रेडक्रास सोसायटी में हुआ लाखों का घोटाला

रेडक्रास सोसायटी में हुआ लाखों का घोटाला

रेडक्रास सोसायटी में हुआ लाखों का घोटाला

-सांसद ने कोरोना काल में 62 लाख  सांसद निधि से रेडक्रास सोसायटी को दिया था

-यह पैसा कहां खर्चा हुआ किसने खर्चा किया किसके कहने पर खर्च हुआ, पता नहीं

-आडिट में भी इतनी बड़ी रकम का हिसाब-किताब का ब्यौरा नहीं दिया

-सीएमओ कार्यालय और प्रशासन ने मिलकर धन का बंदरबांट कर लिया

-एक-एक लाख की किताबें किस गरीब बच्चों को खरीदकर बांटी गई, इसका भी कहीं पर जिक्र नहीं

-बिना कमेटी के अनुमोदन फर्नीचर, बुक वितरण, प्रशिक्षण और सैलरी के नाम पर निकाले गए, एक ही दिन के आडिट रिपोर्ट में एक लाख 96 हजार 672 का अंतर कैसे आया?

-रेडक्रास सोसायटी के सदस्य एवं एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह ने राज्यपाल और डिप्टी सीएम को पत्र लिखकर कनिष्ठ लिपिक हरेंद्र प्रसाद और तत्कालीन सीएमओ के खिलाफ जांच और कार्रवाई करने की मांग

-अभी तो दान के लाखों रुपये का खुलासा होना बाकी, जिसे लिपिक और सीएमओ ने मिलकर भोजन कर लिया

बस्ती। अगर रेडक्रास सोसायटी जैसी दुनिया की सबसे बड़ी मानव सेवा करने वाली संस्था में अधिकारी और बाबू मिलकर लाखों का गबन/घोटाला करते हैं, तो इस संस्था को कैसे कोई दान देगा? और कैसे इस संस्था और इसके जिम्मेदारों पर कोई विष्वास करेगा? दुनिया भर में पीड़ितों की मदद करके एक मिसाल कायम करने वाली इस संस्था को बस्ती के तत्कालीन सीएमओ कनिष्ठ लिपिक हरेंद्र प्रसाद ने मिलकर लाखों रुपये का गबन करके संस्था को कलंकित करने का काम किया है। भाजपा के सांसद हरीश द्विवेदी ने रेडक्रास सोसायटी को दिया ताकि कोई कोरोना प्रभावित व्यक्ति के इलाज और उनके खानपान में कोई कमी न रह जाए, लेकिन सांसदजी को क्या मालूम था, कि जो पैसा वह मानव सेवा के लिए दे रहे हैं, उसका भोजन सीएमओ और उनके कार्यालय के लिपिक हरेंद्र प्रसाद मिलकर कर लेगें। सांसद निधि का 62 लाख किस मद में और किस काम के लिए खर्च किया इसका कोई हिसाब-किताब न तो सोसायटी के पास हैं, और न आडिट में ही इसका जिक्र किया गया। इतनी बड़ी रकम का अगर हिसाब-किताब न मिले तो इसे गबन/घोटाला ही माना जाएगा। माननीयों ने भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि उनके पैसे का क्या हुआ, कहां-कहां खर्च हुआ और किसके कहने पर खर्च हुआ। अगर इतनी बड़ी हवा में खर्च कर दी जाएगी, तो रेडक्रास सोसायटी पर तो सवाल उठेगा ही। इसका खुलासा तब हुआ जब भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर भ्रष्टाचारियों पर हथौड़ा चलाने वाले रेडक्रास सोसायटी एवं एमएजलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह ने जनसूचना अधिकार के तहत  जानकारी मांगी।

राज्यपाल और रेडक्रास सोसायटी के प्रदेश अध्यक्ष एवं डिप्टी सीएम को लिखे पत्र में कहा कि बस्ती की शाखा 50 सालों से कार्यरत है। इसके खाते में अत्यधिक ध्न उपलब्ध है। पिछले तीन-चार सालों से सीएमओ एवं लिपिक हरेंद्र प्रसाद ने मिलकर मनमाने तरीके से फर्जी बिल बाउचर और फर्जी नोटशीट के सहारे करोड़ों का गबन किया। जिसका खुलासा आडिट रिपोर्ट से होता है। बिना कमेटी के अनुमोदन के फर्नीचर, बुक वितरण, प्रशिक्षण और सैलरी के नाम के नाम पर भारी रकम निकाले गए, एक ही दिन के आडिट रिपोर्ट में एक लाख 96 हजार 672 का अंतर कैसे आया? इससे बड़ा फर्जीवाड़े का और कोई सबूत नहीं हो सकता। 22-23 के आडिट रिपोर्ट में ओपनिगं बैलेंस 2971506 रुपया बताया गया, फिर इसी साल के आडिट रिपोर्ट का ओपनिगं बैलेंस 2801834 बताया गया, आखिर 169672 रुपये का अंतर हुआ कैसे? जबकि दोनों आडिट रिपोर्ट एक ही सीए की है। हैरान करने वाली बात यह है, मुख्यालय बार-बार आडिट रिपोर्ट मांग रहा है, लेकिन उसे उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। आडिट रिपोर्ट में हेल्थ एटीएम मशीन, फर्नीचर का तो जिक्र हैं, लेकिन कितने का खरीदा गया और कितनी मात्रा में खरीद की गई, इसका कहीं भी जिक्र नहीं है। कहा कि सीएमओ और लिपिक ने मिलकर रेडक्रास के धन को सरकारी कागजों में हेराफेरी करके बंदरंबाट कर लिया गया। सैलरी, जनरल खर्च, बैंक चार्ज, डोनेशन, यात्रा खर्च, मेडिकल खर्च एवं गरीब बच्चों के किताब वितरण के नाम पर खर्च किया। घोटाला करने वालों को अच्छी तरह मालूम हैं, कि इसका कोई सरकारी रिकार्ड नहीं होता, और न सरकारी आडिट ही होती है। इस लिए सभी ने मिलकर रेडक्रास सोसायटी के धन को लूटा। इसी लिए लिपिक हरेंद्र प्रसाद के निलंबन की मांग हरीश ने की है। ऐसा लगता है, कि मानो राज्यपाल और डिप्टी सीएम को भी रेडक्रास सोसायटी के धन से कोई लेना देना नहीं, अगर होता तो अब तक कार्रवाई हो गई होती। अभी तो उस लाखों रुपये के दान का खुलासा होना बाकी है, जिसे भी लिपिक और सीएमओ ने मिलकर लूट लिय

डा. वीके वर्मा भी हुए लिपिक के ठगी का शिकार

सिर्फ सांसद को ही सीएमओ और उनके बाबू हरेंद्र प्रसाद ने नहीं ठगा, बल्कि डा. वीेके वर्मा और एलके पांडेय भी हुए। तीन साल पहले डा. वीके वर्मा ने रेडक्रास सोसायटी का संरक्षक बनने के लिए सीएमओ कार्यालय में 25 हजार जमा किया था, इसी तरह एलके पांडैय ने भी उप संरक्षक बनने के लिए 12500 रुपया जमा किया इन दोनों को रसीद भी दी गई, लेकिन आज तक न तो संरक्षक और न उप संरक्षक का पत्र दोनों को मिला। जब मुख्यालय पता किया तो बताया गया कि जिला स्तर से राज्य का अंश 30 फीसद ही नहीं आया। इन दोनों का पैसा कहां गया किसने भोजन भोजन कर लिया? यह कोई बताने को तैयार नहीं है। अलबत्ता डा. वीके वर्मा को 25 हजार के बदले एक हजार का आजीवन सदस्य अवष्य बना दिया, इस तरह डा. वीके वर्मा दो बार आजीवन सदस्य बने पहली बार 1992 में और दूसरी बार 2022 में।

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