर बागी सदस्यों को अपनी इज्जत बचानी है, तो उनके सामने एक मात्र रास्ता अविष्वास प्रस्ताव लाने का रह गया

-इन्होंने ना सिर्फ नेताओं को धोखा दिया, बल्कि अनेक पत्रकार भी इनके झांसे में आ चुके

बस्ती। जिले के प्रथम नागरिक संजय चौधरी क्या चीज हैं, इसे जानने के लिए नेताओं को कई जन्म लेना पड़ेगा। इनके बारे में मीडिया बार-बार आगाह करती आ रही हैं, कि इन्हें सीधा और भोला समझने की भूल ना करें, जो व्यक्ति पूर्व सांसद सहित भाजपा के पांच विधायकों को धोखा और पटकनी दे सकता हैं, उसके सामने गिल्लम चौधरी जैसे अन्य लोग किस खेत की मूली है। इनके अतिकरीबियों का दावा हैं, कि अध्यक्ष को समझना किसी नेता के बस की बात नहीं है। बाहर से दिखने में भले ही चाहें यह कितने भी भोले और मासूम लगते हैं, लेकिन इनका दिमाग लोमढ़ी जैसा है। पिछले चार सालों से यह मानकर चल रहे थे, कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। इसी लिए इन्होंने जैसा चाहा वैसे किया, चिल्लाने वाले चिल्लाते रह गए, लेकिन यह मस्त हाथी की तरह यह आगे बढ़ते गए। इन्होंने कभी भी किसी की भी परवाह नहीं किया, और ना ही कोई इन्हें बेवकूफ ही बना पाया। यह लोगों की कमजोरी को हथियार बनाकर आगे बढ़ते गए। एक तरह से इन्होंने उन लोगों को सीखा दिया, कि कैसे पैसा कमाया जाता है? आप लोग इसी बात से अंदाजा लगा लीजिए कि इन्हें मुंह के बल गिराने के लिए पिछले चार सालों में विरोधियों ने ना जाने कितनी रणनीति बनाई, लेकिन हर बार इनकी चतुराई के आगे रणनीति फेल होती गई, इन्होंने ना सिर्फ अपने लोगों को धोखा दिया, बल्कि ना जाने कितने पत्रकारों को भी धोखा दिया, जो कहा, वही नहीं किया, जो व्यक्ति इनकी बातों में आया, उसी को धोखा मिला। अगर इन चार सालों में भाजपा के सांसद, पांच विधायक और 43 जिला पंचायत सदस्य इन्हें नहीं समझ पाए तो बाकी बचे एक साल में क्या समझेगें?


15 फरवरी 25 कीे बैठक के पहले ही इन्हें पता चल गया था, कि बैठक में हंगामा होने वाला है। भले ही बैठक में जूता चप्पल निकला, गालियों की बौझार हुई, चोर और बेईमान तक से नवाजा गया, लेकिन जब नतीजा निकला तो लोग भौचक्के रह गए। लोग इन्हें गाली देने में मस्त रहे और यह सभी सदस्यों से हस्ताक्षर करवाने में लगे रहें, क्यों कि इन्हें अच्छी तरह मालूम था, कि अगर सदस्यों ने उपस्थित रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिया तो माना जाएगा कि बैठक सकुशल संपन्न हुआ, जिसका सबूत बैठक में 34 सदस्यों का हस्ताक्षर करना रहा। जानकारों का कहना हैं, कि सदस्य अब भले ही चाहें सुप्रीम कोर्ट में चले जाए, लेकिन वह अध्यक्ष का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अगर यह लोग हस्ताक्षर ना किए होते तो संभावना बनी रहती, लेकिन सदस्यों ने हस्ताक्षर करके एक तरह से अपने हाथ को ही काट लिया। इससे पहले भी इसी तरह का एक मामला घटित हो चुका, उसके बाद भी अगर बागी सदस्यों ने कोई सबक नहीं लिया तो, गलती अध्यक्ष की नहीं बल्कि सदस्यों की मानी जाएगी। भले ही चाहें कुछ लोग इसके पीछे किसी और का हाथ मान रहे हैं, लेकिन अंत में जीत को अध्यक्ष की ही हुई। यह पहली बार नहीं हैं, जब अध्यक्ष को गालियों के बौझार का सामना करना पडा हैं, इससे पहले ना जाने कितनी बार इनका सामना चोर, बेईमान और धोखेबाज जैसे शब्दों से हो चुका है। देखा जाए तो सफल नेता वही हैं, जो गाली खाकर भी मलाई खाता रहे। जिला पंचायत अध्यक्ष को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इतिहास उन्हें माफ करेगा या नहीं? इन्हें तो उस समय भी कोई अफसोस नहीं हुआ, जब यह चिल्ला-चिल्लाकर मीडिया से अमित षाह और हरीश द्विवेदी को गालियां दे रहे थे। क्या कभी किसी ने यह सपने में भी सोचा था, कि जो व्यक्ति अमित शाह जैसे नेता को गाली दे सकता हैं, हरीश द्विवेदी को चोर और बेईमान कह सकता हैं, वह व्यक्ति एक दिन जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर बैठ भी सकता है। इन्हें कुर्सी पर बैठाना वाला और कोई नहीं बल्कि वही हरीश द्विवेदी हैं, जिसे इन्होंने गाली दिया था, चोर और बेईमान कहा था। सवाल उठ रहा हैं, कि क्या राजनीति इसी को कहते हैं? कि बड़े नेताओं को जितना अधिक गाली दोगें उतना बड़ा पद मिलेगा। जानकारों का कहना हैं, कि अगर गिल्लम चौधरी और उनकी बागी टीम को अपनी इज्जत बचानी है, तो अध्यक्ष के खिलाफ अविष्वास का प्रस्ताव लाना पड़ेगा। यही एक रास्ता, जिससे यह लोग क्षेत्र में मुंह दिखा पाएगें।

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