फैज साहब बताइए आखिर सीएचसी गायघाट क्यों नहीं छोड़ना चाहते?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 9 July, 2025 20:41
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फैज साहब बताइए आखिर सीएचसी गायघाट क्यों नहीं छोड़ना चाहते?
-डाक्टर फैज साहब आखिर आपको इस सीएचसी से इतना लगाव और प्रेम क्यों?
-क्यों आप अंगद की तरह 13 साल से सारे नियम कानून तोड़कर सीएचसी में जमे हुए?
-कहीं ऐसा तो नहीं आप अपने चहेते मेडिकल स्टोर्स और नर्सिगं होम के कारण सीएचसी छोड़ना नहीं चाहतें
-डाक्टर साहब आप मरीजों के कम और मेडिकल स्टोर्स, ठेकेदार और नर्सिगं होम के चहेते अधिक
-डाक्टर साहब आप तो मरीजों को देखते नहीं, आप का अधिकतर समय कहां से और कैसे पैसा आए में लग जाता
-अगर आप बजट का 30-35 लाख रुपया सीएचसी के रखरखाव पर खर्च किया होता तो भवन न टपकता
-डाक्टर साहब आखिर आप कब तक सीएमओ के रहमो करम पर सीएचसी गायघाट, पीएचसी कुदरहा एवं पीएचसी बानपुर को खोखला करते रहेगें
-डाक्टर साहब बताइए पीएचसी बानपुर जहां पर सबसे अधिक डाक्टर की आवष्यकता हैं, वहां पर फार्मासिस्ट क्यों अस्पताल चला रहा, क्यों डाक्टर अष्वनी यादव सीएचसी गायघाट में ओपीडी कर रहें
बस्ती। सीएचसी गायघाट के एमओआईसी डा. फैज वारिश के पास इस बात कोई जबाव नहीं होगा कि यह आखिर क्यों नहीं सीएचसी गायघाट छोड़ना चाहते? इसी तरह सीएमओ के पास भी इस बात का कोई जबाव नहीं होगा कि आखिर यह किस नियम और कानून के तहत 13 साल से सीएचसी गायघाट में तैनात हैं? सीएमओ और एमओआईसी के पास इस बात का भी कोई जवाब नहीं होगा कि मांझा क्षेत्र में स्थापित जहां पर डाक्टर की सबसे अधिक आवष्यकता है, वहां के डाक्टर अश्वनी यादव को क्यों सीएचसी गायघाट में ओपीडी करने को रखा गया? और क्यों पीएचसी बानपुर को एक फार्मासिस्ट के हवाले किया गया? फैज साहब आखिर सीएचसी गायघाट में ऐसा क्या हैं, जहां पर आप 13 सालों से अंगद की तरह पैर जमाए हुएं है। ऐसा भी नहीं कि आप सीएचसी गायघाट क्षेत्र के लोगों के लिए भगवान की तरह है। बल्कि यहां के लोग वाहते हैं, कि जितनी जल्दी हो सके आप गायघाट छोड़ दें, जितनी जल्दी आप चले जाएगें उतना अधिक मरीजों के लिए अच्छा रहेगा। डाक्टर साहब आप की इमेज भले ही मरीजों में अच्छी न हो लेकिन मेडिकल स्टार्स, नर्सिगं होम और ठेकेदारों में बहुत अच्छी है। आप को इन सभी का चहेता माना जा रहा है। जिस दिन आप गायघाट छोड़कर चले गए उस दिन क्षेत्र की जनता मिठाई बाटेंगी। वहीं आप के चहेते आप के लिए यह सोचकर रोएगें कि ऐसा कमाए डाक्टर कहां मिलेगा। डाक्टर साहब यही सवाल कुदरहा पीएचसी का भी हैं, यह पीएचसी चर्चित फार्मासिस्ट जय प्रकाश चौधरी के हवाले क्यों किया गया? डाक्टर साहब आप का काम ओपीडी करना हैं, लेकिन आप मैनेज करने के चक्कर में हमेशा लगे रहते है। आप डाक्टर कम और मैनेजर अधिक लगते है। आप को याद भी नहीं होगा कि इन 13 सालों में आपने कितनी ओपीडी की होगी? डाक्टर साहब आप अगर रखरखाव के मद में हर साल मिलने वाले 30-35 लाख के बजट का 25 फीसद भी सही कामों में खर्च किया होता तो भवन न टपकता। सरकार इतना धन देती है, कि अगर उसका आप सही कामों में इस्तेमाल कर दें कि कोई भी मरीज न तो बाहर जाएगा और न कोई भी मरीज बाहर से दवा ही खरीदेगा? तीन साल के बाद एचओडी बदल जाते हैं, लेकिन क्या वजह है, कि आप 13 साल में भी नहीं बदले गए। डाक्टर साहब उपर वाले का रहम और करम हैं, कि आप को गरीबों की सेवा करने का मौका मिला, लेकिन सेवा करने को कौन कहे, आप मेवा खाने में मस्त रहे। भगवान बनना तो बहुत दूर की बात एक अच्छा डाक्टर और एक अच्छा इंसान भी आप मरीजों की नजर में नहीं बन पाएं। डाक्टर साहब चिंता न करिए, आप अकेले नहीं हैं, जिन्हें मरीज खून चुसवा डाक्टर कह कर बुलाती है। आप जैसे और भी एमओआईसी है, 12-13 साल से एक ही स्थान पर जमे हुएं है। इनमें रुधौली के डाक्टर आनंद मिश्र यह 9-10 साल तक से जमे हुएं है। भानपुर के डाक्टर सचिन 12-13 साल से और इन्हीं के नक्षे कदम पर गायघाट के डाक्टर फैज वारिश है। इन तीनों एमओआईसी के बारे में सीएमओ यह नहीं बता पा रहे हैं, आखिर यह तीनों इतने सालों से एक ही सीएचसी पर क्यों तैनात? इन तीनों पर सरकारी धन का दुरुपयोग, मरीजों का षोषण करने का आरोप लग रहा है। खासबात यह है, कि इन तीनों पर अपने-अपने चहेते मेडिकल स्टोर, पैथालाजी, अल्टासांउड और एक्सरे सेंटर बिना लाइसेंस के चलाने का आरोप लगता रहा है। सीएमओ के कार्रवाई करने से पहले यह तीनों एमओआईसी मैनेज कर देतें है। एक तरह से यह तीनों सीएमओ और सीएमओ तीनों के लिए कमाई का जरिया बन गएं है। ऐसा लगता है, मानो तीनों एमओआईसी सीएचसी को अपने नाम करवा लिया। क्षेत्र के लोगों का दावा है, कि अगर तीनों एमओआईसी को बदल दिया जाए तो सीएचसी का कायाकल्प तो होगा ही नकली दवाओं का कारोबार करने वाले मेडिकल स्टोर का धंधा भी चौपट हो सकता है, मरीजों को दवांए सहित अन्य सुविधा भी मिलने लगेगी, और यह तभी संभव होगा, जब कोई ईमानदार और तेजतर्रार डीएम और सीएमओ आएगें। डीएम तो ईमानदार आ सकते हैं, लेकिन सीएमओ ईमानदार नहीं आ सकते। जब तक गायघाट, रुधौली और भानपुर के एमओआईसी हर साल मार्च या अप्रैल में सीएमओ के टेबुल पर तीन-तीन लाख पहुंचाते रहेंगे तब तक मरीजों का खून चूसना जारी रहेगा। मरीजों का खून चूसने में एमओआईसी को उतना दोषी नहीं जितना सीएमओ को माना जा रहा है।
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