क्या वफादार कार्यकर्त्ता की किस्मत में दरी बिछाना ही लिखा?

क्या वफादार कार्यकर्त्ता की किस्मत में दरी बिछाना ही लिखा?

क्या वफादार कार्यकर्त्ता की किस्मत में दरी बिछाना ही लिखा?

-आज भाजपा में सबसे अधिक उपेक्षित पुराने वफादार कार्यकर्त्ता हो रहें, कोई इन्हें पूछते वाला नहीं

-सत्ता पार्टी का कार्यकर्त्ता होने के बावजूद यह अपनी मोटर साइकिल को थाने से नहीं छुड़ा पा रहें

-सवाल उठ रहा है, कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्त्ता के स्थान पर क्यों चापलूसी करने वालों को पदों पर बैठाया जा रहा

-अगर पार्टी का कार्यकर्त्ताओं के प्रति यही रर्वैया रहा तो 2027 में दरी बिछाने और झंडा उठाने वाला कोई पुराना कार्यकर्त्ता नहीं रहेगा

-कागजों में भले ही यह पार्टी दुनिया की सबसे मजबूत पार्टी हैं, लेकिन धरातल पर सबसे कमजोर

बस्ती। भाजपा के कर्मठी और निष्ठावान कार्यकर्त्ता पाटीे के जिम्मेदारों से यह सवाल कर रहे हैें, कि क्या उनकी किस्मत में जिंदगीभर दरी बिछाना ही लिखा हैं, क्या उन्हें पार्टी राज करने का मौका नहीं देगी और देगी भी कब देगी, कहीं ऐसा न हो कि इंतजार करते-करते शरीर न साथ छोड़ दे। आखिर उनके बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ सकेगकें कि नहीं? क्या उनकी पत्नियां कभी अच्छी साड़ी पहन भी पाएगंी या नहीं? क्या कार्यकर्त्ताओं खाते में कोई लाभकारी पद नहीं है? क्यों कि जब पद देने की बारी आती है, तो किसी नेता के मनइ-तनई को पद थाली में परोसकर दे दिया जाता हैं? केवल चापलूसों को ही क्यों पद दिया जाता? क्यों नहीं यह सम्मान कार्यकर्त्ताओं को दिया मिलता? कहते हैं, कि ऐसा लगता है, कि पार्टी को पुराने कार्यकर्त्ताओं की कोई आवष्यकता नहीं रह गई। कहा कि अगर 2027 फतह करना है, तो दरी बिछाने और वफादार कार्यकर्त्ताओं का सम्मान करना ही होगा? कार्यकर्त्ताओं को उन्हें उनका हक देना ही होगा? इन्हें पदों पर बैठाना ही होगा? तब जाकर 2027 हाथ में आएगा। वरना हाथ से निकल जाएगा। पार्टी के ही अनेक पुराने कार्यकर्त्ताओं का कहना और मानना हैं, कि कागजों में भले ही यह पार्टी दुनिया की सबसे मजबूत पार्टी हैं, लेकिन धरातल पर सबसे कमजोर है। ऐसा लगता है, कि मानो पार्टी हकीकत से मुहं मोड़ रही है। क्यों कि जिस तरह पुराने कार्यकर्त्ताओं की उपेक्षा हो रही है, उसे देख कम से कम यही लगता हैं, कि पार्टी को अब पुराने कार्यकर्त्ताओं की कोई आवष्यकता नहीं रह गई। एक वरिष्ठ कार्यकर्त्ता का कहना है, कि जब पार्टी का एक पुराना कार्यकर्त्ता थाने से अपनी मोटर साइकिल तक नहीं छोड़वा सकता तो वह क्यों पार्टी के लिए दरी बिछाएगा। सत्ता में रहते हुए अगर कार्यकर्त्ताओं की अधिकारी नहीं सुनेगें तो क्यों वह पार्टी के लिए जीजान लगाएगा? क्यों वह उन नेताओं की सुनेगा, जिसकी वह सुनते ही नहीं। यह भी सही है, कि आज ऐसे ना जाने कितने पुराने भाजपा के कार्यकर्त्ता हैं, जो अपनी बात अपनी पार्टी के नेताओं से कह भी नहीं पाते, समस्या तक नहीं बता पाते, जरुरत को पूरा करना तो दूर की बात है। नेता उनकी बात तक सुनने को तैयार नही। बहुत कम ऐसे जिलाध्यक्ष देखे गए हैं, जिन्होंने डीएम और एसपी से जाकर यह कहते सुना हो कि अगर पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की नहीं सुनी जाएगी, तो आप लोग भी जिले में नहीं रह पाएंगे। कार्यकर्त्ता इसी तरह के जिलाध्यक्ष की उम्मीद करता हैं, जो उसके लिए डीएम और एसपी से लड़ जाए। कहा भी जाता है, कि अगर किसी पार्टी का जिलाध्यक्ष कमजोर होता है, तो उसका प्रभाव सबसे पहले कार्यकर्त्ताओं पर पड़ता है। कार्यकर्त्ताओं को ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो उनके चेहरे पर मुस्कान ला सके। उन्हें उनका खोया हुआ सम्मान दिला सके। तब जाकर दरी बिछाने वाला कार्यकर्त्ता पार्टी के लिए चुनाव में जीजान लगाएगा। सीधी सी बात हैं, जब कार्यकर्त्ता कमजोर होगा तो पार्टी कमजोर होगी, और जब पार्टी कमजोर होगी, तो उसका प्रत्याशी कमजोर साबित होगा, और जब प्रत्याशी ही कमजोर होगा, तो वह कैसे जीतेगा? अगर कार्यकर्त्ताओं को उचित सम्मान नहीं मिला तो जो भी कार्यकर्त्ता बचे हैं, वह भी किनारा कस लेगें। जब कार्यकर्त्ताओं की सही बातों को थाने, तहसील और ब्लॉक वाले ही नहीं सुनेगें, तो फिर उनका सत्ता पक्ष का कार्यकर्त्ता होने का क्या मतलब, क्यों कि गांव गढ़ी वाला तो सबसे पहले कार्यकर्त्ता को ही पकड़ता है। इन्हीं कार्यकर्त्ताओं के कहने पर गांव गढ़ी वाले वोट करते हैं, लेकिन जब कार्यकर्त्ताओं की ही नहीें सुनी जाएगी तो वह वोट के लिए कैसे कहेगा? यह बहुत सच हैं, और जिस भी पार्टी से इस सच से पल्ला झाड़ा कार्यकर्त्ता उससे पल्ला झाड़ लेगा।

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