किसानों को नहीं प्लांट वालों को बेच रहे यूरिया

किसानों को नहीं प्लांट वालों को बेच रहे यूरिया

किसानों को नहीं प्लांट वालों को बेच रहे यूरिया

-कमिश्नर और डीएम के निशाने पर जिला कृषि अधिकारी, कमिश्नर और डीएम पहुंचे जिला कृषि अधिकारी कार्यालय बीताया एक घंटा, लौटने के बाद मांगा स्पष्टीकरण

-किसान बारिश में खाद का इंतजार करते रहें, और बहुउद्वेशीय प्राथमिक ग्रामीण सहकारी समिति परसरामपुर के सचिव श्याम नरायन वर्मा समिति पर ताला लगाकर भाग गए

-मौजूद किसान विजय कुमार पांडेय, रमेश पांडेय और इस्लाम अली सहित अन्य किसानों ने सचिव और एआर पर लगाया खाद की कालाबाजारी करने का आरोप

बस्ती। चौकिए मत, सचिवों और रिटेलर्स ने यूरिया को किसानों को नहीं बल्कि यूरियर का प्लांट लगाने वालों को 400-450 बोरी में बेच दे रहे है। प्लांट वाले यूरिया को टक वालों के हाथों में बेच देते हैं, ताकि वह यूरिया का इस्तेमाल करके अधिक माइलेज ले सके, नई टकों में अब दो टंकी लगर रहती है, एक टंकी इधन का रहती है, तो दूसरी यूरिया की रहती है। आप लोगों हाईवे पर सड़क किनारे यूरिया वाली टंकी बिकते देखी होगी। दुकानदार यूरिया प्लांट लगाता है, यूरिया खाद को अपने प्लांट में डाल देता है, और उसी प्लांट को टक वालों को बेच देता है, टक वाले अधिक माइलेज लेने के लिए यूरिया वाली टंकी लगाते है। परसरामपुर में तीन और विक्रमजोत में 12 यूरिया का प्लांट लगा हुआ है। इसी प्लांट वालों को समिति के सचिव और रिटेलर्स यूरिया खाद को बेच देते है। 28 जुलाई को किसान बारिश में खाद का इंतजार करते रहें, और बहुउद्वेशीय प्राथमिक ग्रामीण सहकारी समिति परसरामपुर के सचिव श्याम नरायन वर्मा समिति पर ताला लगाकर भाग गए, लाइन में लगे किसानों से आधार कार्ड तो ले लिया लेकिन खाद नहीं दिया, कहा कि समाप्त हो गया, आधार कार्ड भी वापस नहीं किया, इसी आधार पर बाद में सचिव पास मशीन से खारिज करते है। मौजूद किसान विजय कुमार पांडेय, रमेश पांडेय और इस्लाम अली सहित अन्य ने सचिव और एआर पर खाद की कालाबाजारी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अधिकांश यूरिया सचिव यूरिया प्लांट वालों को बेच देते है। किसानों का दावा है, कि अगर इसकी जांच हो जाए तो सचिव की पोल खुल सकती है। किसान कहते हैं, कि आखिर यूरिया कहां गया, कागजों में 963 फीसद यूरिया सचिवों ने अधिक बांट दिया, लेकिन यूरिया गया कहा। कहते हैं, कि अधिकारी ही नहीं चाहते कि किसानों को यूरिया मिल सके। अधिकारी कागजी आकड़ों में फंसे हुए हैं, और उसी को सच मान रहे है। जबकि असलियत यह है, कि सचिव टक का टक खाद बेच दे रहा हैं। अगर कमिश्नर और डीएम को खाद को लेकर जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में एक घंटा बीताना पड़े तो समझ लेना चाहिए, कि दाल में काला है। वैसे भी शासन के निशाने पर बस्ती है, इसी लिए जांच करने को टीम आ रही है। कमिश्रर के आदेश पर डीएम ने जिला कृषि अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा हैं, डीएम ने स्पष्ट लिखा कि खाद के वितरण में गंभीर अनियमितता हो रही है, निजी क्षेत्र विक्रेता अपने दुकानों को जानबूझकर बंदकरके भाग जा रहे हैं। दुकानों पर स्टाक रजिस्टर नहीं मिल रहे है। रेट बोर्ड तक नहीं लगे। ई-पाश मशीन को जानबूझकर खराब कर दिया जाता, किसानों का सही विवरण, मोबाइल नंबर रजिस्टर में अंकित नहीं किया जा रहा। डीएम ने एडीएम और उप निदेषक कृषि को संयुक्त टीम बनाकर जांच करने का निर्देश दिया है। गड़बड़ी पाए जाने पर आवष्यक वस्तु अधिनियक के तहत मुकदमा कायम कराने को कहा गया। अब सवाल उठ रहा है, कि जब जिला कृषि अधिकारी रिटेलर्स से तीन हजार लेगें तो रिटेलर्स मनमानी करेगा ही इसी कमीशन के चलते कार्यालय में बाबू लोग अपने चेंबर में एसी तक लगा रहे है। किसानों का कहना है, कि जब तक अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी, खाद की कालाबाजारी होती रहेगी।

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