क्यों नहीं ललिता मौर्या हटी, क्यों प्रिंयका चौधरी हटी?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 16 June, 2025 20:37
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क्यों नहीं ललिता मौर्या हटी, क्यों प्रिंयका चौधरी हटी?
-प्रियंका चौधरी को प्रमुख जी के करीबी होने का खामियाजा भुगतना पड़ा
-सदर ब्लॉक में सिर्फ प्रिंयका चौधरी का ही तबादला सांउघाट हुआ
-महादेवा के विधायक दूधराम ललिता मौर्या को हटवाने के लिए नाक रगड़ते रह गए, लेकिन नहीं हटी
-तबादला होने के पीछे प्रिंयका चौधरी विकास भवन के कर्मचारियों को जिम्मेदार मान रही
बस्ती। आज का विधायक इतना कमजोर हो गया है, कि वह एक सचिव का तबादला नहीं करवा सकता। पांच-पांच ग्राम प्रधानों ने डीएम और विधायक को लिखकर दिया कि सचिव ललिता मौर्या मनमानी कर रही है। सरकारी धन का दुरुपयोग कर रही है। इनका कलस्टर बदल दिया जाए। पहले तो प्रधान डीएम से मिले, उसके बाद क्षेत्रीय विधायक से मिले। विधायकजी व्यक्तिगत रुप से डीएम से दो बार मिलकर सचिव को हटाने की बात कह चुके हैं, लिखकर भी दिया, लेकिन ठहरे डीएम उन्हें लगा कि ललिता मौर्या सही है, और प्रधान एवं पैरवी करने वाले विधायक गलत है। वरना अगर डीएम चाह जाए और एक सचिव का तबादला न हो, यह हो ही नहीं सकता। देखा जाए तो ललिता मौर्या के मामले में विधायक और शिकायतकर्त्ता पांचों प्रधान कमजोर साबित हुए। सचिव का न हटना प्रधानों के हितों पर कुठाराघात जैसा माना जा रहा है। कार्यकाल का अंतिम दौर चल रहा है, और सभी प्रधान चाहते हैं, कि अधिक से अधिक माल बटोरे, यानि जितना हो सके गांव को खोखला कर दें। सवाल यह उठ रहा है, कि क्या आज का सत्ता दल के सहयोगी विधायक इतना कमजोर हो गए हैं, कि वह एक सचिव को नहीं हटा पा रहे है। जबकि विभागीय मंत्री उन्हीं के दल के है। ललिता मौर्या के मामले में प्रशसान ने एक तरह से विधायक और प्रधानों को गलत साबित कर दिया। अनेक प्रधानों का कहना है, कि अगर विधायक दूधराम की जगह विधायक अजय सिंह होते तो कब का ललिता मौर्या बुक हो गई होती। इसी लिए नेता बार-बार चिल्ला रहे हैं, कि योगी के अधिकारी बेलगाम हो चुके है, और जब अधिकारी बेलगाम हो जाता है, तो लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र आ जाता है। कई प्रधानों का तो यह तक कहना है, कि ऐसे विधायकों के रहने से क्या फायदा ज बवह एक सचिव का तबादला नहीं करवा सकते, ऐसे विधायक को तो इस्तीफा दे देना चाहिए। हटना था, ललिता मौर्या को हट गई, प्रिंयका चौधरी। यह पहली ऐसी सचिव हैं, जिनका तबादला साउंघाट हुआ। कहते हैं, कि इन्हें प्रमुखजी के करीबी होने का दंड मिला। जिस तरह विधायकती हार हुई उसी तरह तरह प्रमुख की भी हार मानी जा रही है। सवाल उठ रहा है, कि आखिर क्यों प्रिंयका चौधरी सदर ब्लॉक में ही रहना चाहती हैं, जब कि इनका जो तबादला हुआ वह सदर ब्लॉक से सटे साउंघाट ब्लॉक में हुआ। एक सचिव चाहें सदर रहे या फिर सांउघाट रहें क्या फर्क पड़ता है। जो काम वह सदर में करती है, वही काम वह साउंघाट में भी करेंगी। कोई खास लगाव ही सचिव को जाने से रोकता है। बहरहाल, अगर विधायकों का यही हाल रहा तो कोई उनके पास जाना पंसद नहीं करेगा। इसका प्रभाव चुनाव में पड़ता है। ललिता मौर्या अधिकारियों को यह समझााने में सफल रही हैं, कि विधायक और प्रधान उनका तबादला इस लिए करवाना चाहते हैं, क्यों कि उन्होंने फर्जी भुगतान करने इंकार कर दिया था। अब प्रधान और विधायक सही है, या फिर ललिता मौर्या...। कुल मिलाकर बदनामी तो शिकायत करने वाले प्रधानों और सिफारिश करने वाले विधायक की ही हुई।
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