प्रधानजी अगर आप का बच्चा मरता तो क्या आप समझौता करते?

प्रधानजी अगर आप का बच्चा मरता तो क्या आप समझौता करते?

प्रधानजी अगर आप का बच्चा मरता तो क्या आप समझौता करते?

 -प्रधानजी भले ही आप असली प्रधान नहीं हैं, लेकिन समझौते पर तो आपने प्रधान ही लिखा, अगर आप प्रधान नहीं लिखते तो क्या समझौता नहीं माना जाता, आखिर रौनक उपाध्याय का भी हस्ताक्षर

-प्रधानजी जनता आपको भी उतना ही दोषी मान रही है, जितना केडी अस्पताल के डाक्टर्स को

-आपने उस डाक्टर का साथ दिया, जिसने आपके गांव के छोटू के बच्चे को मार डाला, आप की बहादुरी और मानवता तब मानी जाती, जब आप पीड़ित से यह कहते कि घबड़ाओ नहीं हम तुम्हारे साथ कानूनी लड़ाई का सारा खर्चा हम उठाएगें

-प्रधानजी अगर आप ऐसा करते तो आप परसा हज्जम ग्राम पंचायत के हीरो बन जाते, लेकिन आप ने जिस तरह पैसे के लिए समझौता करवाया उससे आप गांव के ही नहीं पूरे समाज के विलेन बन गएं

बस्ती। विकास खंड साउंघाट के ग्राम पंचायत परसा हज्जम के नकली प्रधान एवं सपा नेता रजवंत यादव पल भर में हीरो से विलेन बन गए। केडी अस्पताल के डाक्टर्स से मरे हुए बच्चे के पिता से समझौता करवाकर इन्होंने एक सामाजिक अपराध किया हैं, मानवता का गला घोंटा है। इनमें और डाक्टर में कोई फर्क नहीं रह गया। डाक्टर ने भी पैसे के लिए बच्चे को मारा और नकली प्रधान ने भी पैसे के लिए बच्चे को मारने वाले डाक्टर से समझौता करवाया। समझौता कराने का मतलब बच्चे की मौत को जायज ठहराना, क्यों कि इन्होंने उस समझौते वाले कागज पर हस्ताक्षर किया, जिसमें अस्पताल को मौत का कारण नहीं माना गया, बल्कि रास्ते में ले जाते समय मृत्यु होना बताया गया, प्रधानजी जब बच्चे की मौत रास्ते में हुई तो क्यों परिजन ने अस्पताल के बाहर धरना-प्रदर्शन किया, और चिल्ला-चिल्लाकर क्यों कहा कि अस्पताल वालों ने उसके बच्चे को मार डाला। प्रधानजी कैसे आपने सबकुछ जानते हुए अस्पताल को क्लीन चिट दिलवा दिया, जहां आप को पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में कानूनी मदद करनी चाहिए, वहीं आपने पैसे के लिए अस्पताल के उपर कोई भी कानूनी कार्रवाई न करने वाले कागज पर हस्ताक्षर कर दिया और करवा दिया। प्रधानजी बार-बार कहा जा रहा है, कि आपने पैसे के लिए मानवता की हत्या की है। आपने ऐसे डाक्टर को अभयदान दिलवाया, जिसने पैसे के लिए बच्चे की जान ली। प्रधानजी अगर यही घटना आपके बच्चे के साथ हुई होती तो क्या आप तब भी समझौता कर लेते? प्रधानजी आपने सामाजिक पाप किया है, इसकी खामियाजा कहीं न कहीं और किसी न किसी रुप में आपको या आपके परिवार को भुगतना पड़ सकता है। आप ने कोई छोटा मोटा सामाजिक अपराध नहीं किया और न मनरेगा में घोटाला ही किया, बल्कि आपने बहुत बड़ा सामाजिक अपराध किया। भले ही आप कानून के मुजरिम नहीं हैं, लेकिन समाज के मुजरिम अवष्य है। आप की बहादुरी और मानवता तब मानी जाती, जब आप पीड़ित से यह कहते कि घबड़ाओ नहीं हम तुम्हारे साथ हैं, कानूनी लड़ाई का सारा खर्चा हम उठाएगें, लेकिन आपने ऐसा नहीं न करके आरोपी को क्लीन चिट दिलवा दिया। आप अगर नकली प्रधान न होते तो आप पर कोई अगुंली नहीं उठाता, लेकिन गांव का मुखिया होने के बावजूद जिस तरह से आपने न्याय का खून करने में सहयोग किया, उससे आप गांव और समाज के विलेन बन गएं है। वैसे भी आप ग्राम पंचायत में सरकारी धन का गोलमाल करने में माहिर है। मनरेगा में सर्वाधिक धन खर्च करने के मामले में आपका भी नाम शामिल है। कम से कम इतने संवेदनशील मामले में तो ईमानदारी दिखाई होती। आपने समझौता करवाकर छोटू के न्याय पाने के सारे रास्ते को बंद करवा किया। क्या यही एक प्रधान का दायित्व है? प्रधानजी गांव वाले पूछ रहे हैं, आखिर इतने बड़े समझौता कराने का आप को कितनी कीमत मिली। आप भले ही न बताएं लेकिन सवाल आप का पीछा करता रहेगा। आप ने पूरे जिले में एक ऐसा मिसाल कायम किया, जो शायद ही कोई कर पाएगा, क्यों कि अन्य आप जैसे नहीं होगंे।

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