न रक्बा बढ़ा और न किसान ही बढ़े तो फिर दोगुना खाद गया कहां?

न रक्बा बढ़ा और न किसान ही बढ़े तो फिर दोगुना खाद गया कहां?

न रक्बा बढ़ा और न किसान ही बढ़े तो फिर दोगुना खाद गया कहां?

-धान गया, गेहूं गया अब खाद भी गया, क्या यही प्रशासन और व्यवस्था?

-वीसी में भी मंत्री ने पूछा कि डीएम साहब खाद गया कहां, दो गुना से अधिक किसको बेची गई

-खाद वितरण और आवंटन के मामले में पूरी तरह विफल रहा प्रशासनिक तंत्र

-जिस जिले में एक बोरी खाद के लिए बुढ़ा किसान रोता हुआ मिले और जिस जिले की बहन राखी बनवाई भाई से दो बारी यूरिया मांगे उस जिले के अधिकारियों को चुल्लुभर पानी में डूब मरना चाहिए

-अधिकारी खाद उतरते समय फोटों खिचातें रहें और किसान बरसात में एक बोरी खाद के लिए लाइन में लगा रहा, फिर भी खाद नहीं मिली

-जिले में धान से बड़ा खाद का घोटाला हुआ, और यह सबकुछ जिला कृषि अधिकारी और एआर कोआपरेटिव की कमाउ नीति के कारण हुआ

-डीएम की सिधाई का दोनों अधिकारियों और सचिवों ने खूब लाभ उठाया, रिेटेलर्स और होलसेलर्स ने भी खूब मलाई काटी

-जो सत्यापन कर्मी लगाए गए वह भी मलाई काट रहें हैं, दुकान पर जाते हैं, हजार पांच रुपया लेकर चले आते

-किसानों का कहना है, कि हम लोगों के लिए जिला कृषि अधिकारी और एआर दोनों अषुभ साबित हो रहें हैं, जब तक यह दोनों जिले में रहेगें तब तक किसान रोता रहेगा

बस्ती। धान और गेहूं घोटाला होता रहा है, मगर प्रशासन कार्रवाई करने के बजाए खामोश रहा, जिसका नतीजा जिले में करोड़ों रुपये के धान का घोटाला होना रहा। मीडिया, कमिष्नर और डीएम से कहती रही कि एआर को संभालिए, संभालने को कौन कहे, और ढील दे दिया। कमिष्नर इस लिए खुश रहे कि क्यों कि उन्होंने छह करोड़ धान का वापस सचिवों से करवा लिया, आज तक इस मामले में कमिष्नर साहब की ओर से उन सचिवों और एआर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिन लोगों ने धान का घोटाला किया और बाद में पैसा जमा कर दिया, जिन घोटालेबाज सचिवों ने पैसा जमा किया उनसे यह तक नहीं पूछा गया कि भाई आप लोगों ने पैसा क्यों और कहां से जमा किया? सरकार को चावल न देने वाले मिलों से भी नहीं पूछा गया कि आखिर आप लोगों ने धान के बदले चावल क्यों नहीं दिया? और क्यों धान के बदले पैसा जमा किया? इसी से आप लोग अंदाजा लगा सकते हैं, कि क्यों उन्हीं लोगों ने खाद का घोटाला किया, जिन लोगों ने धान का घोटाला किया था, अगर कमिष्नर साहब धान वाले मामले में सचिवों और एआर कोआपरेटिव के खिलाफ कार्रवाई कर देते तो आज खाद का इतना बड़ा घोटाला न होता। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, धान, गेहूं और खाद के घोटाले के जिम्मेदार सिर्फ सचिव और एआर नहीं बल्कि कमिष्नर और डीएम भी है। बिडंबना देखिए कि खाद के मामलें में भी मीडिया बराबर कमिष्नर और डीएम को सजग करती रही, लेकिन इस बार भी किसी ने मीडिया की नहीं सुनी बल्कि घोटालेबाजों को खुलकर घोटाला करने का मौका दिया, अगर न दिए होते तो खपत से दोगुना खाद नहीं बिकती। खाद बिकी नहीं बल्कि ब्लैक कर दिया गया। अधिकारी इस लिए खामोश रहे क्यों कि उन्हें उनका बखरा मिलता रहा। कोई यह बताने को तैयार नहीं कि जब रक्बा नहीं बढ़ा, किसान नहीं बढ़े तो खपत से दोगुना अधिक यूरिया कहां गया? यही बात वीसी में मंत्री ने डीएम से भी पूछा था, लेकिन जबाव नहीं दे पाए।

खाद वितरण और आवंटन के मामले में पूरी तरह विफल रहा प्रशासनिक तंत्र। जिस जिले में एक बोरी खाद के लिए बुढ़ा किसान रोता हुआ मिले और जिस जिले की बहन राखी बधंवाई भाई से दो बोरी यूरिया मांगे उस जिले के अधिकारियों को चुल्लुभर पानी में डूब मरना चाहिए। अधिकारी खाद उतरते समय फोटों खिचातें रहें और किसान बरसात में एक बोरी खाद के लिए लाइन में लगा रहा, फिर भी खाद नहीं मिली। जिले में धान से बड़ा खाद का घोटाला हुआ, और यह सबकुछ जिला कृषि अधिकारी और एआर कोआपरेटिव की कमाउ नीति के कारण हुआ। कहा भी जाता है, कि किसी भी डीएम को इतना सीधा भी नहीं होना चाहिए कि जिला लुट जाए और वह कुछ न कर सके। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि जिले को सिद्वार्थनगर जैसा डीएम चाहिए। किसानों का कहना है, कि हम लोगों के लिए जिला कृषि अधिकारी और एआर दोनों अषुभ साबित हो रहें हैं, जब तक यह दोनों जिले में रहेगें तब तक किसान रोता रहेगा। अब तो सत्यापन कर्मी पर भी मलाई काटने का आरोप लग रहा है, कहा जा रहा है, कि यह लोग दुकान पर तो सत्यापन करने जाते हैं, लेकिन जैसे ही इन्हें एक हजार पांच सौ मिल जाता है, सबकुछ ओके लिख लेते है। अब जरा उन रिकार्ड की ओर नजर डालिए, जिसके चलते पूरे प्रदेष में जिले के अधिकारियों की फजीहत हो रही है। अगस्त में अब तक 2024 में कुल 4200 एमटी यूरिया समितियों को दिया गया, यानि 86 हजार बोरी, लेकिन 2025 में 9200 एमटी यानि एक लाख 50 बोरी। अब सवाल उठ रहा है, कि अगर समितियों को पिछले साल की अपेक्षा इस बार लगभग 64 हजार बोरी अधिक यूरिया अधिक दिया गया तो फिर क्यों नहीं किसानों को खाद मिल रहा है? क्यों किसान बरसात में लाइन लगाए भीख रहा है? क्यों बहने भाईयों से रखी बंधवाई दो बोरी यूरिया मांग रही है, और क्यों किसान एक-एक बोरी के लिए रोता फिर रहा? इसका जबाव एआर को देना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि क्यों उनके कार्यकाल में ही घोटाला होता है? और क्यों यह बार-बार गृह जनपद बस्ती आते है? आखिर बस्ती में ऐसा क्या है, जो अन्य जनपदों में नहीं हैं, इसका जबाव किसान देते हुए कहता है, कि बस्ती मेें एआर के जितने चहेते सचिव हैं, सब एक से एक बढ़कर घोटालेंबाज हैं, और सचिवों को एआर और एआर को सचिवों को पसंद करते है। एआर और सचिवों की जोड़ी ने धान, गेहूं और खाद में इतना घोटाला किया है, कि अगर इन्हें नौकरी भी छोड़नी पड़े तब भी इनके पास दौलत की कोई कमी नहीं रहेगी। अगर कमी होती तो छह करोड़ घर से न जमा करते।

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