कौन बिका एमओआईसी या सीएमओ, कोई तो बिका!

कौन बिका एमओआईसी या सीएमओ, कोई तो बिका!

कौन बिका एमओआईसी या सीएमओ, कोई तो बिका!

-कप्तानगंज के एमओआईसी डा. अनूप चौधरी का खामोश होना और सीएमओ की जांच करना, यह साबित होता है, कि एमओआईसी और पीएमसी में कोई न कोई डील हुई

-डा. अनूप के बच्चे को मरे एक माह होने को हैं, लेकिन आज तक डाक्टर और सीएमओ पीएमसी पर कोई कार्रवाई करवा पाए

-कुछ दिन पहले तक जो डाक्टर यह चिल्ला रहे थे, कि चाहें जितना पैसा दे दे  मेरे बेटे की जान से बढ़कर नहीं, आज वही डाक्टर कोई रिस्पांस नहीं कर रहें

-सीएमओ कार्यालय के एक जिम्मेदार ने बताया कि सीएमओ साहब कुछ भी कर/करवा सकते हैं, अपने लाभ के लिए समझौता तक करवा सकते, कहा कि अगर सीएमओ को कोई कार्रवाई करनी होती तो कब का कर दिया होता, इस कार्यालय में सबकुछ बिकता

बस्ती। एक एमओआईसी अगर अपने मरे हुए बच्चे का सौदा कर सकता तो, कैसे दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगा, और कैसे कोई पीड़ित पक्ष की मदद कर करेगा? यकीन नहीं हो रहा है, कि एमओआईसी ऐसा भी कर सकते हैं? जो डा. अनूप चौधरी घटना के बाद कार्रवाई कराने के लिए मीडिया से लेकर प्रशासन और सीएमओ तक गुहार लगा रहे थे, अगर वही अचानक इस तरह खामोश हो जाएगें तो डाक्टर पर तो सवाल उठेगा? क्यों कि बेटा उन्होने खोया, कार्रवाई भी उन्हीं को ही पीएमसी के डा. रेनू राय के खिलाफ करवानी है, अगर वही नहीं चाहेगें तो सीएमओ और मीडिया क्या करेगी? सीएमओ कुछ बताने को तैयार नहीं, और डा. अनूप चौधरी पिछले दस दिन से रिस्पांस नहीं कर रहे है। कोई बताने को तैयार नहीं कि इतने बड़े मामले में आखिर खामोशी क्यों छाई हुई है? कहीं ऐसा तो नहीं डाक्टर, सीएमओ और पीएमसी के बीच कोई समझौता हो गया? जाहिर सी बात है, समझौता तो निःशुल्क हुआ नहीं होगा, इस मामले में सबसे अधिक सवालों के घेरे में डाक्टर ही आ रहे है। इनका खामोश होना बहुत कुछ बयां कर रहा है, वैसे पीएमसी वाले 27 जून से ही समझौता करने का प्रयास कर रहे थे, हो सकता हैं, कि सफलता मिल गई होगी? यह समझौता बिना सीएमओ के दखलंदाजी के हो ही नहीं सकता है। पीएमएस के कई सदस्यों से इस बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं, ऐसा लगता है, सभी को मुंह बंद रखने को कहा गया हो। पीएमएस के एक सदस्य ने कहा भी कि यही कारण है, कि पीएमएस ने एमओआईसी की कोई मदद नहीं किया, क्यों कि सभी को मालूम था, कि जो सीएमओ चाहेंगे वही होगा, और वही हुआ होगा भी जो सीएमओ चाहें होगें। वैसे समझौता होने के आसार नहीं हैं, लेकिन अगर हुआ भी होगा तो यह बहुत ही दुखद है। जो डाक्टर पहले इस मामले में सहयोग देने के लिए मीडिया को धन्यवाद दे रहे थे, और खुद रात में फोन करते थे, आज वही डाक्टर मीडिया को रिस्पांस नहीं कर रहे है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि कुछ न कुछ तो हुआ अवष्य है। घटना के एक माह बाद भी पीएमसी के खिलाफ कोई कार्रवाई न होना यह बताता है, कि समझौता हो गया होगा। कहा भी जा रहा है, अगर इसी तरह बच्चे की मौत पर समझौता होता रहा तो अनियमित कार्य करने वाले नर्सिगं होम के संचालकों का मनोबल बढ़ेगा। फिर आईएमए की वह बात सच साबित होगी, जिसमें धनादोहन के लिए आरोप लगाने की बात कही थी। डाक्टर अनूप चौधरी को पूरा हक हैं, कि वह समझौता करें या न करें, क्यों कि बच्चा तो उन्होंने खोया, यही समझौता अगर ग्रामीण क्षेत्र का कोई परिजन करता तो बात समझ में आती, लेकिन अगर एमओआईसी स्तर का अधिकारी समझौता करता है, तो किसी के समझ में नहीं आ रहा। बहरहाल हम लोगों की हमदर्दी पूरी तरह डाक्टर के प्रति है। मीडिया और जनता चाहती है, कि डाक्टर और उनकी पत्नी को न्याय मिले, न्याय मिलना और न मिलना पूरी तरह डाक्टर साहब पर ही निर्भर है।

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