क्यों नहीं डीएम बस्ती और संतकबीरनगर को धान/गेहूं का घोटाला दिखाई देता?

क्यों नहीं डीएम बस्ती और संतकबीरनगर को धान/गेहूं का घोटाला दिखाई देता?

क्यों नहीं डीएम बस्ती और संतकबीरनगर को धान/गेहूं का घोटाला दिखाई देता?

-जब घोटाला पूरे मंडल में हुआ तो क्यों डीएम सिद्वार्थनगर ने पहल करते हुए इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा से कराने को लिखा

-घोटाला बस्ती और संतकबीरनगर में भी हुआ, लेकिन इन दोनों जिलों के डीएम को घोटाला दिखाई ही नहीं दे रहा

-कमिशनर साहब को भी घोटाला नहीं दिखाई दिया, जब कि इन्हीं के ही पहल पर मंडल में दो दर्जन एफआईआर हुए

-अगर कमिशनर साहब पूरे मंडल की जांच कराने की पहल करते तो आज इनकी भी डीएम सिद्वार्थनगर की तरह जयजयकार होती

-वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र बहादुर सिंह और बाबू राम सिंह ने पूरे मंडल की जांच सीबीआई से कराने की मांग की

-दोनों अधिवक्ताओं ने कहा कि बस्ती और संतकबीरनगर के घोटाले बाजों को बचाने का प्रयास दोनों जिलों के प्रधानस कर रहें

-इन दोनों अधिवक्ताओं ने सिद्वार्थनगर के डीएम के पहल की सराहना करते हुए कहा कि यही काम बस्ती और संतकबीरनगर के डीएम को भी करना चाहिए

बस्ती। मंडल में धान/गेहूं का इतना बड़ा घोटाला हो गया और घोटाले में शामिल सहकारिता और माक्रेटिगं विभाग के अधिकारी और इनके प्रभारी आजाद होकर घूम रहे है। सबसे पहले घोटाले की जांच की मांग भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य राजेंद्रनाथ तिवारी और उसके बाद अधिवक्ता बाबू राम सिंह मुख्यमंत्री को लिखकर किया। लेकिन लगता है, कि इन दोनों के पत्रों को ही दबा दिया गया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि धान घोटाला तीन विभागों के अधिकारियों और सचिवों एवं माक्रेटिगं विभाग के लोगों ने मिलकर किया, मगर कार्रवाई सिर्फ पीसीएफ के अधिकारियों और एकाउंटेट के खिलाफ हुई। सवाल उठ रहा है, आखिर सहकारिता और माक्रेटिगं विभाग के अधिकारियों के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई हुई? अगर डीएम सिद्वार्थनगर ने पीसीएफ के डीएस सहित अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज ना कराया होता तो बस्ती में सहकारिता के सचिवों पर मुकदमा दर्ज ना होता। बस्ती की पुलिस ने एक भी सचिव को जेल नहीं भेजा, बल्कि एक ऐसे राइस मिल के महिला को जेल भेज दिया, जिस पर गबन का आरोप ही नहीं बनता, बयान के आधार पर जेल भेज दिया, जिसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं, उससे पैसा लेकर उन्हें खुला छोड़ दिया। जबकि सिद्वार्थनगर में गिरफतारी भी हो चुकी है। कम से कम एआर के खिलाफ तो कार्रवाई होनी ही चाहिए थी, क्यों कि गबन भी इन्हीं के सचिवों ने किया। गबन का पैसा भी इन्हीं के सचिवों ने किया। इतना ही नहीं जिस संस्था ने सबसे अधिक गबन किया, उसी संस्था को फिर से सेंटर बना दिया, यानि घोटाला करने वालों को एआर और पीसीएफ के डीएस ने मिलकर फिर उन्हीं लोगों को गबन करने का मौका दे दिया, जिन्होनें इससे पहले गबन किया। जब कि सेंटर बनाने से पहले कहा गया था, कि दागी संस्था और क्रय प्रभारियों को इस बार धान क्रय प्रभारी नहीं बनाया जाएगा, लेकिन प्रशासन ने फिर वही गलती की जो 23-24 में कर चुकी, यानि कोई सबक नहीं लिया। एआर और डीआर के खिलाफ कार्रवाई ना होना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा है। भले ही दोनों अधिकारी ब्रीफकेस कल्चर से बच गए, लेकिन यह न्याय का तकाजा नहीं हैं, गलती तो एआर और पीसीएस के तत्कालीन डीएस ने भी किया, भुगतान भले ही पीसीएफ के डीएस ने किया, लेकिन सेंटर बनाने और क्रय केंद्रों का निरीक्षण ना करने की जिम्मेदारी तो एआर और डीआर की भी थी, अगर यह दोनों निरीक्षण करते तो करोड़ों रुपये का घोटाला ना होता। इतनी छोटी सी बात तो सिद्वार्थनगर के डीएम की समझ में आ गई, लेकिन बस्ती और संतकबीरनगर के डीएम की समझ में नहीं आई, क्यों नहीं आई? यह सवाल बना हुआ है। इन दोनों जनपदों के डीएम ने तो जांच करवाना भी मुनासिब नहीं समझा। जिसे एक अच्छा प्रशासन नहीं माना जा सकता।  

इसी लिए तो भ्रष्टाचार की निरंतर लड़ाई लड़ने वाले जिले के अधिवक्ता एनबी सिंह और बाबूराम सिंह ने मंडल की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। कहा कि जब सिद्वार्थनगर के डीएम अपने जिले की जांच के लिए आर्थिक अपराध शाखा को लिख सकते हैं, और घोटालेबाजों पर गैंगस्टर की पहल कर सकते हैं, तो क्यों नहीं अन्य डीएम कर सकते? और क्यों नहीं कमिशनर ने किया? कहते हैं, दोनों जिलों के डीएम घोटालेबाजों को बचाने और पूरे मामले को दबाने का प्रयास कर रहे है। कहते हैं, कि आश्चर्य है, कि 27 करोड़ का धान का और कुल खरीद का 78 फीसद गेहूं का मूल्य जिन किसानों को भुगतान किया गया, और धान चावल मिलों को प्रेषित नहीं किया गया, कहते हैं, उसकी जांच क्यों नहीं की जा रही है, क्यों नहीं उन फर्जी किसानों की जांच हो रही है, जिसके नाम पर इतना बड़ा घोटाला हुआ। आखिर वह किसान कौन है? इसका जबाव जांच हुए बिना अधूरा रहेगा। कहते हैं, कि पूरे मंडल में सहकारिता और मार्केटिंग विभाग का गजब का खेल खेला गया। कहा कि जनपद सिद्धार्थनगर के जिला मजिस्ट्रेट बधाई के पात्र हैं, जो योगी के भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के सिद्धांत को आगे बढ़ा रहे है। कहते हैं, कि बस्ती में अगर कोई आवाज उठाता भी है, तो उसे कार्य में बाधा डालने वाला समझा जाता। जांच तो वास्तव में पूरे मंडल की होनी चाहिए। वह भी मार्केटिंग और सहकारिता के सभी अधिकारियों को हटाकर। धान व गेहूं खरीदा गया, पैसा किसानों को भुगतान भी हुआ, तो फिर धान और गेहूं मिलाकर अरबों रुपया कैश क्यों जमा कराया गया? यह यक्ष प्रश्न हमेशा खड़ा रहेगा। इसका उत्तर उन किसानों के पास ही जाकर मिलेगा जिन्हें शासकीय धनराशि का भुगतान हुआ है।

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