रेडियोलाजिस्ट पांच, अल्टासाउंड सेंटर पांच सौ!

रेडियोलाजिस्ट पांच, अल्टासाउंड सेंटर पांच सौ!

रेडियोलाजिस्ट पांच, अल्टासाउंड सेंटर पांच सौ!

-ओझा डायग्नोस्टिक वाले तो सीटी स्कैन, एमआरआई और अल्टासाउंड तीनों करते हैं, और इनके यहां तीन से चार सौ मरीज लाइन लगाए रहते, क्या इनके रिपोर्ट की सत्यतता पर यकीन किया जा सकता

-एक अल्टासाउंड करने में कम से कम 10-15 मिनट लगना चाहिए, इस तरह डा. ओझा को सिर्फ अल्टासाउंड के लिए 60 घंटा चाहिए, क्या उनमें पास इतना समय, क्यों कि दिन और रात मिलकर 24 घंटा ही होता, ऐसे में रिपोर्ट पर अगुंली उठना लाजिमी, आखिर कौन उनके आलावा जांच कर रहा, अगर कर रहा तो क्या वह रेडियोलाजिस्ट है?  

-शहर में तो 90 फीसद पीजी और एमएस वाले सही करते हैं, लेकिन ग्रामीण में तो एक फीसद भी जांच रेडियोलाजिस्ट, पीजी या एमएस नहीं करते, जब अप्रशिक्षित लोग अल्टासाउंड करेगें तो रिपोर्ट कैसी होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता

-कुदरहा के अंकित अल्टासाउंड ने एक रिपोर्ट भेजा जिसमें गर्भवती महिला के गाल ब्लेडर को सही हालत में बताया, जबकि पीएचसी के डाक्टर उस महिला को दो माह पहले ही गाल ब्लेडर निकाल चुके थे, मालिक ने सरकारी डाक्टर का पैर पकड़ लिया, यह है, ग्रामीण क्षेत्रों और सीएचसी एवं पीएचसी के आसपास के अल्टासाउंड के रिपोर्ट का सच

-जब हर अल्टासाउंड वाले के हर माह डा. एके चौधरी दस हजार लेगें तो मरीज मरेगा भी और उसका इलाज भी गलत होगा, क्यों डाक्टर तो रिपोर्ट के आधार पर इलाज करता

-ग्रामीण क्षेत्र की गर्भवती महिलाओं को यह सलाह दी जा रही है, कि वह किसी भी हालत में ग्रामीण क्षेत्र के अल्टासाउंड में न जाए, नहीं गलत रिपोर्ट और गलत इलाज के कारण जान भी जा सकती

-ग्रामीण क्षेत्र के अल्टासाउंड में अधिकतर लिंग परीक्षण होता हैं, जिसके चलते भ्रूण हत्याएं हो रही है, और इस सबके लिए नोडल डा. एके चौधरी और सीएचसी के एमओआईसी को जिम्मेदार माना जा रहा

-रेडियोलाजिस्ट इस लिए लोग नहीं बन पाते क्यों कि उन्हें इसमें उनका दो से ढ़ाई करोड़ पढ़ाई में लगता

बस्ती। दुनिया का यह सबसे बड़ा सच है, कि बस्ती में ग्रामीण क्षेत्रों में 95 फीसद अल्टासाउंड का संचालन अप्रशिक्षित और छोला छाप डाक्टर कर रहे हैं, जिसके चलते गलत रिपोर्टिगं हो रही है, गलत इलाज हो रहा, गलत इलाज होने से मरीज मर रहे हैं, और उन पर इलाज का बोझ बढ़ रहा है। डाक्टर तो रिपोर्ट के आधार पर इलाज और आपरेशन करेगा, और जब रिपोर्ट ही गलत होगा तो आपरेशन भी गलत होगा और इलाज भी गलत होगा, जिसके चलते मरीजों की जान तक जा सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुदरहा का अंकित अल्टासाउंड सेंटर है। यहां पर एक गर्भवती महिला के पेट में दर्द हो रहा था, तो पीएचसी के डाक्टर ने अल्टासाउंड कराने की सलाह दी। महिला अंकित अल्टासाउंड चली गई, जहां पर रिपोर्ट आया कि महिला का गाल ब्लेडर सही तरीके से काम कर रहा, रिपोर्ट देख डाक्टर का माथा ठनका, क्यों कि डाक्टर ने दो माह पहले महिला का गाल ब्लेडर निकाल चुके थे, मालिक को बुलाया, मालिक ने डाक्टर के पैर पकड़ लिए। यह घटना बताने के पीछे रिपोर्टर का मकसद यह बताना है, कि अगर गाल ब्लेडर निकालने वाले स्थान पर कोई और डाक्टर होता तो महिला का क्या होता? यह आप लोग अच्छी तरह समझ सकते है। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि ऐसी जगह जांच कराने जाइए, जहां पर असली रेडियोजाजिस्ट हो, वरना बहुत कुछ नुकसान उठाने के लिए तैयार रहे। दिक्कत यह है कि जो असली रेडियोलाजिस्ट हैं, उनकी रिपोर्ट भी विष्वनीय इस लिए नहीं किया जा सकता, क्यों कि उनके यहां मरीजों की लाइन लगी है, और वह खुद न जांच करके किसी अप्रशिक्षित से जांच करवाते हैं, रिपोर्ट पर भले ही उनके हस्ताक्षर होते हैं, लेकिन जांच कोई और करता है, जबकि मरीज ने असली रेडियोलाजिस्ट जानकर पैसा दिया। कहने का मतलब जो सक्षम हैं, उसकी रिपोर्ट पर भी सवाल उठ रहें है। 10-15 लाख की मशीन लगाकर कोई रेडियोजाजिस्ट नहीं बन जाता है, रेडियोलाजिस्ट बनने के लिए दो से ढ़ाई करोड़ खर्च करना पड़ता है। गलत रिर्पोटिगं से सबसे बड़ा नुकसान मरीज और उसके परिजन का होता है, यही बात नकली जांच करने वाले लोगों को भी समझना होगा, और यह भी समझना होगा कि उनकी गलत रिपोर्ट से किसी मरीज की जान भी जा सकती है। इसी सबको देखते हुए सरकार ने लाइसेंस देने की प्रक्रिया को और जटिल बना दिया, अब लाइसेंस लेने से पहले रेडियोलाजिस्ट को डीएम और सीएमओ के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ेगा। कहने का मतलब अब तो रेडियोलाजिस्ट ही चाहिए। अब जरा ओझा डायग्नोस्टिक वाले के बारे में जान लीजिए। यहां पर सीटी स्कैन, एमआरआई और अल्टासाउंड तीनों डा. ओझा करते हैं, और इनके यहां तीन से चार सौ मरीज लाइन लगाए रहते, ऐसे में क्या इनके रिपोर्ट की सत्यतता पर यकीन किया जा सकता? एक अल्टासाउंड करने में कम से कम 10-15 मिनट लगना चाहिए, इस तरह डा. ओझा को सिर्फ अल्टासाउंड के लिए 60 घंटा चाहिए, क्या उनमें पास इतना समय है? क्यों कि दिन और रात मिलाकर 24 घंटा ही होता, ऐसे में रिपोर्ट पर अगुंली उठना लाजिमी, आखिर कौन उनके आलावा जांच कर रहा, अगर कर रहा तो क्या वह रेडियोलाजिस्ट है? कहने का मतलब नकली अल्टासाउंड वालों से न तो डा. एके चौधरी बचाएगें और न सीएचसी के एमओआईसी ही बचाएगें, मरीज को खुद बचना होगा, जागरुक होना पड़ेगा, असली और नकली रेडियोलाजिस्ट में फर्क समझना होगा।

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