भाजपा सरकार में मंत्री और विधायक बन गए नौकर!

भाजपा सरकार में मंत्री और विधायक बन गए नौकर!

भाजपा सरकार में मंत्री और विधायक बन गए नौकर!

-जब सड़के सूनी हो और खामोशी घनी हो तो तंत्र बेलगाम हो जाता

-जब से विपक्ष लकवाग्रस्त हुआ, तब से भाजपा की सरकार में अधिकारी मनमानी करने लगे

-कभी यही अधिकारी और प्रशासनिक व्यवस्था समाजवादी पार्टी की होती थी

-मंत्री, विधायक और सांसद जनता का पेट भरने के लिए नहीं बल्कि अपना पेट भरने के लिए बनते

-कई जिलों में मंहगे-मंहगें प्लाट, जमीनंे, बंगला, कई गाड़ी, घोड़ा, सोना, चांदी, हीरामोती, बैंक बढ़ जाता

-सबका साथ सबका विकास के नाम पर दिनदहाड़े देश की संपत्ति लूटी जा रही

आगे नाथ न पीछे पगहा, विपक्ष चिरकुट और पक्ष बाबा के सोटा, नेता कहते हैं, कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते, लेकिन जब अपना काम हो तो अधिकारी सब सुनने लगते

बस्ती। राजनीतिक शून्यता सरकारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। धरना, प्रदर्शन, आंदोलन सरकारी अधिकारियों के गले की फंास बनती। अगर इन्हें नाथना है, तो सभी दलों के नेताओं को तो थोड़ी सी बदतमीजी करनी ही पड़ेगी। आप यह कह कर नहीं बच सकते कि मैं भाजपा से हूं, अधिकारी नहीं सुनते, विपक्ष भी यह कहकर नहीं बच सकता कि मैं सरकार में नहीं हूं, कुछ कर नहीं सकता। फिर सवाल उठता है, कि जनता ने आप लोगों को चुना क्यों? आपका काम जनता के हितों के लिए लड़ाई लड़ना हैं, न कि ज्ञापन देकर घर भाग जाना। अगर नेता जनता की समस्याओं के लिए नहीं लड़ सकते तो पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए। इसी पोस्ट पर खूब कमेंट हुए। कमेंट के जरिए एक तरह से लोगों ने पक्ष और पिनक्ष के नेताओं को धोकर रख दिया। इतना तक कह दिया कि जब जिम्मेदारी नहीं निभा सकते तो क्यों नहीं इस्तीफा दे देते। क्या जनता ने आप लोगो सरकारी धन लूटने के लिए चुना? क्या आप लोगों का उस जनता के प्रति कोई भी दायित्व नहीं, जिसने आप को राज गददी पर बैठाया। आम नागरिकों का जो अपने नेताओं के प्रति रोष व्याप्त हैं, उससे पता चलता है, कि नेता अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाए सरकारी धन को लूटने में मस्त है। तभी तो अजय मिश्र ने लिखा कि मंत्री, विधायक और सांसद जनता का पेट भरने के लिए नहीं बल्कि अपना पेट भरने के लिए बनते है। कई जिलों में मंहगे-मंहगें प्लाट, जमीनंे, बंगला, कई गाड़ी, घोड़ा, सोना, चांदी, हीरामोती, बैंक बढ़ जाता हैं, यह लोग सबका साथ सबका विकास के नाम पर दिनदहाड़े देश की संपत्ति लूट रहें है। स्वामी उमेश रामाश्रयी लिखते हैं, कि जब सड़कें सूनी हो और खामोशी घनी हो तो समझ लेना चाहिए कि तंत्र बेलगाम हो गया है। अखिलेश शुक्ल उर्फ मंटू लिखते हैं, कि जब से विपक्ष लकवाग्रस्त हुआ, तब से भाजपा की सरकार में अधिकारी मनमानी करने लगे हैं। विपक्ष का लकवाग्रस्त होना जिले के लोगों के सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा। पत्रकार अनूप मिश्र लिखते हैं, कि कभी यही अधिकारी और प्रशासनिक व्यवस्था समाजवादी पार्टी की होती थी। भले ही पार्टी के लोग दादागिरी करते थे, लेकिन अधिकारी बेलगाम नहीं हो पाते थे। राम कृष्णा सोनी लिखते हैं, कि भईया जी यह सभी नेता जनता के लिए काम के लिए नहीं काम करते, कहते हैं, कि अधिकारी हमारी सुनते ही नहीं, लेकिन जब अपना काम होता है, तो वही अधिकारी सुनने लगता है, जिसके बारे में नेता कहते हैं, कि अधिकारी सुनते ही नही। विवेक ओझा लिखते हैं, कि आगे नाथ न पीछे पगहा, विपक्ष चिरकुट और पक्ष बाबा के सोटा। जब तक नेता नहीं बनते, तब तक जनता से कहते रहते हैं, कि नेता बना दीजिए, फिर देखिए हम आप लोगों के लिए क्या नहीं कर देगें, लेकिन जैसे ही नेता बन जाते हैं, सबसे उसी जनता की उपेक्षा करते हैं, जिनकी बदौलत नेता बने। देखा जाए तो आज के दौर में सबसे अधिक नेता ही धोखेबाज होता है। मानो धोखा देना इनकी फिदरत में शामिल है।

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