साहब का काल क्या आया, विक्रमजोत चौकी इंचार्ज गस खाकर गिर पड़े!

साहब का काल क्या आया, विक्रमजोत चौकी इंचार्ज गस खाकर गिर पड़े!

साहब का काल क्या आया, विक्रमजोत चौकी इंचार्ज गस खाकर गिर पड़े!

-आठ घंटे तक अवधेश सिंह नर्सिगं होम में चलता रहा रितेष कुमार सिंह का इलाज, ठीक नहीं हुए तो इन्हें अयोध्या रेफर करना पड़ा

-चौकी इंचार्ज ने अधिकारियों की इतनी खातिरदारी की यह अवधेष सिंह होटल का 45 हजार का बकाएदार हो गए, फिर भी इन्हें अस्पताल जाना पड़ा, साहब का झटका इतना जबरदस्त था

-होटल में हुए नाबालिग लड़की के साथ बदसलूकी और आरोपियों के द्वारा मारने पिटने के मामले में लापरवाही बरतने पर चौकी इंचार्ज साहब को नर्सिगं होम में एडमिट होना पड़ा, जिस समय फोन आया और इंचार्ज साहब गस खाकर गिरे उस समय यह चौकी पर कोैड़ा ताप रहे थे

-पांचों आरोपी हर्रैया के ग्राम अटवा के हैं, और यह होटल के कर्मियों के संपर्क में बराबर रहते हैं, इनमें एक पचवस का होटल कर्मी

-पुलिस होटल में चार बार पूछताछ के लिए जा चुकी लेकिन होटल का समुचित सहयोग ना मिलने के कारण हर बार वापस आना पड़ा, कभी सीसीटीवी फुटेज नहीं दिया, जो दिया वह कुछ अंश ही दिया, जिससे आरोपी पहचान में नहीें आ पा रहें

-पीड़ित लड़की को घटना स्थल पर भी पुलिस ले गई, कोर्ट में बयान देने को भी बुलाया, इस घटना के बाद हर कोई होटल प्रबंधन पर लानत भेज रहा

-खबर प्रकाशित होने के बाद होटल मालिक अपना जन्म दिन भव्यता से इस बार नहीं मना पाए

बस्ती। क्या कभी आपने यह सुना है कि बड़े-बड़े अपराधियों के छक्के छुड़ाने वाले विक्रमजोत चौकी इंचार्ज रितेश कुमार सिंह साहब के एक फोन पर गस खाकर गिर भी सकते है। फोन का झटका इतने जोर का था, कि इन्हें आठ घंटे तक अवधेश सिंह नर्सिगं होम में इलाज कराना पड़ा, उसके बाद भी जब ठीक नहीं हुए तो इन्हें अयोध्या रेफर करना पड़ा, अब यह ठीक है। जिस समय साहब का फोन आया और यह गस खाकर गिरे उस समय यह चौकी में ही कौड़ा ताप रहे थे। यह वही चौकी इंचार्ज साहब हैं, जिन पर अवधेश सिंह फेमिली होटल का लगभग 45 हजार बकाया हैं, इतने पैसे का इन्होंने खुद तो भोजन और जलपान किया नहीं होगा, बल्कि इन्होंने उन जैसे अधिकारियों को कराया होगा, जिसके एक फोन पर इन्हें एडमिट होना पड़ा। कहा भी जाता है, कि जिस तरह पुलिस वाले किसी के नहीं होते ठीक उसी तरह पुलिस वाले भी पुलिस के नहीं होतें, अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी खातिरदारी की सजा अस्पताल में एडमिट के रुप में चौकी इंचार्ज को ना मिलती। यह सजा इन्हें इस मिली क्यों कि इन्होंने होटल में हुए एक नाबालिग लड़की के माता-पिता के सामने बदसलूकी करने और विरोध करने पर माता-पिता को मारने पीटने के मामले में लापरवाही बरतने पर मिली। रितेश कुमार सिंह के स्थान पर अगर दूसरा भी चौकी इंचार्ज होता तो वह भी वही लापरवाही करता जो इन्होंने किया, क्यों कि जिस होटल का खाएग, खिलाएगें पीएगें/पिलाएगें, ठहरेगें/ठहराएगें और भुगतान नहीं करेगें तो लापरवाही तो करनी ही पड़ेगी। चूंकि अधिकांश पुलिस वालों को बिना भुगतान किए ही खाने और पीने की आदत पड़ी हैं, इस लिए जब कभी इन्हें जेब में हाथ डालना पड़ता तो इन्हें बहुत तकलीफ होती है। जिस चौकी पर होटल वालों का 45 हजार बकाया होगा, वह होटल चाहें जो भी करें, उसे पुलिस कैसे रोक पाएगी? सवाल तो पुलिस पर भी उठ रहा हैं, कहा जा रहा है, कि कैसे होटल वालों ने पुलिस को पूर्ण सहयोग करने से इंकार कर दिया, कैसे होटल वालों ने सीसीटीवी फुटेज के साथ छेड़छाड़ किया, और पुलिस को कुछ अशं ही फूटेज का उपलब्ध कराया। कहा भी जा रहा है, कि अगर पुलिस चाह जाए तो कोई होटल वाला फूटेज देने से मना नहीं कर सकता है, या फिर कुछ ही अंशं देगा। कानूनी रुप से भी कोई मना नहीं कर सकता। बताया जाता है, कि पांचों आरोपी हर्रैया के ग्राम अटवा के हैं, और यह होटल के कर्मियों के संपर्क में बराबर रहते हैं, इनमें एक पचवस का होटल कर्मी भी है। पुलिस होटल में चार बार पूछताछ के लिए जा चुकी लेकिन होटल का समुचित सहयोग ना मिलने के कारण हर बार वापस आना पड़ा। कभी सीसीटीवी फुटेज नहीं दिया, जो दिया वह कुछ अंश ही दिया, जिससे आरोपी पहचान में नहीें आ पा रहें। पीड़ित लड़की को घटना स्थल पर भी पुलिस ले गई, कोर्ट में बयान देने को भी बुलाया, इस घटना के बाद हर कोई होटल प्रबंधन के कुप्रबंधन को जिम्मेदार मान रहा हैं, और बुरा-भला कर रहा।

बार-बार कहा जा रहा है, कि अगर इतने बड़े होटल में नौ साल की लड़की को कोई नषे में धुत्त व्यक्ति भोजन वाले टेबुल पर आता है, लड़की को जबरदस्ती गुलाब जामुन देता, और जबरिया उसे बाहों में भर लेता और किस करके भाग जाता है, और जब माता-पिता लड़के को पकड़ते हैं, तो पांच लोग मिलकर मां-बाप को उस लड़की के सामने मारते पिटते हैं, जिसके सामने उसकी लड़की के साथ बदसलूकी की गई। हैरान करने वाली बात यह है, कि होटल के कर्मी बजाए मारने पिटने वालों को पकड़ने के उसे भागने में सहयोग करते हैं, सहयोग इस लिए करते हैं, क्यों कि आरोपी होटल के कर्मियों का करीबी है। इसका मतलब यह हुआ कि इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हुई होगी, चूंकि यह मामला मीडिया में आ गया, इस लिए सामने आ गया। खबर प्रकाषित होने के बाद होटल मालिक इस बार अपना जन्म दिन धूमधाम से नहीं मना पाए। पुलिस ने पांच जनवरी को लड़की के साथ मां-बाप को बुलाया था, ताकि कोर्ट में बयान करवाया जा सके, लेकिन किन्हीं कारण परिवार नहीं आ सका, छह जनवरी को फिर बुलाया गया। सवाल यह उठ रहा है, कि जब ओरोपी की पहचान ही सीसीटीवी फूटेज में नहीं हो रही है, तो पुलिस कार्रवाई किसके खिलाफ करेगी, इस मामले में होटल प्रबंधन को पुलिस को पूरा सहयोग करना चाहिए, ना कि अधूरा। कहते हैं, कि अगर थाने या चौकी पर कोई भी अधिकारी आता है, तो उनके खानपान और रहने की व्यवस्था करना चौकी इंचार्ज की जिम्मे रहता है। जाहिर सी बात हैं, कि चौकी इंचार्ज तो वेतन से साहबों की सेवा तो करेगें नहीं, कहां से करेगें और कैसे करेगें? यह लिखने की बात नहीं बल्कि समझने की है। यह भी सच है, कि जो होटल अधिकारियों और नेताओं की निःषुल्क सेवा करेगा तो वह बदले में कुछ ना कुछ तो लेगा ही। कहा भी जा रहा है, कि अगर चौकी इंचार्ज पीड़ित परिवार की मदद कर देते तो उन्हें गस खाकर गिरना नहीं पड़ता और ना ही अस्पताल में ही एडमिट होना पड़ता। पता नहीं बस्ती की पुलिस क्यों नहीं पीड़ितों की मदद करती और पता नहीं क्यों आरोपियों की मदद करती? बस्ती पुलिस की लापरवाही और असयोगपूर्ण रर्वैये के चलते पीड़ित न्यायालय का दरवाजा खटखटाते है। देखा जाए तो डेली दो-तीन मुकदमें न्यायालय के आदेश पर दर्ज हो रहे है।

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *