एक ने गौरा में महल खड़ा किया तो दूसरा दसिया में खड़ा कर रहा!

एक ने गौरा में महल खड़ा किया तो दूसरा दसिया में खड़ा कर रहा!

एक ने गौरा में महल खड़ा किया तो दूसरा दसिया में खड़ा कर रहा!

-पहले सरकारी धन से चुकाया करोड़ों का कर्ज, उसके बाद होटल को सूदखोरों से छुड़ाया, और अब महल खड़ा कर रहें

-यह हैं, एक गरीब जिला पंचायत अध्यक्ष का सच, जिन्होंने केजरीवाल की तरह पिछले चार सालों में लगभग 50 करोड़ कमाया

-जिन सदस्यों के बदौलत साम्राज्य खड़ा किया, उन्हें चार सालों से लालीपाप ही देते आ रहे, कभी किसी को दो लाख नकद दे दिया तो कभी किसी को तीन लाख, अंतिम बार पांच-पांच लाख में सदस्य बिके थे, तब जाकर बैठक का कोरम पूरा हुआ

-यह पहले ऐसे जिले के प्रथम नागरिक हैं, जो कार्यालय के कमीशन में से भी पांच फीसद बखरा लेते रहे, यानि इनका बखरा बढ़कर 25 फीसद तक पहुंच गया

-इनके दो वसूली अमीन बाबू हैं, जिन पर यह बहुत भरोसा करते, इनमें राजेंद्र चौधरी का काम ठेकेदारों से 25 फीसद बखरा वसूलना और दूसरे ओम प्रकाश का काम कार्यालय का 21 फीसद बखरा कलेक्ट करना

-पिछले लगभग चार सालों में लगभग दो सौ करोड़ का टेंडर निकल चुका, इस तरह अध्यक्ष के खाते में 50 करोड़ आया, अभी भी इनके खाते में लगभग 13 करोड़ आने बाकी

-बनकटी ब्लॉक की तरह जिला पंचायत अध्यक्ष भी 50 करोड़ के क्लब में शामिल हो गए, यह वह धन है, जो ईमानदारी से मिला, अगर किसी को भी इतने कम समय में इतना पैसा मिल जाए तो वह पागल हो जाएगा

-गिल्लम चौधरी भी कम नहीं हैं, इन्होंने भी चुनाव में लगाए लगभग ढाई करोड़ की वसूली अध्यक्ष से की, यह वसूली तब हुई जब गिल्लम चौधरी, जिला पंचायत सदस्य संघ के संरक्षक बने थे

-सबसे अधिक घाटे में जिला पंचायत सदस्य ही रहे, यह ना तो ठीक से विरोध कर पाए और ना ठीक से अपना हिस्सा ही ले पाए

बस्ती। एक नेता ने गौरा में महल खड़ा किया तो दूसरा दसिया में खड़ा कर रहा है। यही हैं, मोदी की तरह जिले के गरीब कहे जाने वाले नेताओं का सच। भले ही इन पर मोदी की तरह दस लाख का शूट पहनने का आरोप ना लग रहा हो, लेकिन जिले को लूटने का आरोप जरुर लग रहा है। यहां के नेताओं की नजर शूट बूट पर नहीं रहती, बल्कि इनकी नजर अधिक से अधिक चल और अचल संपत्ति अर्जित करने पर रहती है। इनका सारा ध्यान सात पुष्तों के लिए जुगाड़ करके जाने पर रहती है। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर नेता ही क्यों महल खड़ा कर रहे हैं? क्यों इनका ही बैंक बैलेंस बढ़ रहा? क्यों नहीं पार्टी का कार्यकर्त्ता मकान खड़ा कर पा रहा है? और क्यों नहीं कार्यकर्त्ता का बैंक बेलेंस बढ़ रहा। यह भी सवाल उठ रहा है, कि आखिर कार्यकर्त्ताओं को कब महल खड़ा करने का मौका मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं? क्यों मुठठी भर नेता ही महल खड़ा कर रहें, और बैंक बैलेंस बढ़ा रहे है। जिनकी बदौलत नेता महल खड़ा कर रहे हैं, उनके पास रहने को पक्का मकान तक नहीं है। इनके बच्चे आर्थिक अभाव में अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पा रहे है। बैंक बैंलेंस होना तो बहुत दूर की बात है। यह जिले के उन नेताओं का सच हैं, जो राजनीति में आने या पद पाने से पहले किसी और की मेहरबानी से जीवन व्यतीत कर रहे थे, दूसरे के घर में रहते थे, भोजन करते थे, और उन्हीं का दिया कुर्ता पैजामा पहनते थे, और आज वही लोग उन लोगों को आखें दिखा रहे हैं, जिनकी बदौलत यह लोग यहां तक पहुंचें है।

जिले के लोगों ने नेताओं के इतने बदलते रगं देखें हैं, कि अब उनका विष्वास ही नेताओं पर से उठ गया। आज जो नेता महल खड़ा कर रहे हैं, वह उन्हीं लोगों को भूल गए, जिनकी बदौलत आज वह महल बना रहे है। पिछले दस सालों में जिले के नेताओं ने जितनी चल और अचल संपत्ति बनाई, महल खड़ा किया, उतना कोई अरबपति कारोबारी नहीं बना पाया होगा। इसी लिए आजकल हर कोई नेता बनना और पद पाना चाह रहा हैं, कोई कार्यकर्त्ता नहीं बनना चाहता। रही बात जिले के प्रथम नागरिक के तरक्की करने और दसिया में महल खड़ा करने की तो इन्होंने मौके का खूब फायदा उठाया। अपने लाभ के लिए इन्होंने इतने लोगों को धोखा दिया होगा, कि इन्हें संख्या का पता ही नहीं होगा। लोग अपने पूरे जीवन में एक दो लोगों को धोखा दिए होगें, लेकिन संजय चौधरी के बारे में इनके लोगों का कहना है, कि आज यह जिस मकाम पर हैं, वह धोखेबाजी के चलते ही है। इनके लोगों का कहना हैं, कि भले ही आज इनके पास अवैध तरीके से कमाए गए दौलत का भंडार हैं, लेकिन इनके पास शायद ही कोई ऐसा अपना होगा, जिस पर यह भरोसा करते होगें, क्यों कि इनके बारे में जिला पंचायत सदस्य बार-बार यह कहते रहे हैं, कि ऐसा कोई नहीं होगा, जिसे इन्होंने ना ठगा/धोखा दिया होगा। आज जो इनके अपने सदन में गाली दे रहे हैं, और साथ छोड़कर चले गए, वह सिर्फ और सिर्फ इनके धोखेबाजी के कारण गएं है। बहरहाल, जिन नेताओं का ईमान और धर्म ही पैसा होता हैं, उनका कोई सगा नहीं होता। ऐसे लोगों के इर्द गिर्द वही लोग रहते हैं, जैसा उनका नेता होता है, यानि मतलब परस्त लोग।

अब हम आपको जिले के प्रथम नागरिक के तरक्की का राज बताने जा रहे है। इनकी तरक्की में वैसे दो एएमए का हाथ रहा हैं, लेकिन सबसे अधिक योगदान राजेंद्र चौधरी और ओमप्रकाश नामक बाबू का रहा। कहा जाता है, कि यही दोनों इनके सबसे बड़े राजदार है। इनमें पहले स्थान पर राजेंद्र चौधरी का नाम आता हैं, इनकी जिम्मेदारी ठेकेदारों से अध्यक्ष को मिलने वाले 25 फीसद बखरे को एकत्रित करके पहुंचाना। यह इतने विष्वासपात्र हैं, कि अगर किसी को ठेका देना या फिर भुगतान करना होता है, तो उसे इनसे मिलने को कहा जाता है। अध्यक्ष सीधे एक रुपया भी नहीं लेते। दूसरे स्थान पर ओमप्रकाश आते हैं, इनका काम ठेकेदारों से कार्यालय का 21 फीसद बखरा एकत्रित करना है। जिला पंचायत सदस्यों का कहना हैं, कि प्रदेश के यह पहले ऐसे अध्यक्ष होगें जो कार्यालय के कमीशन में से भी पांच फीसद लेते है। यह हैं, एक गरीब जिला पंचायत अध्यक्ष का सच, जिन्होंने केजरीवाल की तरह पिछले चार सालों में लगभग 50 करोड़ कमाया। पहले इन्होने सरकारी धन लूट कर  करोड़ों का कर्ज चुकाया, उसके बाद होटल को सूदखोरों से छुड़ाया, और अब महल खड़ा कर रहें।


बनकटी ब्लॉक की तरह इनका नाम भी 50 करोड़ के क्लब में जुड़ गया। अभी इन्हें 13 करोड़ से अधिक का बखरा मिलना बाकी। यानि यह जब जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर से उतरेगें तो यह अपने साथ जिला पंचायत से लगभग 60 करोड़ ले जाएगें, इतनी कमाई तो किसी सांसद की भी नहीं होगी। जिन सदस्यों के बदौलत इन्होंने साम्राज्य खड़ा किया, उन्हें यह चार सालों से लालीपाप ही देते आ रहे, कभी किसी को दो लाख नकद दे दिया तो कभी किसी को तीन लाख, अंतिम बार पांच-पांच लाख में सदस्य बिके थे, तब जाकर बैठक का कोरम पूरा हुआ। पिछले लगभग चार सालों में लगभग दो सौ करोड़ का टेंडर निकल चुका, इस तरह अध्यक्ष के खाते में 50 करोड़ आया, अभी भी इनके खाते में लगभग 13 करोड़ आने बाकी, अगर किसी भी गरीब कहे जाने वाले अध्यक्ष के पास इतना पैसा आ जाएगा, तो वह पागल ही हो जाएगा, इसी दौलत ने इन्हें अपनों से दूर कर दिया। कहा जाता हैं, कि अगर आज यह पूर्व सांसद के होकर रहते तो किसी की हिम्मत नहीं पड़तील कि सदन में इनका अपमान करता और सड़क पर इनका पुतला जलाता है। फिर इन्हें सपा के सांसद और विधायकों की भी जरुरत नहीं पड़ती। प्रदेश के यह पहले ऐसे जिला पंचायत अध्यक्ष होगें जिनका पुतला विपक्ष पार्टी के लोगों ने नहीं बल्कि भाजपा के नेता के समर्थकों ने कप्तानगंज में संजय चौधरी मुर्दाबाद और गिल्लम चौधरी जिंदाबाद नारे के साथ जलाया। वैसे गिल्लम चौधरी भी कम नहीं हैं, इन्होंने भी चुनाव में लगाए लगभग ढाई करोड़ की वसूली अध्यक्ष से की, यह वसूली तब हुई, जब गिल्लम चौधरी, जिला पंचायत सदस्य संघ के संरक्षक बने थे। कहा जाता हैं, कि अगर आज अध्यक्ष इतना धनवान हुए हैं, तो उसमें गिल्लम चौधरी का बहुत बड़ा हाथ है। अगर यह चार साल तक खामोश ना रहते और अपने हित के लिए विरोध ना करते तो आज जिला पंचायत की ऐसी स्थित ना होती, और ना जिला पंचायत लूट का अडडा ही बनता। देखा जाए तो सबसे अधिक घाटे में जिला पंचायत सदस्य ही रहे, यह ना तो ठीक से विरोध कर पाए और ना ही इन्हें अपना हिस्सा ही मिला। यह लोग पांच लाख तक ही सीमित रहें, और इनके नाम पर लोग महल खड़ा कर रहे है। जो 50 लाख का काम भी मिलना था, वह भी नहीं मिला। यानि यहां पर भी इन्हें जो इनका दस-दस लाख का हिस्सा मिलना था, वह भी चला गया। यह लोग ना तो क्षेत्र का विकास ही करवा पाए और ना बखरा ही ले पाए। सजय चौधरी और गिल्लम चौधरी ने तो चुनाव खर्चा भी निकाल लिया, लेकिन सदस्य लोग वह भी नहीं कर पाएं।

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