सीबीआई के हवाले हो सकता, करोड़ों के फर्जी धान/गेहूं खरीद की जांच?

सीबीआई के हवाले हो सकता, करोड़ों के फर्जी धान/गेहूं खरीद की जांच?

सीबीआई के हवाले हो सकता, करोड़ों के फर्जी धान/गेहूं खरीद की जांच?

-प्रधानमंत्री कल्याणकारी योजना जागरुकता मिशन के राष्टीय उपाध्यक्ष महन्थ गिरजेश दास के पत्र को संज्ञान में लेकर मुख्यमंत्री ने कमिशनर से मांगी रिपोर्ट 

-कमिशनर के मंागने पर महन्थजी ने सारे साक्ष्य बैंक स्टेटमेंट, फर्जी किसानों की सूची, एफआईआर की प्रति सहित अन्य उपलब्ध करा दिया

-पत्र में पीसीएफ के डीएस, एआर और डीआर को बताया गया फर्जीवाड़े का मास्टरमाइंड

-सबसे बड़ा दोषी एसडीएम को बताया गया, जिन्होंने एक-एक हजार खतौनी लेकर फर्जी सत्यापन कर दिया

-एआर आशीष कुमार श्रीवास्तव के बारे में कहा गया कि इन्होंने प्राइवेट व्यक्तियों को धान/गेहूं खरीद का प्रभारी बनाया, जो कि घोटाले का कारण बना

-कहा कि स्थानीय निवासी होने के बाद भी एआर का तबादला बार-बार बस्ती क्यों और कैसे हो जाता

-कहा गया कि बसडीला, सिसवारी मुगल, केशवापुर और रानीपुर केंद्रों पर पांच हजार क्ंिवटल से अधिक फर्जी किसानों से धान की39 खरीद हुई

बस्ती। मंडल में बड़े पैमाने पर हुए धान/गेहूं के फर्जी खरीद की जांच सीबीआई के हवाले करने की संभावना नजर आ रही है। प्रधानमंत्री कल्याणकारी योजना जागरुकता मिशन के राष्टीय उपाध्यक्ष महन्थ गिरजेश दास के पत्र को संज्ञान में लेकर मुख्यमंत्री ने जिस तरह कमिशनर से रिपोर्ट तलब किया हैं, उससे पता चलता है, कि इसकी जांच किसी बड़ी एजेंसी को दी जा सकती है। कमिशनर के द्वारा मांगे गए साक्ष्य को बैंक स्टेटमेंट, फर्जी किसानों की सूची और एफआईआर सहित अन्य उपलब्ध करा दिया। किसी अधिकारी के पास इस बात का जबाव नहीं हैं, कि गबन किए  गए धान के बदले क्यों प्रभारियों से पैसा जमा करवाया गया, क्यों नहीं धान के बदले चावल जमा करवाया गया, जबकि क्रय नीति में धान के बदले चावल हैं, पैसा नहीं? इसी मामले को लेकर पूरा विभाग फंसा हुआ है। यही एक ऐसा बिंदु हैं, जिसे लेकर सीबीआई को जांच सौंपी जा सकती है। मीडिया बार-बार अधिकारियों को यह सचेत करती रही है, धान के बदले पैसा जमा करवाकर गलत हो रहा हैं, और यही मामला बाद में जांच का विषय बन सकता है। अधिकारियों ने अपने आप को बचाने के लिए आनन-फानन में भ्रष्ट केंद्र प्रभारियों से लगभग 20 करोड़ मंडल में जमा करवा दिया, केंद्र प्रभारियों ने पैसा जमा करके एक तरह से अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मारी हैं, पैसा जमा करने के बाद भी यह लोग बच नहीं सकते, पैसा जमा करके एक तरह से इन लोगों ने अपराध को स्वीकार कर लिया। पुलिस से भले ही यह बच जाए, लेकिन सीबीआई या फिर एसटीएफ से नहीं बच सकते।

चूंकि खाद एवं रसद विभाग मुख्यमंत्री के पास हैं, और यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके विभाग की बदनामी हो, तभी तो लगभग चार माह बाद मुख्यमंत्री ने पत्र को संज्ञान में लिया। सात पन्ने की पोटली में महन्थजी ने धान/गेहूं खरीद से संबधित समस्त अधिकारियों की कलई को खोलकर रख दिया, डीएम, एडीएम, एसडीएम, डीआर, एआर, आरएम और डीएस सभी को चपेट में ले लिया है। कहा कि फर्जी खरीद का सबसे बड़ा कारण एसडीएम के द्वारा फर्जी खतौनी का एक-एक हजार लेकर सत्यापित करना रहा। यही कारण है, कि एसडीएम के खिलाफ विधिक कार्रवाई के साथ विभागीय कार्रवाई करने की मांग की गई है। एआर आशीष कुमार श्रीवास्तव और पीसीएफ के डीएस अमित कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि इन लोगों ने पैसे के लालच में पूरे जिले को फर्जी धान/गेहू खरीदने वाले एक रेैकेट के हवाले सेंटर कर कर दिया। दोनों ने मिलकर नामचीन सचिवों के कहने पर प्राइवेट व्यक्तियों को नियम विरुद्व सेंटर प्रभारी बना दिया, और यह लोग करोड़ों का गबन करके फरार हो गए। बसडीला, सिसवारी मुगल, केशवापुर और रानीपुर केंद्रों पर पांच हजार क्ंिवटल से अधिक फर्जी किसानों से धान की खरीद हुई, कहा कि अगर इन्हीं सेंटरों की जांच हो जाए तो फर्जीवाड़े का खुलासा हो सकता है। एआर पर निशाना साधते हुए कहा कि स्थानीय निवासी होने के बाद भी इनका तबादला कैसे और क्यों बस्ती हो जाता है। इनका बस्ती बार-बार तबादला होना यह बताता है, कि इन्हें बस्ती के सहकारिता विभाग के भ्रष्ट कहे जाने वाले सचिवों से कितना लगाव है। यह भी लिखा कि पीसीएफ के अधिकारियों के खिलाफ तो विधिक कार्रवाई से लेकर विभागीय कार्रवाई हो गई, लेकिन अभी तक एआर और डीआर के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हुई, दोषी होने के बाद भी कार्रवाई ना होना चर्चा का विषय बना हुआ हैं, अगर तबादला भी हो गया होता तो भी यह माना जाता कि चलो विभाग ने कुछ तो कार्रवाई किया, विभाग के द्वारा कार्रवाई ना करना यह साबित करता है, कि इस फर्जीवाड़े में विभाग के आला अधिकारी से लेकर मंत्री तक मिले हुए है। 

जिस तरह बिंदुवार फर्जीवाड़े की शिकायत आकड़ों के साथ में की गई, उससे पता चलता हैं, कि क्यों मुख्यमंत्री ने इसे संज्ञान में लिया। यह शिकायत राज्यपाल से भी की गई। वैसे इससे पहले भाजपा के राजेंद्रनाथ तिवारी ने मुख्यमंत्री से इसकी शिकायत की थी, लेकिन जिन पर आरोप लगाया गया था, उन्हीं को जांच अधिकारी बना दिया गया, फिर इसकी शिकायत की गई, अब इसकी जांच डिप्टी आरओ कर रहे है। इससे पहले कांग्रेस के बाबूराम सिंह सहित अन्य ने भी इस फर्जीवाड़े की षिकायत करते हुए मुख्यमंत्री से जांच कराने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की जा चुकी है। धान/गेहूं के फर्जीवाड़े की जितनी शिकायत साक्ष्य के साथ की गई, अगर उसकी पांच फीसद भी जांच हो जाती तो अब तक ना जाने कितने जेल में नजर आते है। कमिशनर और डीएम से भी मीडिया की ओर से साक्ष्य के साथ शिकायत किया गया, लेकिन लीपापोती कर दी गई, एक भी कार्रवाई ना तो मीडिया को दिखी औार ना षिकायतकतर्ता को ही पता चला। ऐसा लगता है, कि मानो सभी एक दूसरे को बचाने में लगे हुएं है। जो एफआईआर भी दर्ज हुआ, उसमें भी पुलिस ने लीपापोती कर दी। कहने का मतलब सभी धान/गेहूं खरीद के लूट का मजा ले रहे है। सिद्वार्थनगर के डीएम की तरह अगर बस्ती के डीएम भी इसकी उच्च स्तरीय जांच की सिफारिष कर देते तो परिणाम कुछ और होता। कमिशनर साहब की ओर से भी इस मामले में जो कार्रवाई की उम्मीद की जा रही थी, वह भी नहीं हुआ। पता नहीं अधिकारी इतने बड़े घोटाले को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे है? अब तक जितने भी शिकायतें की गई, उनमें सभी में यह कहा गया कि आखिर प्रभारी क्यों अपनी जेब से गबन का करोड़ों रुपया जमा कर रहे हैं, भुगतान तो उन्हें हुआ नहीं, भुगतान तो किसानों को हुआ, और अगर भुगतान किसानों को हुआ तो खरीद भी किसानों से ही की गई होगी। ऐसे में प्रभारियों के द्वारा जेब से पैसा जमा करना यह साबित करता हैं, कि उन्होंने फर्जीवाड़ा हुआ। फर्जी धान खरीदा गया, लेकिन ना जाने इतनी छोटी सी बात बड़े-बड़े अधिकारियों की समझ में क्यों नहीं आ रही है? यह सही है, कि अगर एआर, डीआर और पीसीएफ के डीएस और आरएम अपनी जिम्मेदारी को निभाते तो आज बस्ती मंडल की इतनी बदनामी ना होती, और ना करोड़ों रुपये का घोटाला ही होता। इसके बाद भी अगर एआर और डीआर के खिलॉफ कोई कार्रवाई नहीं होती, तो यह माना जाएगा कि सभी मिले हुएं है। पत्र में 2015 से 2024 तक के धान/गेहूं खरीद की जांच सीबीआई या एसटीएफ से कराने की मांग की गई।

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