डा. आनंद आप क्यों डा. फैज के रास्ते पर चल रहें?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 11 July, 2025 20:25
- 10

डा. आनंद आप क्यों डा. फैज के रास्ते पर चल रहें?
-गायघाट सीएचसी के एमओआईसी डा. फैज वारिश के बताए रास्ते पर रुधौली सीएचसी के एमओआईसी डा. आंनद मिश्र भी चल पड़े
-दोनों का मकसद, ऐनकेन प्रकरण सरकारी धन का दुरुपयोग करना और मरीजों का इलाज, भर्ती और दवा के नाम पर अधिक से अधिक खून चूसना
-डा. फैज अगर 13 साल से सीएचसी गायघाट में तो डा. आनंद 15 साल से सीएचसी रुधौली में अंगद की तरह जमे हुएं
-इन दोनों के आगे सरकार भी फेल हैं, इनके साथ वाले एमओआईसी का 15 साल में पांच बार तबादला नीति के तहत तबादला हो चुका
-जब भी मार्च या अप्रैल आता, डा. फैज की तरह यह भी सीएमओ के टेबुल पर तीन लाख पटक आते हैं, जाहिर सी बात हैं, गेहूं बेचकर तो दिए नहीं होगें, अवष्य गरीब मरीजों का खून चूसा होगा
-डा. आनंद मिश्र और डा. फैज वारिश की कार्यशैली में कोई फर्क नहीं, दोनों की मंशा सरकार की छवि खराब करने की
-डाक्टर चाहें सरकारी हो या प्राइवेट दोनों की मंशा मरीजों का खून चूस-चूस कर अधिक से अधिक संपत्ति अर्जित करना रहता, प्राइवेट डाक्टर्स की संपत्तियों तो दिखाई देती
-लेकिन सरकारी डाक्टर्स के लूटपाट का पता मीडिया को छोड़कर आम जनता को नहीं चलता, इनकी संपत्ति इस लिए नहीं दिखाई देती क्यों कि यह बाहर के होते हैं, और अपनी सारी काली कमाई को यह बाहर ही इंवेस्ट करते
बस्ती। डाक्टर चाहें सरकारी हो या प्राइवेट दोनों की मंशा मरीजों का खून चूस-चूस कर अधिक से अधिक संपत्ति अर्जित करना रहता है। प्राइवेट डाक्टर्स की संपत्तियों तो दिखाई देती है, लेकिन सरकारी डाक्टर्स के लूटपाट का पता मीडिया को छोड़कर आम जनता को नहीं चलता। इनकी संपत्ति इस लिए नहीं दिखाई देती क्यों कि यह बाहर के होते हैं, और अपनी सारी काली कमाई को यह बाहर ही इंवेस्ट करते है। एक तरह से इन्हें सरकारी लूटेरा भी कहा जाता है। देखा जाए तो सरकारी डाक्टर्स साइलेंट एकोनामिक क्राइम करते है। यह सरकारी धन को तो लूटते हैं, ही मरीजों का खून भी चूसते है। बाहर की दवा लिखने और जांच कराने के नाम पर यह लोग प्रति दिन भारी रकम कमीशन के रुप में लेते। हालांकि यह नेककाम तो प्राइवेट डाक्टर्स भी करते हैं, अगर न करते तो कोई डाक्टर मेलकाम नामक दवा की कंपनी से दस करोड़ का अनुबंध न करता। इनके हाथ से मरने वाले मरीजों की जानकारी भी आम लोगों को नहीं हो पाती, वहीं पर अगर किसी की मौत प्राइवेट अस्पताल में हो जाती, तो हंगामा बरपा हो जाता है।शर्माजी जैसे बड़े और नामी डाक्टर को अधिकारियों का पैर पकड़कर गिड़गिड़ाना भी पड़ता है। बहरहाल, चोर, बेईमान, लुटेरा और खून चूसने का आरोप तो सरकारी और प्राइवेट दोनों डाक्टर्स पर मरीज लगाते आ रहे है। मीडिया की नजर भी सबसे अधिक प्राइवेट डाक्टर्स पर ही रहती है। कोई भी घटना होती है, बड़ी तादात में मीडिया त्वरित पहुंच जाती, वहीं सरकारी अस्पतालों में पहुंचती तो हैं, लेकिन देर से, और संख्या भी न के बराबर रहती है। यह अंतर क्यों हैं, यह लिखने की नहीं बल्कि समझने की आवष्यकता है।
हम बात कर रहे थे, कि क्यों रुधौली सीएचसी के एमओआईसी गायघाट के एमओआईसी के नक्षेकदम पर चल रहे है। जिस तरह डा. फैज 13 साल जमे हुए हैं, उसी तरह डा. आनंद मिश्र भी लगभग 15 साल से जमे हुएं है। देखा जाए तो दोनों की कार्यशैली में कोई विशेष अंतर नहीं है। दोनों का मकसद सरकारी धन को लूटना और मरीजों के नाम पर कभी दवा तो कभी जांच और कभी भर्ती के नाम पर नर्सिगं होम, मेडिकल स्टोर, पैथालाजी, अल्टासाउंड और एक्सरे के बहाने कमीशन खाना है। मरीजों की माने तो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रूधौली में भ्रष्टाचार का जमकर बोल वाला है। यहां पर लगभग तीन जनपद के मरीज आते है। लगभग प्रतिदिन ढाई सौ से तीन सौ मरीज अपनी गंभीर समस्याओं को लेकर सीएचसी आते हैं, इनमें 99 फीसद गरीब मरीज होते है। इन गरीबों को यह तक मालूम नहीं रहता कि उन्हें कौन सी बीमारी है। यह लोग इस अस्पताल आते हैं, ताकि इन्हें एक ही छत के नीचे सभी मर्ज का इलाज हो सके। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकतर मरीज को बाहर जांच और दवा के नाम पर लूटा जाता है। उससे भी बड़ी बात यह कि इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत कुल चार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित है। लेकिन विगत कई वर्षों से एक भी डाक्टर तैनात ना होने से मरीज को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मुगरहा, डुमरी, दयानगर हनुमानगंज, सहित नवनिर्मित बिजलपुर भी शामिल है। यहां पर मनमानी तरीके से अप्रशिक्षित फार्मासिस्ट जैसा चाहते हैं, अस्पताल चलाते है। अस्पताल में तैनात कुछ कर्मचारी से वार्ता करने पर पता चला कि इनका बात व्यवहार ठीक नहीं है। गर्भवती महिलाओं को कभी भी भोजन व फल तो दिया ही नहीं जाता उल्टे गर्भवती के नाम पर 2 से 3 हजार रुपए भी ले लिया जाता है। स्थानीय लोगों से पता चला कि प्रभारी चिकित्सा अधिकारी कभी रात्रि निवास नहीं करते जब कि उनके तीन अन्य सहयोगी डॉक्टर ड्यूटीवार इमरजेंसी में ही इलाज करते हैं। मामला ज्यादा गंभीर होने के बाद ही यहां पर डॉक्टर अपने कमरे से निकलकर फोन पर ही आते हैं। यदि कोई मरीज गंभीर अवस्था में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो यहां पर तैनात वार्ड बॉय अथवा फार्मासिस्ट ही जिला अस्पताल रेफर कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ देते है।
सूत्र से पता चला कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी आनंद मिश्रा दूसरी बार यहां पर स्थानांतरण होकर आए हैं इसके पहले भी वर्ष 2016-17 में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर अपनी सेवा दे चुके हैं। मामला तूल पकड़ने पर इनका स्थानांतरण सल्टोैआ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर हो गया था, लेकिन कुछ वर्षों बाद फिर से प्रभारी चिकित्साधिकारी के तौर पर हो गया। लगभग ढाई साल से तैनाती के दौरान रात्रि निवास न करने से अन्य डॉक्टरों में भी रोष है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रुधौली में महिला डॉक्टर के तौर पर अटैच है वह भी बहुत कम ही समय अस्पताल को देती हैं। इनका खुद का एक अस्पताल चलने से ज्यादातर मरीजों की भीड वहां लगी रहती है। इलाज के नाम पर अच्छा खासा धन इकट्ठा करने में लगी रहती हैं। विगत कई वर्षों से तैनात महिला डॉक्टर आनकॉल ही आती जबकि वेतन पूरा उठाती है। सूत्रों से अभी पता चला कि अस्पताल में तैनात आउटसोर्सिंग कर्मचारियों से भी प्रतिमाह हजार रुपए की धनउगाही मात्र इसलिए की जाती है ताकि समय से अटेंडेंस चला जाए। अन्यथा वेतन बाधित हो जाता है। भ्रष्टाचार की अगली कड़ी में यहां पर तैनात अमरीश श्रीवास्तव नाम के बड़े बाबू सिर्फ कागजों में तैनात है। जबकि असल ड्यूटी तीन साल पूर्व रिटायर्ड कर्मचारी राम लखन बाबू के तौर पर कार्य करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।
वही स्थानीय लोगों का कहना है कि एक ही डॉक्टर ओपीडी भी देखता और मरीज का देखभाल भी करते। जबकि अन्य डॉक्टर अपने-अपने गंतव्य को ड्यूटी के बाद चले जाते हैं। अस्पताल में तैनात एमओआईसी सहित चार डॉक्टर है, जिसमें संजय चौधरी पहले डुमरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी थे, जब अनिल मौर्य मुंगरहा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी के तौर पर जाने जाते थे, लेकिन मरीजों की संख्या ज्यादा होने के चलते यह अपनी ड्यूटी सामुदायिक स्वास्थ्य की रुधौली में ही देते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी पर जन्म प्रमाण पत्र के नाम पर भी समय अनुसार 500 से 1000 रुपए लेने का आरोप लग रहा है। यहां पर बना महिला शौचालय पूरी तरीके से बंद पड़ा रहता है। बाहर पिंक शौचालय भी बना है वहां की स्थिति बद से बदतर होने से मरीज नहीं जाना चाहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना हैं, कि सीएचसी और पीएचसी में भ्रष्टाचार होने का सबसे बड़ा कारण एमओआईसी का 15 साल से तबादला न होना।
Comments