बीएसए साहब, अखिलेश मिश्र की आत्मा भटक रही, चैन से सोने नहीं देगी!

बीएसए साहब, अखिलेश मिश्र की आत्मा भटक रही, चैन से सोने नहीं देगी!

बीएसए साहब, अखिलेश मिश्र की आत्मा भटक रही, चैन से सोने नहीं देगी!

-दुनिया की यह पहली ऐसी श्रद्धांजलि हैं, जो एक शशिक्षक को उसके मौत के दिन ही उसकी बहाली करके श्रद्धांजलि दी गई

-चार माह से बहाली का इंतजार करने वाले अखिलेश मिश्र को उस समय बहाली मिली, जब वह दुनिया से चले गए

-इतने दिनों से निलंबन और वेतन ना मिलने का तनाव अखिलेश मिश्र नहीं झेल पाए और उनकी मृत्यु ब्रेन हैमरेज से हो गई

-जो बीएसए शिक्षकों को अपने परिवार का सदस्य कहते हैं, उसी सदस्य के मौत का कारण खुद बीएसए बने,

-अनैतिक तरीके से किए गए निलंबन का जबरदस्त विरोध करने वाले शिक्षक संगठनों के नेता मौत के दिन बहाली पर ना जाने क्यों खामोश? फोटो पर फूल माला चढ़ाकर दायित्वों को पूरा कर दिया

-अखिलेश मिश्र का निलंबन भी एतिहासिक रहा और बहाली भी एतिहासिक रहा, भ्रष्टाचार का विरोध करने पर इन्हें निलंबित किया गया, और जब यह दुनिया में नहीं रहें तो आनन-फानन में बहाल कर दिया गया

बस्ती। बेसिक विभाग का एक ऐसा जांबाज शिक्षक दुनिया से चला गया, जो बीएसए और एबीएसए के भ्रष्टाचार का निरंतर विरोध करता था, देश के यह पहले ऐसे शिक्षक होगें जिन्हें भ्रष्टाचार का विरोध करने की सजा निलंबन और मौत दोनों के रुप में मिली। बीएसए ने बहाल करके एक तरह श्रद्धाजंलि  दी है। सवाल उठ रहा है, कि जब बहाली चार माह में नहीं की गई तो क्यों मौत के चंद घंटे बाद की गई? क्या यही इंसानियत हैं? क्या इसी को संवेदनशीलता कहा जाता है? भले ही चाहें मौत का कारण बनने वाले बीएसए और एबीएसए को विभाग सजा ना दे लेकिन इन दोनों को उपर वाला सजा अवष्य देगा, परिवार की आहें और बदुआएं बेकार नहीं जाएगंी। बीएसए साहब अखिलेश मिश्र की आत्मा भटक रही है, वह आप को कभी चैन से नहीं सोने देगी। हर पल आपको यह एहसास कराएगा कि आप ने एक परिवार से उसके मुखिया को छीन लिया। आप सभी लोग इस परिवार के दोषी हैं, और इसकी सजा आज नहीं तो कल आप को किसी ना किसी रुप में अवष्य मिलेगा। परिवार के साथ नेचुरल जस्टिस अवष्य होगा।

कप्तानगंज के प्राथमिक विधालय कल्याणपुर के हेड मास्टर अखिलेश मिश्र का निलंबन और बहाली दोनों एतिहासिक रहा। आप लोगों ने कभी नहीं सुना होगा कि किसी शिक्षक की बहाली उसके मौत के चंद घंटों बाद की गई हो। यह वही बीएसए हैं, जब इन्हें निलंबित इन्हें अपनी पूरी फौज के साथ स्कूल पर छापा मारने जाना पड़ा। जितना आरोप एक शिक्षक पर लगाया जा सकता था, उससे अधिक आरोप लगाकर निलंबित कर दिया, ताकि जल्दी बहाल ना हो सके। इतना आरोप तो सेना वाले भी किसी आतंकवादी के खिलाफ भी नहीं लगाते होगें, जितना आरोप बीएसए ने स्व. अखिलेश मिश्र पर लगाया था। कार्यालय वाले चार माह तक इनका इंतजार करते रहे ताकि आएं और चढ़ावा चढ़ाए। इतने महीनों तक इन्हें बिना वेतन के बीएसए कार्यालय प्रताड़ित करता रहा। बावजूद यह झुके नहीं और ना चढ़ावा ही चढ़ाया, बल्कि मौत को गले लगाना इन्होंने बेहतर समझा।

दुनिया की यह पहली ऐसी श्रद्धांजलि होगी, जो एक शिक्षक को उसके मौत के बाद बहाली के रुप में दी गई। यही कारण है, कि मौत के पहले दिन से ही शिक्षणेत्तर कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार द्विवेदी कहते आ रहे हैं, कि बीएसए ने अखिलेश की जान ली। चार माह से बहाली का इंतजार करने वाले अखिलेश मिश्र को उस समय बहाली मिली, जब वह दुनिया से चले गए। इतने दिनों से निलंबन और वेतन ना मिलने का तनाव अखिलेश मिश्र नहीं झेल पाए और उनकी मृत्यु ब्रेन हैमरेज से हो गई, जो बीएसए शिक्षकों को अपने परिवार का सदस्य कहते हैं, उसी सदस्य के मौत का कारण बीएसए, एबीएसए और उनका कार्यालय बना। अनैतिक तरीके से किए गए निलंबन का जबरदस्त विरोध करने वाले शिक्षक संगठनों के नेता मौत पर ना जाने क्यों खामोश? फोटो पर फूल माला चढ़ाकर दायित्वों को पूरा कर दिया, क्या यही एक संगठन और नेता का दायित्व? बीएसए और एबीएसए से अधिक शिक्षक संगठनों के नेताओं की खामोशी पर सवाल उठ रहे है? जीतेजी मिश्राजी का परिवार वेतन और बहाली के लिए भगवान से मिन्नतें मांगता रहा, उसके बाद भी नेताओं ने दरी नहीं बिछाया, और मरने के बाद भी दरी नहीं बिछा रहें हैं, बल्कि सारे देयों का भुगतान बीएसए और नेता करने को कह रहें। कोई माने या ना माने अखिलेश मिश्र की मौत बीएसए और एबीएसए के प्रताड़ना से ही हुई। किसी की बहाली चार माह में भी नहीं होती, और किसी की बहाली कुछ ही दिनों में हो जाती। ऐसा क्यों? और नेता ऐसा क्यों होने दे रहे है?

सबसे बड़ा सवाल यह है, कि जिसके उपर तमाम गंभीर आरोप लगाकर निलंबित किया गया हो, और जिसके चलते चार माह तक निलंबित रखा गया, उसकी बहाली क्यों मौत वाले दिन की गई? जीतेजी तो बहाल नहीं किया अलबत्ता मरने के बाद अवष्य कर दिया, ऐसी बहाली से क्या लाभ? बीएसए का यह कैसा इंसाफ है? तमाम लोग ऐसे भी है, कि इधर निलंबित हुए उधर चुपके से बहाल हो गए, भले ही चाहें उन्होंने आरोपों का जबाव दिया हो या ना दिया हो। लेकिन यहां पर तो बीएसए और एबीएसए को यह घंमड था, कि एक अदना सा शिक्षक कैसे उनके भ्रष्टाचार का विरोध करने की हिम्मत की और क्यों बखरा देने से इंकार किया? साहबों के घंमड और रुतबे ने एक जांबाज शिक्षक की जान लेली। कलम की ताकत भी अकेले नहीं दिखाया, बल्कि आरोपों को गढ़ने के लिए पूरी टीम के साथ चले गए। ऐसा कलम चलाया कि उभर ही नहीं सके। भला कौन अपने परिवार के सदस्य के साथ ऐसा करता है। अगर जिंदा रहते बहाल किया होता तो मरने के बाद आत्मा को यह शांति अवष्य मिलती कि चलो बहाल होकर मरे।

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