कौन सही ‘दिव्यांशु खरे’ या ‘अमन श्रीवास्तव’?

कौन सही ‘दिव्यांशु खरे’ या ‘अमन श्रीवास्तव’?

कौन सही ‘दिव्यांशु खरे’ या ‘अमन श्रीवास्तव’?

-खरे का कहना है, कि वह 90 लाख के बदले दो करोड़ से अधिक अमन को दे चुकें, फिर भी 15 लाख और मांग रहें, न देने पर बदनाम करने की धमकी दे रहें, एक बाबू साहब को भी 31 लाख के बदले 52 दिया, फिर भी वह और मांग रहें

-वहीं अमन श्रीवास्तव का कहना है, कि दिव्यासुं खरे झूठ बोल रहे, अभी भी उन्होंने 17.50 लाख नहीं दिया, दोनों सोशल मीडिया के जरिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा अपनी-अपनी सफाई दे रहे, और दोनों कागजों के जरिए एक दूसरे को झूठा साबित करने का प्रयास कर रहे, कोई यह नहीं बता रहा है, कि आखिर इतनी बड़ी रकम किस लिए ली और किस काम के लिए ली और कितने ब्याज पर ली, न लेने वाला एमाउंट और परपज बता रहा है, और न देने वाला यह बता रहा है, कि उसने कितना धन दिया

-खरेजी कह रहे हेै, कि इस लेन-देन में मेरे चाचा अनूप खरे और स्कूल का कोई लेना देना नहीं, वहीं श्रीवास्तवजी कह रहें हैं, अनूपजी हर समय दिव्यांसु के साथ खड़े रहे और पत्नी सीमा खरे और अनूप खरे उनके घर धमकी देने तक आ चुके

-दोनों अपनी सफाई लाइव वीडियो के जरिए दे रहे हैं, जिसके चलते दोनों परिवारों की खूब बदनामी हो रही हैं, जिस लेन-देन की आज तक किसी को भनक तक नहीं लगी, उसे दोनों ने सार्वजनिक कर दिया

-दोनों भले ही लेन-देन के बारे में कुछ न कहें, लेकिन मामला पूरी तरह सूदखोरी से जुड़ा हुआ माना जा रहा हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो 90 लाख के बदले दो करोड़ देने का आरोप खरेजी, अमनजी पर न लगाते

-कहा भी जाता है, कि जो भी सूदखोरों के चंगुल में फंसा, समझो वह बर्बाद हो गया, ब्याज पर पैसा लेने वाला भले ही ब्याज भरते-भरते स्वर्गवासी हो जाता है, लेकिन सूदखोरों का न तो ब्याज कभी खत्म होता है, और न मूलधन

-समाज इन सूदखोरों को समाज, कानून और इंसानियत का दुष्मन मानती हैं, और कहती है, इन सूदखोरों की जगह सिर्फ और सिर्फ जेल और चार गज जमीन के नीचे, इनके चंगुल में फंसकर  अच्छाखासा घर परिवार तबाह हो जाता, व्यापारी या तो पलायन कर रहें, या फिर आत्महत्या, हंसता खेलता परिवार की खुषियां यह सूदखोर लोग छीन ले रहें

-यह सूदखोर मूलधन से अधिक ब्याज ले चुकते है, फिर भी न तो मूलधन और न ब्याज ही समाप्त होता, ब्याज को इन लोगों ने व्यापार बना लिया, मजबूरी का फायदा उठाकर यह लोग लखपति से करोड़पति बनते जा रहे

-वायरल वीडियो में दिव्यांसु खरे कह रहे हैं कि अगर मैं अपने पर उतर आउं तो कईयों का कैरियर बर्बाद हो जाएगा, बार-बार यह कह रहे हैं, कि पैसे के लेन-देन में चाचा की कोई भूमिका नहीं, अगर किसी का एक रुपया भी बकाया हो तो वह बताए कहां आना, हिसाब करने को तैयार हूं, वहीं अमनजी, खरेजी को बेलवाडाड़ी के सभासद के घर बुला रहे, और हिसाब करने की चुनौती दे रहें  

-खरेजी कहते हैं, कि उनका दस करोड़ डूब गया, फिर भी वह सबका कर्जा चुका चुके हैं, किसको-किसको कितना दिया और लिया एक-एक पैसे का हिसाब उनके बैंक एकाउंट में, कहा कि उन्होंने अधिकारियों को एक-एक पैसे का हिसाब बैंक एकाउंट के साथ दे चुका हूं, और जिसको अधिक दिया हूं उनसे वापस मांग रहा हूं

बस्ती। मीडिया बार-बार कह रही है, कि चंद सूदखोरों की वजह से जिले के कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं और बर्बाद होने के कगार पर है। हंसता खेलता परिवार मुस्कराना भूल चुका है। इनके चंगुल में एक बार जो फंसा उसका सुखचैन चला गया। अनेक व्यापारियों को शहर छोड़कर भागना पड़ा, इज्जत, जमीन और जेवर से हाथ धोना पड़ा, आदमी तो समाप्त हो जाता है, लेकिन इनका ब्याज और मूलधन कभी समाप्त नहीं होता, तमाम लोग इनके उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्याएं तक कर चुके है। हालही में पेटोल पंप का एक मालिक के आत्महत्या करने का मामला सामने आ चुका है। कर्जदारों को एक ब्याज से छुटकारा पाने के लिए दूसरे ब्याज का सहारा लेना पड़ता है। एक बार जो इनके चंगुल में आ गया, समझो उसकी मौत हो गई। अच्छाखासा घर परिवार तबाह हो जाता है। महरीपुर, बेलाड़ी, पिपरागौतम, भेलवल, रुधौली, जिगना, बेलवाडाड़ी और गांधीनगर के सूदखोरों के चंगुल में फंसकर न जाने कितने गरीब और व्यापारी छटपटा रहें है। सूदखोरों के चंगुल में फंसकर आदमी की इज्जत तो जाती ही हैं, परिवार का शकून भी चला जाता है। परिवार इस चक्कर में हंसना भूल जाता है, कि कैसे ब्याज देगें, कर्जदार को मूलधन चुकाने से अधिक ब्याज को चुकाने की चिंता रहती है। डरा हुआ व्यक्ति कुछ बोल नहीं पाता, मन की बात कह नहीं पाता, धोकरकसवा बन सूदखोर लोगों को लूट रहें है। हर कोई मजबूरी में सूद पर पैसा लेता हैं, देना वाला मजबूरी का खूब फायदा उठाता, स्टांप पर हस्ताक्षर करवा कर सदा के लिए जमीन और जेवर अपने पास रख लेता है। यह लोग परिवार को गम में ढ़केल देतें है। सबसे अधिक इनका शिकार कामगार और व्यापारी वर्ग होता है। सूदखोरों के चलते समाज में अपराध बढ़ रहे हैं, परिवार तबाह हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक लड़कियों की शादी और इलाज के लिए 10 से 20 फीसद महीना पर ब्याज पर लेने को मजबूर होते है, यह लोग इज्जत बचाने और जान बचाने के लिए सूद पर पैसा तो ले लेते हैं, लेकिन न तो वह समय से ब्याज दे पाते हैं, और न मूलधन ही चुकता कर पाते है। कहने का मतलब एक बार अगर किसी ने इनके पास अपनी जमीन घर और जेवर गिरवी रख दिया, समझो वह सूदखोरों का हो गया। परिवारों और व्यापारियों की बर्बादी और आत्महत्याएं के लिए समाज उन लोगों को जिम्मेदार मान रहा है, जो मजबूरी का लाभ उठाते है।

वायरल लाइव वीडियो में दिव्यांशु खरे कह रहे है, कि वह 90 लाख के बदले दो करोड़ से अधिक अमन श्रीवास्तव को दे चुकें, फिर भी 15 लाख और मांग रहें, न देने पर बदनाम करने की धमकी दे रहें, एक बाबू साहब को भी 31 लाख के बदले 52 लाख दे चुका हूं, फिर भी वह और मांग रहें है। न देने पर फेसबुक पर परिवार को बदनाम करने की धमकी तक देते है। वहीं अमन श्रीवास्तव का कहना है, कि दिव्यासशु खरे झूठ बोल रहे, अभी भी उन्होंने 17.50 लाख नहीं दिया, कहते हैं, कि उनके पिताजी बीमार हैं, और उनका इलाज मेंदाता में चल रहा है, इसी लिए उन्होनें खरेजी से पैसा मांगा। दोनों सोशल मीडिया के जरिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा अपनी-अपनी सफाई दे रहे, और दोनों कागजों के जरिए एक दूसरे को झूठा साबित करने का प्रयास कर रहे, कोई यह नहीं बता रहा है, कि आखिर इतनी बड़ी रकम किस लिए ली गई और किस काम के लिए ली गई और कितने ब्याज पर ली गई, न लेने वाला एमाउंट और परपज बता रहा है, और न देने वाला यह बता रहा है, कि उसने कितना धन दिया। खरेजी कह रहे हेै, कि इस लेन-देन में मेरे चाचा अनूप खरे और स्कूल का कोई लेना देना नहीं, वहीं श्रीवास्तवजी कह रहें हैं, अनूपजी हर समय दिव्यांशु के साथ खड़े रहे और पत्नी सीमा खरे और अनूप खरे उनके घर धमकी देने तक आ चुके, लिखित में माफी भी मांग चुके है। दोनों अपनी सफाई लाइव वीडियो के जरिए दे रहे हैं, जिसके चलते दोनों परिवारों की खूब बदनामी हो रही हैं, जिस लेन-देन की आज तक किसी को भनक तक नहीं लगी, उसे दोनों ने सार्वजनिक कर दिया। दोनों भले ही लेन-देन के बारे में कुछ न कहें, लेकिन मामला पूरी तरह सूदखोरी से जुड़ा हुआ माना जा रहा हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो 90 लाख के बदले दो करोड़ देने का आरोप खरेजी, अमनजी पर न लगाते। कहा भी जाता है, कि जो भी सूदखोरों के चंगुल में फंसा, समझो वह बर्बाद हो गया, ब्याज पर पैसा लेने वाला भले ही ब्याज भरते-भरते स्वर्गवासी हो जाता है, लेकिन सूदखोरों का न तो ब्याज कभी खत्म होता है, और न मूलधन। समाज इन सूदखोरों को समाज, कानून और इंसानियत का दुष्मन मानती हैं, और कहती है, इन सूदखोरों की जगह सिर्फ और सिर्फ जेल और चार गज जमीन के नीचे, इनके चंगुल में फंसकर  अच्छाखासा घर परिवार तबाह हो जाता, व्यापारी या तो पलायन कर रहें, या फिर आत्महत्या, हंसता खेलता परिवार की खुशीयां यह सूदखोर लोग छीन ले रहें। यह सूदखोर मूलधन से अधिक ब्याज ले चुकते है, फिर भी न तो मूलधन और न ब्याज ही समाप्त होता, ब्याज को इन लोगों ने व्यापार बना लिया, मजबूरी का फायदा उठाकर यह लोग लखपति से करोड़पति बनते जा रहे। वायरल वीडियो में दिव्यांशु खरे कह रहे हैं कि अगर मैं अपने पर उतर आउं तो कईयों का कैरियर बर्बाद हो जाएगा, बार-बार यह कह रहे हैं, कि पैसे के लेन-देन में चाचा की कोई भूमिका नहीं, अगर किसी का एक रुपया भी बकाया हो तो वह बताए कहां आना, हिसाब करने को तैयार हूं, वहीं अमनजी, खरेजी को बेलवाडाड़ी के सभासद के घर बुला रहे, और हिसाब करने की बातें कह रहें। खरेजी कहते हैं, कि उनका दस करोड़ डूब गया, फिर भी वह सबका कर्जा चुका चुके हैं, किसको-किसको कितना दिया और लिया एक-एक पैसे का हिसाब उनके बैंक एकाउंट में। यही बात अमनजी भी कह रहे हैं, खरेजी ने कितना दिया और कितना लिया, सब एकांउट में दर्ज है।

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