जब पंचायत सहायक ही नहीं तो कैसे बनेगा आधार कार्ड?

जब पंचायत सहायक ही नहीं तो कैसे बनेगा आधार कार्ड?

जब पंचायत सहायक ही नहीं तो कैसे बनेगा आधार कार्ड?

-कुदरहा ब्लॉक के परमेशरपुर गांव का मामला बना चर्चा का विषय, डीपीआरओ की सूची पर उठे सवाल

बस्ती। डीपीआरओ ने एक ऐसे गांव को आधार कार्ड बनाने का केंद्र बना दिया, जहां पर वंचायत सहायक की ही तैनाती नहीं। मामला कुदरहा ब्लॉक के ग्राम परमेशरपुर का है। इस गांव को आगामी आधार कार्ड पंजीकरण अभियान में शामिल सक्रिय ग्राम पंचायतों की सूची में भी दर्ज कर दिया गया है। इतना ही नहीं  डीपीआरओ की सूची में परमेशरपुर के पंचायत सहायक का नाम और मोबाइल नंबर भी विधिवत दर्शाया गया है, जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि उक्त ग्राम पंचायत में पंचायत सहायक की न तो नियुक्ति हुई है और न ही चयन प्रक्रिया पूरी हुई है। जब सूची में दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया, तो वह स्विच ऑफ मिला। ऐसे में सवाल उठता है कि यह चयन कहीं केवल कागजी खानापूर्ति तो नहीं? बताते चलें कि डीपीआरओ कार्यालय ने हाल ही में जिले की 107 ग्राम पंचायतों की सूची सार्वजनिक की थी, जहां पंचायत सहायक के पद रिक्त हैं और जिनमें नियुक्ति की प्रक्रिया फिलहाल अधूरी है। ऐसे में परमेशरपुर को आधार पंजीकरण जैसी महत्वपूर्ण और संवेदनशील योजना के लिए चयनित करना न केवल शासनादेशों की अवहेलना है, बल्कि पंचायतीराज विभाग की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। पंचायतीराज विभाग की स्पष्ट गाइडलाइन के अनुसार, पंचायत सहायक की उपस्थिति एवं सक्रिय भागीदारी के बिना आधार पंजीकरण जैसे कार्य संभव नहीं हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया डेटा सुरक्षा और नागरिक पहचान से संबंधित अत्यंत संवेदनशील कार्यों में शामिल है। अब सवाल यह उठता है कि जब चयन प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई, तब फर्जी या कागजी सहायक को सूची में कैसे दर्शा दिया गया? क्या यह सिर्फ आँकड़ों की बाजीगरी है, या फिर प्रशासनिक लापरवाही का गंभीर नमूना? वैसे भी डीपीआरओ कार्यालय में कोई काम नियम कानून से नहीं होता है। अगर नियम कानून से होने लगेगा तो कमाई बंद हो जाएगी। इस महत्वपूर्ण विभाग में जितनी अनियमितता होती है, उतना अन्य किसी भी विभाग में नहीं होती। कदम-कदम पर आप को अनियमितता मिल जाएगा। इसी लिए इस विभाग को और इस विभाग के अधिकारियों, सचिवों और कर्मचारियों को घोटालेबाजों की श्रेणी में माना जाता है। हर साल यह विभाग जिले के 1185 ग्राम पंचायतों में लगभग चार अरब खर्च करता है, दावा किया जा रहा है, ेिक अगर इसका आधा बजट भी सही तरीके से खर्च हो जाए तो न जाने कितने ग्राम पंचायत माडल बन जाए। प्रधानों और सचिवों से बचता है, अधिकारी लॅूट लेते है। अधिकारी से बचता है, तो बाबू लोग समेट लेते है। हर कोई लूटने और समेटने में लगा हुआ हैं, कोई विकास करना नहीं चाहता, विनाश हर कोई कर रहा है।

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