पीजी की तैयारी के नाम पर फरार हो गए 10 जेआर

पीजी की तैयारी के नाम पर फरार हो गए 10 जेआर

पीजी की तैयारी के नाम पर फरार हो गए 10 जेआर

-मानसिक रोग, नेत्र, मेडिसिन, गाइनी जैसे विभाग के एमबीबीएस के जूनियर रेजीटेंड बिना बताए भाग गए, भागने वालों में एक पत्रकार की पुत्री भी शामिल

-यह लोग चाहते थे, कि मेडिकल कालेज में उन्हें ऐसी जगह लगा दिया, जहां पर उन्हें काम न करना पड़े ताकि वह घर बैठे पीजी की तैयारी कर सके

-इन लोगों के फरार होने से मेडिकल कालेज की पूरी व्यवस्था चौपट हो गई, यह जितने दिन भी गायब रहेगी नौकरी उतना दो साल कर सेवा में बढ़ा दिया जाएगा

-नियमानुसार अगर यह लोग दो साल तक मेडिकल कालेज में नहीं रहना चाहती तो इन्हें 25 लाख हर्जाने के रुप में जमा करना पड़ा, क्यों कि सरकार इनकी पढ़ाई पर 20 लाख खर्च करती, इसी तरह अगर कोई एमडी एमएस करने के बाद बांड भरता है, और दो साल की सेवा से मुक्त होना चाहता है, उसे एक करोड़ देना पड़ेगा

-अगर किसी का सेलेक्षन सरकारी कालेज में पीजी पर हो गया तो यह तत्काल मेडिकल कालेज से जा सकते

-अब सरकार ने सरकारी कालेजों से निकले एमबीबीएस के बच्चों को दो साल तक ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी और पीएचसी में नौकरी करनी पड़ेगी, इसके लिए बाकायदा बांड भराया जाता, अगर कोई बांड का पालन नहीं करना चाहता तो उसे 20 लाख देना होगा, तभी यह दो साल के बंधन से मुक्त हो सकतें

बस्ती। पीजी करने की चाहत में एमबीबीएस के पासआउट लड़के और लड़कियां मेडिकल कालेज से बिना कोई सूचना दिए फरार हो जा रहे है। ऐसे लगभग 10 जेआर हैं, जो मेडिकल कालेज छोड़ घर में पीजी की तैयारी कर रहे है। इनके मेडिकल कालेज छोड़ कर चले जाने से मेडिकल कालेज की व्यवस्था ही चौपट हो गई, चूंकि प्रिंसिपल साहब इन बच्चों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते और न ही कालेज से निकाल ही सकते, इसी लिए यह लोग मनमानी करना चाहते है। मानसिक रोग, नेत्र, मेडिसिन, गाइनी जैसे विभाग के एमबीबीएस के जूनियर रेजीटेंड बिना बताए फरार गए, फरार होने वालों में एक पत्रकार की पुत्री भी शामिल है। फरार होने वाले चाहते थे, कि मेडिकल कालेज में उन्हें ऐसी जगह लगा दिया, जहां पर उन्हें काम न करना पड़े ताकि वह घर बैठे पीजी की तैयारी कर सके, और वेतन भी मिलता रहे। जब इन लोगों की मंशा पूरी नहीं हुई तो बिना कोई सूचना दिए फरार हो गए। नियमानुसार अगर यह लोग दो साल तक मेडिकल कालेज में नहीं रहना चाहते/चाहती तो इन्हें 20 लाख हर्जाने के रुप में जमा करना पड़ेगा, क्यों कि सरकार इनकी पढ़ाई पर 20 लाख खर्च करती, इसी तरह अगर कोई एमडी एमएस करने के बाद बांड भरता है, और दो साल की सेवा से मुक्त होना चाहता है, तो उसे एक करोड़ देना पड़ेगा। लेकिन अगर किसी का सेलेक्षन सरकारी कालेज में पीजी पर हो गया तो वह तत्काल मेडिकल कालेज से जा सकता है। अब सरकार ने सरकारी कालेजों से निकले एमबीबीएस के बच्चों को दो साल तक ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी और पीएचसी में नौकरी करने के लिए बाध्य कर दिया है। इसके लिए बाकायदा बांड भराया जाता, अगर कोई बांड का पालन नहीं करना चाहता तो उसे 20 लाख देना होगा, तभी यह दो साल के बंधन से मुक्त हो सकेगें। काउंसिलिगं के बाद यह लोग दो साल की सेवा देने के लिए मेडिकल कालेज आते हैं, ताकि कुछ सीख सके। जो खबरें छनकर आ रही है, अगर उसे सच माना जाए तो जो पैसा कमाने का काम मेडिकल कालेज के डाक्टर करते थे, वही काम जेआर भी करने लगें है। यह भी बाहर अपनी सेवाएं देने लगें। डाक्टरों की तरह इन्हें भी अनैतिक रुप से पैसा कमाने का चस्का लग गया। जबकि इनकी अभी तो सीखने की उम्र है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि यह आगे चलकर क्या करेगें? चूंकि दो साल तक प्रिसिपल साहब इन्हें निकाल नहीं सकते हैं, इस लिए यह लोग मनमानी कर रहे है। पैसा कमाने के चक्कर में अभी से ही अपना ईमान और धर्म को बेच दे रहे है। मेडिकल कालेज के डाक्टरों ने कैली अस्पताल को इतना गंदा कर दिया है, कि उस गंदगी को साफ करने में प्रिंसिपल साहब को सालों लग जाएगें, किसी तरह कैली को पीएमएस वाले डाक्टरों से मुक्त कराया, अब फैकल्टी के डाक्टरों से मुक्त कराना होगा। प्रिंसिपल के पहल से पैथालाजी की गंदगी किसी तरह दूर हुई। पहले जांच के नाम पर मशीन को ही एरर कर दिया जाता था, और इच्छित पैथालाजी में मरीजों को जांच के लिए भेजा जाता था, लेकिन अब प्रिसिंपल ने यहां पर 24 घंटे की सेवा को बहाल कर दिया, क्यों कि लालची लोग रात का बहाना बनाकर मरीज को बाहर भेज देते थें, नई व्यवस्था के तहत अब पैथालाजी की रिपोर्ट में डाक्टर के हस्ताक्षर होगें, डाक्टर 24 घंटा पैथालाजी में तैनात रहेगें। बाहर वाले को बुलाकर सेम्पुलिगं करवा देते थे। इसी लिए अब एमरजेंसी लैब चालू किया गया, जो 24 घंटा अपनी सेवा देगा। इसी तरह नई व्यवस्था के तहत सीसी कैमरे लगाए गए है। जिसकी जांच की कोई आवष्यकता नहीं होती थी, उसे भी ओझा डायनानिस्ट में भेज दिया जाता था। एमरजेंसी में हर्ट की प्रोप्राव जांच जो 15 हजार में बाहर से करवाते थे अब वह अस्पताल में ही 24 घंटे होने लगी। प्रिसिपल साहब का कहना है, कि मेडिकल कालेज फैकल्टी की कमी से जूझ रहा है।

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