नेताओं के ज्ञापन और नारेबाजी की कीमत चार लाख

नेताओं के ज्ञापन और नारेबाजी की कीमत चार लाख

नेताओं के ज्ञापन और नारेबाजी की कीमत चार लाख

-पहले लड़ाई फिर सौदेबाजी, यही है नेताओं का सच, यह सच हैं, उन रतजगा करने वाले सामाजिक कार्यकत्ताओं का जिन्हें इस तरह के अवसर की तलाश रहती, अवसर मिला नहीं कि कैष करने में जग गए

-आखिर यह ऐसा करें क्यों नहीं, आखिर यह भी तो बेरोजगार की श्रेणी में आते, पार्टी और संगठन तो इन्हें वेतन देती नहीं, इस लिए यह घटनाओं से अवसर तलाश कर पेट का गडढ़ा भरने लगते

-पिछले दिनों प्राइवेट नर्सिगं होम के डाक्टरों की लापरवाही से मरीजों के मरने की जो घटनाएं हुई, उससे तमाम कथित नेताओं की आर्थिक स्थित सुदृढ़ हो गई, चार पहिया वाहनों से चलने लगे

-यह लोग जिस परिवार को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ते उन्हें यह तक पता पहीं होता कि कथित नेताओं ने उनके बेटे की मौत का सौदा भी कर लिया

-सौदा भी हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होता, और इसके लिए पूरी तरह उस डाक्टर को दोशी माना जाता है, जो नेताओं को भ्रष्टाचार करने का मौका देते

-जिले के लोग लाइफ लाइन और जेके अस्पतालों की घटनाओं में नेताओं के सच से रुबरु हो चुके, एक तरह से इन घटनाओं ने कथित नेताओं को नंगा कर दिया, भले ही यह लाख सफाई दे, लेकिन जनता सबकुछ देख और समझ रही

-सोशल मीडिया पर लोग खुलकर सौदेबाजी करने वाले कथित नेताओं को लेकर कमेंट कर रहे हैं, चोर और बेईमान तक की संज्ञा दे रहें

-एसके गौड़ वाले मामले में तो लंबी सौदेबाजी हुई थी, लेकिन डाक्टर के कंजूसी वाले नेचर के चलते बड़ा हाथ मारने की मंशा धरी की धरी रह गई, बात शुरु हुई थी, 25-50 लाख से लेकिन खत्म हुई चार-पांच लाख

-एक ज्ञापन की कीमत अगर लाखों में होती है, तो कौन ऐसा बेवकूफ नेता होगा जो न्याय दिलाने के नाम पर ज्ञापन नहीं देगा

बस्ती। आज हम आपको उन नेताओं के ज्ञापन और नारेबाजी की कीमत के सच को बताने जा रहे है, जो अवसर की तलाश में रहते है। ऐसे लोग एक ही झटके में लाखों के मालिक हो जाते है। ज्ञापन देते-देते और नारेबाजी करते-करते यह चार पहिया वाहनों से चलने लगते है। आप भी सोच रहे होगें कि भाई ज्ञापन और नारेबाजी की भी कहीं कीमत होती है। जीहां होती। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि एक-एक ज्ञापन और नारेबाजी की कीमत लाखों में होती है। यह कीमत उन रतजगा नेताओं की है, जो किसी पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए पहले डीएम और कमिष्नर को ज्ञापन देते है। फिर अधिकारियों पर जांच और कार्रवाई के लिए दबाव बनाते है। जब दबाव बन जाता है, तब शुरु होती है, डाक्टरों से सौदेबाजी। एफआईआर दर्ज कराने और जेल जाने का डर दिखाकर यह अपनी कीमत को बढ़ाने का प्रयास करते है। कई तो इनके जाल में फंस भी जाते है। अगर ऐसे लोगों का पल्ला कहीं एसके गौड़ जैसे कंजूस डाक्टर से पड़ जाए तो इनकी उतनी दाल नहीं गलती जितना इन्होंने सोचा था। नहीं तो बात 25-50 लाख से षुरु होकर चार-पांच लाख पर न डन होता। इससे पहले भी इसी तरह का सौदा रतजगा करने वाले कथित नेताओं ने लाइॅफ लाइन वाले डाक्टर से करने की पक्की खबरे बाहर आई। खास बात यह है, कि यह रतजगा किस्म के नेता जिसे न्याय दिलाने की लड़ाई का बीड़ा उठाते हैं, उसे यह तक पता नहीं चलता कि उसके बेटे की मौत का सौदा लड़ाई लड़ने वाले नेताओं ने कर लिया। कहा भी जाता है, कि अगर ईमानदारी से अन्याय के खिलाफ आवाज को रतजगा टाइप का नेता उठातें है, ज्ञापन देता है, कार्रवाई के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाते हैं, नारेबाजी करतें है, तो ऐसे नेताओं का समर्थन पूरा समाज करता है, लेकिन अगर कोई सौदेबाजी करता है, तो समाज ऐसे नेताओं को चोर और बेईमान भी कहता है। ऐसा ही कुछ एक दिन पहले सोशल मीडिया पर हुआ। फेसबुक पर पत्रकार अनूप मिश्र ने चार लाख में सौदेबाजी करने के सच को पोस्ट क्या किया, लगभग 100 लोगों ने पत्रकार के पोस्ट का समर्थन किया, कुछ ने नहीं किया, और जिसकी ओर इषारा किया गया था, उसके बारे में कहा कि भैया ऐसे नेता नहीं।

पहले लड़ाई फिर सौदेबाजी, यही है नेताओं का सच, यह सच हैं, उन रतजगा करने वाले सामाजिक कार्यकत्ताओं का जिन्हें इस तरह के अवसर की तलाश रहती, अवसर मिला नहीं कि कैश करने में लग गए। आखिर यह ऐसा करें क्यों नहीं, आखिर यह भी तो बेरोजगार की श्रेणी में आते, पार्टी और संगठन तो इन्हें वेतन देता नहीं, इस लिए यह घटनाओं से अवसर तलाश कर पेट का गडढ़ा भरने लगते। पिछले दिनों प्राइवेट नर्सिगं होम के डाक्टरों की लापरवाही से मरीजों के मरने की जो घटनाएं हुई, उससे तमाम कथित नेताओं की आर्थिक स्थित सुदृढ़ हो गई, चार पहिया वाहनों से चलने लगे, बैंक बैलेंस बढ़ गया। यह लोग सौदा भी हजारों में नहीं बल्कि लाखों में करते है, और इसके लिए पूरी तरह उस डाक्टर को दोशी माना जाता है, जो नेताओं को भ्रष्टाचार करने का मौका देते। जिले के लोग लाइफ लाइन और जेके अस्पतालों की घटनाओं में नेताओं के सच से रुबरु हो चुके, एक तरह से इन घटनाओं ने कथित नेताओं को नंगा कर दिया, भले ही यह लाख सफाई दे, लेकिन जनता सबकुछ देख और समझ रही। सोशल मीडिया पर लोग खुलकर सौदेबाजी करने वाले कथित नेताओं को लेकर कमेंट कर रहे हैं, चोर और बेईमान तक की संज्ञा दे रहें। कहा भी जाता है, कि जब एक ज्ञापन की कीमत लाखों में होती है, तो कौन ऐसा बेवकूफ नेता होगा जो न्याय दिलाने के नाम पर ज्ञापन नहीं देगा। कहा भी जाता है, समस्या अखबार वाले उठाएं और फायदा कथित नेता उठाएं। यह प्रचलन बस्ती चल गया है। अखबार वाले जनता से जुड़े मुद्वे को उठाकर शासन और प्रषासन पर नियंत्रक की भूमिका निभाते हैं। अधिकांश काली अक्षर में छपी खबर को प्रशासन और सरकार संज्ञान में लेकर कार्रवाई भी करता है। लेकिन रतजगा करने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के लिए वह समस्या नहीं बल्कि अवसर होता है। आजकल सोशल मीडिया महाबलि बनकर उभर आया है। बस्ती से वाशिंगटन तक सेंकेड से भी कम समय में भ्रष्ट लोगों को नंगा करने का काम करता। अगर ऐसे लोगों की दुकानों को बंद करना है, तो सभी डाक्टरों को ईमानदारी बरतनी होगी, खून चुसवा बनने के बजाए जीवन देना वाला बनना होगा। अपने मरीजों के प्रति संवेदनशील होना होगा। अगर किसी मरीज के पास पैसा नहीं हैं, तो उसके जेवर को गिरवी नहीं रखना होगा। मरीजों के लिए भगवान बनने का प्रयास करना होगा। शेलेंद्र कुमार सिंह लिखते हैं, 12 लाख बड़के आफिस गया होगा, इसी लिए महज कुछ दिन बाद ओपीडी चालू कर दिया, क्या रतजगा लोगों को यह नहीं दिखाई देता कि क्यों रोक के बाद ओपीडी चालू, क्या पता कुछ हिस्सेदारी नी बात बन गई हो। जय कुमार लिखते हैं, कि अगर बिकले वाला नेता रहेगा तो चार लाख की बात छोड़िए चार रुपये में बिक जाएगा। अगर बिकने वाला नही ंतो धरती पर कोई माईलाल नहीं जो खरीद सके। महेंद्र चौधरी लिखते हैं, कि यह सौदेबाजी कोई सत्ता पक्ष का ही नेता किया होगा, विपक्ष के पास इतना दम कहां। वैसे पत्रकार भी स्वंतत्र नहीं रह गए। सिद्वार्थ श्रीवास्तव कहते हैं, कि यही लोग हैं, जिन्होंने लाइफ लाइन वाले मामले में सौदेबाजी की थी। यह बात डाक्टर ने स्वंय एक सभा में बताया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि गौड़ के मामले में रतजगा वाले नेताजी ने पैसा खाया होगा।

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