हम्हें सिर्फ रेडक्रास सोसायटी का अध्यक्ष पद चाहिए, बाकी ले जाइए!

हम्हें सिर्फ रेडक्रास सोसायटी का अध्यक्ष पद चाहिए, बाकी ले जाइए!

हम्हें सिर्फ रेडक्रास सोसायटी का अध्यक्ष पद चाहिए, बाकी ले जाइए!

बस्ती।

-क्या मानव सेवा को अध्यक्ष पद जरुरी, दूषित चुनाव प्रक्रिया का दूषित परिणाम, फिर टला रेडक्रास सोसायटी का चुनाव

-डाक्टर, नेता, पत्रकार, समाज सेवी, शिक्षाविद और व्यापारी मिलकर भी आमसहमति नहीं बना पाए

-पहली बार रेडक्रास सोसायटी में पद पाने की लगी रही होड़, डा, अनिल श्रीवास्तव और सरदार पप्पू अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने को रहे बेताब, दोनों ने ताकत का खूब किया प्रदर्शन

-चुनाव करके रेडक्रास का कार्यकर्त्ता नहीं बना सकता, दिखानी पड़ेगी सेवा भावना, काम करेगें तो पद पीछे दौड़ेगा, बुलाकर मिलेगा पदःअखिलेंद्र शाही

-अगर चुनाव प्रक्रिया का पालन किया गया होता तो चुनाव टालने की नौबत ना आतीःहरीश सिंह

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि क्या मानव सेवा के लिए अध्यक्ष पद होना अनिवार्य है? अगर नहीं हैं, तो फिर क्यों बुद्यवार को अध्यक्ष पद के लिए दो प्रत्याशियों में सहमति नहीं बन पाई? क्यों यह कहा गया कि अध्यक्ष पद दे दिजीए बाकी ले जाइए। दोनों में से किसी एक ने भी मानव सेवा के प्रति भावना नहीं दिखाया, अगर दिखाया होता तो रेडक्रास सोसायटी को एक नया अध्यक्ष मिल गया होता और जिले को स्पेशल एवाड्र भी मिल जाता। लेकिन जिसकी संभावना थी, वही हुआ, आखिर एक बार फिर रेडक्रास सोसायटी टल गया। कहा जा रहा हैं, कि अगर चुनाव प्रक्रिया ही दूषित रहेगी तो उसका परिणाम भी दूषित ही होगा। एक स्वर से सभी ने कहा कि जब चुनाव की प्रक्रिया ही नहीं निभाई गई तो चुनाव कैसे पारदर्षी होगा। जिस तरह पिछले कई महीनों से डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव और सरदार पप्पू गुट के लोग पद पाने के लिए जोरआजमाईश कर रहे थे, रेडक्रास सोसायटी का दो-दो ग्रुप चल रहा था, उससे सदस्य परेशान हो गए, शब्दयुद्व छिड़ गया था। डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव ने अपनी पीड़ा को बताते हुए कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे अपषब्दों का इस्तेमाल किया गया, जिसका बैठक में नाम तक नहीं लिया जा सकता। इस पर चुनाव आब्जर्वर अखिलेंद्र शाही ने सिर्फ एक ग्रुप चलाने का निर्देश दिया, जिसके एडमिन एसडीएम होगे। ऐसा लग रहा था, कि मानो किसी को मानव सयेवा से नहीं बल्कि पद से मतलब। रही सही कसर दूषित चुनाव प्रकिया ने पूरी कर दी, ऐसा लगता हैं, कि मानो पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने की मंषा ही किसी की नहीं। चुनाव पर्यवेक्षक ने बहुत प्रयास किया कि पदाधिकारियों का चुनाव  दोनों गुटों की सहमति से हो जाए, इसके लिए उन्होंने यहां तक कहा कि अगर पदाधिकारियों का चुनाव सहमति से हुआ तो वह जिले को स्पेशल एवार्ड दिलवाने का प्रयास करेगें। यह भी कहा कि जिस जिले में आम सहमति से पदाधिकारियों का चयन हुआ, वहां के लोगों की सराहना हुई। उन्होंने कहा भी मानव सेवा पहला धर्म हैं, पद पाना धर्म नहीं है। बिना पद के ना जाने कितने रेडक्रास सोसायटी के सदस्यों ने यह दिखा दिया कि मानव की सेवा करने के लिए पद का होना आवष्यक नहीं है। कहा कि यह पहला ऐसा मानव सेवा संगठन, इंटरनेशनल रेडक्रास सोसायटी हैं, जिसे तीन बार नावेल पुरस्कार मिल चुका है। उदाहरण देते हुए कहा कि हमास ने जब बंदियों को रिहा किया तो उन्हें सेना के हवाले नहीं बल्कि रेडक्रास सोसायटी के हवाले किया। महाकुंभ मेले में भी चार लोगों की जान इसी सोसायटी के लोगों ने बचाया। कहा कि दुनिया का यह पहला ऐसा मानव सेवा संगठन है, जिसका इतना नाम है।

अगर जिले में सोसायटी का पद पाने के लिए गुटबाजी होगी तो बदनामी जिले की होगी, अगर इस जिले के डाक्टर्स, इंजीनियर्स, अधिवक्ता, व्यापारी, नेता, पत्रकार, शिक्षाविद, गुरुजी, बैंकर्स और अपने आप को बड़ा समाज सेवी कहने वाले लोग मिलकर एक अध्यक्ष नहीं दे पाए तो यह जिले के लोगों का दुर्भाग्य है। सहमति नहीं बना पाए, तो इसे किसकी गलती मानी जाए। चुनाव प्रक्रिया के स्थान पर आम सहमति से पदाधिकारियों के चयन का जो फारमूला आब्जर्वर अखिलेंद्र शाही की ओर से प्रस्तुत किया गया, उसकी सभी ने सराहना की, लेकिन किसी को क्या मालूम था, कि यह फारमूला भी उन लोगों के सामने फेल हो जाएगा, जो पद के लिए गुटबाजी कर रहे थे। डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव और पप्पू सरदार में अन्य पदों पर तो सहमति बन गई, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए नहीं बनी। जिसका नतीजा कोरम के अभाव में चुनाव टालने के रुप में रहा। पद की लालसा रखने वालों का चेहरा भी लोगों के सामने खुलकर सामने आ गया, पता चल गया कि यह लोग कितने बड़े मानव सेवक हैं।

मामला चार फरवरी 25 को रात साढ़े दस बजे तब गरमा गया, जब सीएमओ की ओर से 369 में से 285 सदस्यों की ही सूची जारी की गई। इसके तहत चुनाव तभी हो सकता, जब दो तिहाई यानि 190 सदस्य मौजूद रहते। जब दोनों अध्यक्ष पद के प्रत्याषी के बीच सहमति नहीं बन पाई, तब चुनाव कराने का एलान हुआ, लेकिन जब सदस्यों की गिनती हुई तो पता चला कि 190 सदस्य से कम है। इस लिए चुनाव को कोरम के अभाव में टाल दिया गया। अगर दोनों में अध्यक्ष पद की सहमति बन जाती तो प्रदेश में जिले का नाम होता, और जिले को इसके लिए स्पेशल एवार्ड भी मिलता। बिना पुरानी समिति को भंग किए नई समिति का गठन ही नहीं हो सकता। हरीश सिंह ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया का पालन ही नहीं किया, सवाल उठाया कि क्या कोई चुनाव, मतदाता सूची जारी होने के चंद घटों में पूरा किया जा सकता? यह भी कहा कि चुनाव में किसी की मोनोपाली नहीं होनी चाहिए। कहा कि अगर मतदाता सूची समय से प्रकाशित हो गई होती तो चुनाव को टालना नहीं पड़ता। सदस्य पहले ही महाकुभं मेले को लेकर चुनाव टालने की मांग करते आ रहे है। कारोबारी अषोक कुमार सिंह ने कहा कि अगर सहमति नहीं बनी और चुनाव हुआ तो आपसी वैमस्यता बढ़ेगी। इनका समर्थन षिक्षक एवं कांग्रेस नेता अनिरुद्व त्रिपाठी, डा. हरि ओम श्रीवास्तव और षब्बू सहित अन्य लोगों ने भी किया। इस चुनाव से यह साबित हो गया कि दो गुट के बीच सहमति बनने वाला फारमूला आगे भी फेल रहेगा। क्यों कि जो लोग पद के लिए मारामारी कर रहे हैं, उनमें अनेक लोगों को मानव सेवा से उतना सरोकार नहीं जितना उनसे अपेक्षा की जाती है। यहां के नामचीन लोगों ने यह बता दिया कि उनके भीतर मानव सेवा की कितनी भावना है। अगर किसी को यह गलतफहमी हैं, कि वह गुटबाजी से अध्यक्ष या फिर सचिव का पद हासिल किया जा सकता हैं, तो उनकी गलतफहमी है। यह गलतफहमी अगर ओपेन चुनाव हो जाता तो दूर भी हो जाता। वैसे सबसे अधिक चिकित्सक वर्ग की संख्या देखने को मिली। इनकी गोलबंदी भी देखने को मिली। मतदान में हिस्सा लेने आए अनेक ऐसे सदस्य रहें, जिन्होंने कहा कि क्या मानव सेवा करके लिए अध्यक्ष पद होना आवष्यक है।

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