क्या भाजपा भीतरघातियो,ं विरोधियों, नाराज जनता और उपेक्षित कार्यकर्त्ताओं से पार पाएगी!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 16 July, 2025 20:12
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क्या भाजपा भीतरघातियो,ं विरोधियों, नाराज जनता और उपेक्षित कार्यकर्त्ताओं से पार पाएगी!
-कैसे कार्यकर्त्ताओं के दरवाजे से होकर निकलेगा 27 में लखनऊ जाने का रास्ता? जिन कार्यकर्त्ताओं के दम पर 2027 में भाजपा लखनऊ जाने के मंशुबे पाल रही, वह कार्यकर्त्ता सालों से उपेक्षा का शिकार
-पांच-पांच करोड़ हर साल पाने के बाद भी एमपी, एमएलसी, एमएलए अपने स्वार्थ की गढ़ही में पानी भरवाने का काम कार्यकर्त्ताओं से करवाना चाहते, आखिर इनके पास झांगुर बाबा जैसी फैक्टी तो है नहीं
-हर साल करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी एमपी, एमएलसी, एमएलए और जिला पंचायत अध्यक्ष कार्यकर्त्ताओं को साल में एक लाख का भी काम नहीं दे रहें, तो कार्यकर्त्ता क्यों अपने दरवाजे से लखनऊ जाने का रास्ता देगा
-कार्यकर्त्ता की लेखपाल नहीं सुनता, पुलिस नहीं सुनती, अधिकारी नहीं सुनते, अपना काम कराने के लिए जब इन्हें पैसा ही घूस ही देना है, तो क्यों दरी बिछाएगें और झंडा ढ़ोएगें
-दुनिया की सबसे पार्टी का तमगा तो भाजपा ने हासिल कर लिया, लेकिन उसके कार्यकर्त्ता अपमान का घंूट पी रहें
-कार्यकर्ताओं को पार्टी का रीढ़ कहने वाले नेताओं को अब यह सोचना होगा कि अगर रीढ़ ही टूट जाए तो पार्टी का क्या होगा? कार्यकर्त्ताओं की रीढ़ अब टूट चुकी,
-कार्यकर्त्ता अगर कोई काम एमपी, एमएलसी, एमएलए, जिला पंचायत अध्यक्ष, पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष और प्रमुखों से कोई बात कह दे तो ऐसा लगता है, मानो कि उन्हीं का मुंह उन्हीं को ही चिढ़ा रहा
-भाजपा मानो यह राजनैतिक पार्टी न होकर सरकारी कर्मकांड बन गई, यह कर्मकांड इतने हल्के में लिया जा रहा कि उपर से लेकर नीचे तक जिसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी, वह अमहट पार करते ही भूल जाता
-जब जिलाध्यक्ष के कहने पर एक एफआईआर तक दर्ज नहीं होता तो समझ सकते हैं, कि कार्यकर्त्ताओं की क्या स्थित होगी। जिन नेताओं की गढ़ही अपनी ही नहीं भर पा रही है, वह कार्यकर्त्ताओं की गढ़ही क्या भरेगा?
बस्ती। भले ही विधानसभा का चुनाव अभी दूर है, लेकिन अभी से ही सवाल उठने लगा है, कि आखिर भाजपा 2027 में किससे-किससे लड़ेगी, विरोधियों से, भीतरघातियों से, नाराज जनता से या फिर उपेक्षित कार्यकर्त्ताओं से, क्या भाजपा इन लोगों से पार पाएगी? आखिर भाजपा किन रास्तों से होकर लखनऊ जाएगी? क्यों कि जिन कार्यकर्त्ताओं के दरवाजे से होकर लखनऊ जाने का रास्ता निकलता है, उसने तो अभी से ही दरवाजे को बंद करना शुरु कर दिया। पार्टी की रीढ़ कहे जाने वाले कार्यकर्त्ताओं की रीढ़ को पार्टी, एमपी, एमएलसी, एमएलए, जिला पंचायत अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, पालिका अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष पहले ही रीढ़विहीन कर चुके है। सवाल यह भी उठ रहा है, कि इतने लोगों से लड़ पाएगी? कहा भी जाता है, कि कोई भी पार्टी अपनों और जनता से लड़कर सत्ता हासिल नहीं कर सकती। विरोधियों से तो लड़ा जा सकता है, लेकिन उन लोगों से नहीं जो साथ में रहकर पीठ पर छुरा भोकतें है। एक चर्चा आम हैं, कि अगर भाजपा सत्ता हासिल नहीं कर पाई तो उसका सबसे बड़ा भीतरघात और कार्यकर्त्ताओं को उपेक्षित करना माना जाएगा। भ्रष्टाचार भी बहुत बड़ा कारण बन सकता है। सत्ताधारी नेताओं के कामकाज को लेकर जनता के बीच जो नाराजगी हैं, वह 27 में स्पष्ट दिखाई देगा। पार्टी को हर हाल में डैमेज कंटोल की टीम को मजबूत करना ही होगा, क्यों कि इसका खामियाजा पार्टी विधानसभा और लोकसभा में भुगत चुकी है।
सवाल उठ रहा है, कि कैसे कार्यकर्त्ताओं के दरवाजे से होकर निकलेगा 27 में लखनऊ जाने का रास्ता? क्यों कि जिन कार्यकर्त्ताओं के दम पर 2027 में भाजपा लखनऊ जाने के मंशुबे पाल रही, वह कार्यकर्त्ता सालों से उपेक्षा का शिकार है। पांच-पांच करोड़ हर साल पाने के बाद भी एमपी, एमएलसी, एमएलए अपने स्वार्थ की गढ़ही में पानी भरवाने का काम भी कार्यकर्त्ताओं से करवाना चाहते, आखिर इनके पास झांगुर बाबा जैसी फैक्टी तो है नहीं।
हर साल करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी एमपी, एमएलसी, एमएलए और जिला पंचायत अध्यक्ष कार्यकर्त्ताओं को साल में एक लाख का भी काम नहीं दे रहें, ऐसे में क्यों कार्यकर्त्ता अपने दरवाजे से लखनऊ जाने का रास्ता देगा? कार्यकर्त्ता की लेखपाल नहीं सुनता, पुलिस नहीं सुनती, अधिकारी नहीं सुनते, अपना काम कराने के लिए घूस देना पड़ता है, पुलिस चौकी से अपनी मोटरसाइकिल तक नहीं छुड़वा पाते तो ऐसे में क्यों यह दरी बिछाएगें और झंडा ढ़ोएगें। दुनिया की सबसे पार्टी का तमगा तो भाजपा ने हासिल कर लिया, लेकिन उसके कार्यकर्त्ताओं को वह सम्मान नहीं मिला जो इन्हें मिलना चाहिए, यह अपमान का घंूट पीकर रह रहें हैं। कार्यकर्ताओं को पार्टी का रीढ़ कहने वाले नेताओं को अब यह सोचना होगा कि अगर रीढ़ ही टूट जाएगी तो पार्टी का क्या होगा? पार्टी तो टूट ही जाएगी। कहना गलत नहीं होगा कि कार्यकर्त्ताओं की रीढ़ अब टूट चुकी। कार्यकर्त्ता अगर कोई काम एमपी, एमएलसी, एमएलए, जिला पंचायत अध्यक्ष, पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष और प्रमुखों से कह दे तो ऐसा लगता है, मानो कि उन्हीं का मुंह उन्हीं को ही चिढ़ा रहा है। भाजपा मानो यह राजनैतिक पार्टी न होकर सरकारी कर्मकांड बन गई, यह कर्मकांड इतने हल्के में लिया जा रहा कि उपर से लेकर नीचे तक जिसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी हैं, वे अमहट पार करते ही भूल जातें हैं।
भाजपा के बारे में यह सबको पता है, कि संगठन का आदेश सर्वोपरि होता है, भाजपा के पदाधिकारी आदेश को तो मानतें है, लेकिन व्याख्या कान पकड़कर उल्टा कर देते है। मानो यह पार्टी न होकर सरकारी कर्मकांड की पार्टी है। जिला प्रभारी, क्षेत्रीय अध्यक्ष और क्षेत्र प्रभारी ईमानदारी से तो काम करते हैं, लेकिन जिसको बूथ और शक्ति केंद्र तक संदेश ले जाना है, वह अमहट पार करते ही भूल जातें है। आखिर भूले क्यों नहीं, भूखे पेट तो देश भक्ति होती नहीं, और चंद्रशेखर आजाद बनने की हेैसियत किसी में नहीं। अब सबकी निगाह आने वाले नए प्रदेश अध्यक्ष पर है। देखना है, कि नए अध्यक्ष के आने से 27 में कार्यकर्त्ता 27 ही रह जाएगा या 63 हो जाएगा। इसका आशय 27 का बिना मन से और 63 का आशय मन वचन और कर्म से काम करने से है। इसी पर लखनऊ जाने का रास्ता कार्यकर्त्ता के दरवाजे से होकर ही गुजरेगा। पार्टी कार्यकर्त्ताओं को कितना साध पाती है, इसके लिए जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक की टीम को जीजान से मेहनत करना पड़ेगा। नेताओं के यहां कार्यकर्त्ताओं की स्थित उपेक्षित जैसी है, जिला प्रशासन से काम कराने की हैसियत किसी भी कार्यकर्त्ता में नहीं हैं, ऐसे में कार्यकर्त्ता क्यों जान देने जाएगा? जब जिलाध्यक्ष के कहने के बाद भी एक एफआईआर तक दर्ज नहीं होता तो समझ सकते हैं, कि कार्यकर्त्ताओं की क्या स्थित होगी? जिन नेताओं की गढ़ही अपनी ही नहीं भर पा रही है, वह कार्यकर्त्ताओं की गढ़ही क्या भरेगें?
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