जब डिप्टी ‘सीएमओ’ का अवैध ‘पैथालाजी’ चल सकता तो ‘शशि’ का क्यों नहीं?

जब डिप्टी ‘सीएमओ’ का अवैध ‘पैथालाजी’ चल सकता तो ‘शशि’ का क्यों नहीं?

जब डिप्टी ‘सीएमओ’ का अवैध ‘पैथालाजी’ चल सकता तो ‘शशि’ का क्यों नहीं?

बस्ती। जब से मीडिया में डिप्टी सीएमओ एके चौधरी के अवैध पैथालाजी चलने का मामला सामने आया, तभी से वे लोग और निष्ंिचत हो गए जो अवैध पैथालाजी का संचालन कर रहे हैं, कह रहे हैं, कि जब डिप्टी सीएमओ अपना अवैध पैथालाजी चला सकते हैं, तो हम लोग क्यों नहीं? डिप्टी सीएमओ ने एक ऐसा गलत नजीर पेश किया हैं, जिसका फायदा हर गलत काम करने वाला उठाना चाहेगा। वैसे तो स्वास्थ्य विभाग पंजीकरण के मामलें में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। बावजूद इसके परशुरामपुर में अवैध पैथालाजी का संचालन धड़ल्ले से हो रहा है। कस्बे की एक चर्चित पैथोलॉजी सेंटर द्वारा एक ही पंजीकरण पर परशुरामपुर क्षेत्र के विभिन्न बाजारों जैसे सिकंदरपुर, चौरी बाजार समेत आधा दर्जन से अधिक बाजारों में अवैध पैथालाजी सेंटर का संचालन हो रहा है। इसके अलावा गोण्डा जिले की सीमावर्ती क्षेत्र मसकनवा बाजार तक अवैध पैथोलॉजी का धंधा बरगद की तरह पांव पसार चुका है। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कार्रवाई से पहले धंधेबाजों को जानकारी हो जाती है। परशुरामपुर में बीते साल एक चर्चित  पैथालोजी सील की गई थी। जिले के आलाधिकारियो के मेहरबानी के चलते चंद दिनो में स्थिति सामान्य हो जाती है। फिर से धन्धे बाज सक्रिए हो जाते है।पशुरामपुर में कितनी  पैथालोजी पंजीकृत हैं स्वास्थ्य बिभाग को पता ही नही है या तो वाकई में बिभाग के पास इसका डाटा नही है या फिर बिभाग अबैध पैथालोजी पर कार्यवाही करने से मुह मोड रहा है।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से दावा किया जाता है कि पंजीकरण में नियमों का सख्ती से पालन होता है। विभाग के अधिकारी एक-एक कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं, लेकिन धंधेबाज उनसे चार कदम आगे चल रहे हैं। कार्रवाई के बाद भी यह अवैध धंधा बंद नहीं हो रहा है। पंजीकरण के दौरान शपथ पत्र, मौके पर ०हस्ताक्षर समेत फोटो भी लिया जाता है।

यहां पर तो एक सम्मानित अखबार के पत्रकार को एक चर्चित पैथालोजी सेन्टर पर कर्मचारी बना रखा  है। पत्रकार महोदय दलाल के रूप मे मोटर सायकिल पर अखबार का नाम लिखवाकर झोलाछाप चिकित्सको व मरीजों को बरगलाने में जुटे रहते है। उन पर पत्रकारिता का रौब जमाते है और  और मनमाने तरीके से अपने पैथौलाजी के पक्ष में पर्चा लिखवाते है । झोलाछाप, पैथालेजी और पत्रकारिता के गठजोड  गरीब मरीजो से मोटी रकम ऐठने का काम करते है। सूत्र बताते हैं कि मरीज की तरह से ही दलाल भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पर्ची लेकर अस्पताल में रहते हैं। डॉक्टर के कक्ष के पास इधर-उधर पर्चा लेकर घूमते हैं। इतने में मरीजों की जांच का पर्चा उनको मिल जाता है। इसके बाद वे चले गए। यह क्रम करीब सुबह से शाम तक चलता रहता है। कुछ चिकित्सक तो आने वाले मरीजों को एक चर्चित निजी पैथालोजी सेंटरों पर ही जांच की सलाह देते हैं। वहीं, पैथालोजी के कर्मचारी एक बडे अखबार के पत्रकार मोटर सायकिल पर अखबार के पत्रकार का सेम्बल लगा कर  चिकित्सकों के आसपास ही घूमते रहते हैं जो जांच का इशारा मिलते ही मरीज को अपने सेंटरों पर ले जाते हैं। जहां पर जांच के नाम पर मरीजों से मोटी रकम ऐंठ रहे हैं।

सूत्रों की माने तो अधिक रकम अर्जित करने के लिए मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। शहर से गांव तक बिना पैथोलॉजिस्ट और रजिस्ट्रेशन के अवैध पैथालोजी धड़ल्ले से संचालित की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि दलालों का पूरा नेटवर्क इसमें काम करता है। डॉक्टरों से सांठगांठ कर अपना धंधा चमका रहे हैं। हर पर्चे में जांच लिखवाते हैं। बताया जाता है कि यहां पर सेटिंग के अनुसार ही जांच को माना जाता है। ऐसे में मरीज विवश होकर वहीं पर जांच कराते हैं। जांच तो सेंटर पर सामान्य कर्मचारी ही कर देता

सूत्रों की माने तो इस पैथालोजी सेंटर संचालक मरीजों से बाहर की जांच के नाम पर मोटी रकम ले रहे हैं। खून, मलेरिया, पेशाब की जांच तो सेंटर का सामान्य कर्मचारी ही कर देता है, जबकि पैथोलॉजिस्ट के नाम पर तो केवल सेंटर ही चल रहे हैं। संचालक की आड़ में अन्य कर्मी मरीजों की जांच कर रहे हैं। परशुरामपुर में संचालित कुछ अस्पताल व नर्सिंग होम में आने वाले मरीजों को चिकित्सक यही पर जांच की सलाह देते हैं, यहां पर तो मरीजों की जांच अप्रशिक्षित लोगों की ओर से ही की जा रही है। इससे मरीजों के साथ जांच के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रुपये लिए जा रहे हैं। झोलाछाप भी पैथालोजी संचालकों से मिलकर आपस में मुनाफा बांट रहे हैं। बीमारी कोई भी हो, झोलाछाप अपने नेटवर्क वाले सेंटर पर जांच के लिए भेजते हैं। सामान्य बुखार हो या पेटदर्द हो तो भी यह जांच कराते हैं।

जांच के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। अवैध पैथालोजी में जांचों के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। कुछ पैथालोजी लैब अपने कलेक्शन सेंटर भी चला रहे हैं। इनमें से अधिकतर अस्पतालों के आसपास मौजूद हैं। यहां अप्रशिक्षित लोग ब्लड सैंपल निकालने से लेकर सभी जांचें करते हैं। गांवों-कस्बों तक कहीं एक कमरे में तो कहीं संकरी गलियों में पैथोलॉजी चल रही है। एक ही सैंपल की अलग-अलग रिपोर्ट आती है और रेट भी अलग-अलग है। सीएमओ दावा कर रहे हैं, कि बिना पंजीयन के कोई भी पैथालाजी का संचालन नहीं होने पाएगा। इनके दावे में कितनी सच्चाई हैं, यह षषि डायग्नोस्टिक सेंटर जैसे तमाम को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता।

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *