एसओ छावनी ने छेड़छानी की शिकार दो बहनों का भरोसा तोड़ा!

एसओ छावनी ने छेड़छानी की शिकार दो बहनों का भरोसा तोड़ा!

एसओ छावनी ने छेड़छानी की शिकार दो बहनों का भरोसा तोड़ा!


-एफआईआर दर्ज करने से पहले ही दोनों बहनों को ही पुलिस ने दोषी मान लिया, और जिसने गुनाह किया, उसे बेगुनाह साबित कर दिया

-छेड़छानी की शिकार दोनों बहने चूंकि गरीब हैं, इस लिए पुलिस ने दुत्कार दिया, टोल प्लाजा वाले अमीर है, इस लिए उनका साथ दिया, क्या यही पुलिस का न्याय

-एसओ साहब अगर दोनों बहने दोषी होती तो 112 क्यों बुलाती और क्यों तहरीर देती? दोषी लड़कियां नहीं बल्कि आप है, क्यों कि आपने एफआईआर नहीं लिखा और टोल प्रबंधक की मदद किया

-पुलिस की तरह टोल प्लाजा प्रबंधक ने दोनों बहनोें को दोषी मानते हुए नौकरी से निकाल दिया ओैर जिसने छेड़छानी किया उसे नौकरी में बने रहने का ईनाम दे दिया

-पुलिस ने उस विकास ओझा नामक इलेक्टिसिएन को भी नहीं उठाया, जिस पर दोनों बहनों ने छेड़छानी का आरोप लगाया, इसका एक आडियो वायरल हुआ, जिसमें यह कह रहा है, कि लड़कियों का उसके पास पांच वीड़ियो हैं, अगर पुलिस के पास गई तो वायरल कर दूंगा

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि पुलिस आखिर किसकी मदद करने के लिए बनी है, पीड़ित/पीड़िता की या आरोपी की। इसी लिए पुलिस पर बार-बार आरोपियों का बचाव करने के आरोप लगते रहे हैं। न्यायालय बार-बार कह रही है, कि पुलिस पहले एफआईआर दर्ज करे उसके बाद छानबीन करें, लेकिन बस्ती की पुलिस खासतौर से छावनी की पुलिस पहले बिना एफआईआर दर्ज किए छानबीन करती है, और छेड़छानी की शिकार टोल प्लाजा चौकड़ी में कार्यरत दोनों बहनों को दोषी मानते हुए आरोपी को क्लीन चिट दे देती है। दोनों बहने चिल्लाती रह जाती कि उसके साथ टोल प्लाजा के इलेक्टिसिएन विकास ओझा ने छेड़छानी किया, लेकिन पुलिस सुनने को तेैयार ही नही। एसओ साहब अगर दोनों बहने दोषी होती तो क्यों 112 बुलाती और क्यों आपके पास एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर देती? एसओ साहब जिस तरह आपने दोनों पीड़ित लड़कियों को न्याय नहीं दिलाया, उसी तरह टोल प्लाजा वालों ने भी न्याय नहीं दिया, न्याय देने को कौन कहें दोनों बहनों को नौकरी से निकाल दिया। एसओ साहब आपने उस आरोपी विकास ओझा को भी नहीं उठाया, जो वायरल आडियो में कह रहा है, कि अगर लड़कियां पुलिस के पास गई तो पांच वीडियो वायरल कर दूंगा। जो दोनों गरीब लड़कियां परिवार का सहारा थी, उसे आपने बेसहारा कर दिया। सवाल उठ रहा है, आखिर जनता आप पर विष्वास करे तो क्यों और कैसे करें? जब आप पीड़िता/पीड़ित की सुनेगें ही नहीं, सुनना और न्याय देना तो दूर की बात है, एक पक्षीय निर्णय सुना देगें। दोनों बहनों और मीड़िया को यह बात समझ में नहीं आई कि पुलिस की निगाह में कैसे दोनों लड़कियां दोषी हो गई? एसओ साहब बहनें दोषी होती तो आपके पास न जाती। लेकर देकर मामला वहीं समाप्त कर देती। कोई भी लड़की जिस संस्था में कार्य करती है, उस संस्था को बदनाम करना नहीं चाहेगी, क्यों कि उसे अच्छी तरह पता रहता है, कि अगर हम संस्था के खिलाफ गए तो नौकरी चली जाएगी। एसओ साहब जरा सोचिए क्या दोनों बहनों को अपनी नौकरी नहीं प्यारी। आपने दोनों बहनों के साथ न्याय न करके अपराध और अपराधी को बढ़ावा देने का काम किया। पता नहीं इसके लिए उपर वाला आपको माफ कर पाएगा कि नहीं?   

बकौल दोनों लड़कियां और पुलिस को दी गई तहरीर के अनुसार घटना दोनों लड़किया दुबौलिया थाना क्षेत्र के एक गरीब परिवार से जुड़ी है। बताया कि दोनों बहने टोल प्लाजा के बूथ संख्या दो और चार में टीसी का काम करती है। 26 जुलाई 25 को एक फास्ट टैग रीड कराने के लिए अमित सिंह नामक सुपरवाइजर से कहा तो वह गाली गलौज करने लगें, बेशर्मी भाषा में अपमानित किया और मारपीट भी किया। जान से मारने की धमकी दिया। इसके बाद मेरी बहन जो मेरे साथ बूथ संख्या दो पर कार्य कर रही थी, वह सुनकर भागी आई, लेकिन वह लोग दोनों बहनों पर टूट पड़े। कहा कि कुछ दिनों से दीपेंद्र नामक इंचार्ज मेरी कहन को परेशान कर रहा था। आज उसी के कहने पर हम बहनों के साथ बदतमीजी की गई। अंगद, विवेक, दीपेंद्र, अमित और विकास ही सारी घटना के जिम्मेदार है। चूंकि पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं किया इस लिए कानूनी रुप से सही और गलत का फैसला नहीं हो पाएगा। बहरहाल, कोई जरुरी नहीं कि आरोप लगाने वाला सही हो, वह भी गलत हो सकता है। चूंकि पुलिस की छवि इतनी खराब हो चुकी है, कि कोई आसानी से इन पर विष्वास करने को तैयार नहीं है। पुलिस भी अपनी छवि को बेहतर बनाने का प्रयास नहीं कर रही है।

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