अस्पतालें हैं, डाक्टर्स हैं, मरीज हैं, दवाएं नहीं हैं!

अस्पतालें हैं, डाक्टर्स हैं, मरीज हैं, दवाएं नहीं हैं!

अस्पतालें हैं, डाक्टर्स हैं, मरीज हैं, दवाएं नहीं हैं!

-यह है, जिले के पीएचसी, सीएचसी में स्थापित 22 होम्योपैथ, आयुर्वेद और यूनानी अस्पतालों का हाल, इन अस्पतालों में 21 नवंबर 24 से 20 दिसंबर 24 तक कुल 18370 मरीज देखे गए

-पिछले तीन सालों में एक रुपये की भी तीनों पद्वति के दवाएं उपलब्ध नहीं कराई गई, सरकार की एक छत के नीचे अंग्रेजी, यूनानी, होम्योपैथ और यूनानी की सुविधा देने की योजना धरी की धरी रह गई

-दवाएं उपलब्ध ना होने से मजबूरी में डाक्टर बाहर की दवाएं लिख रहे हैं, कुछ ऐसे डाक्टर भी है, जो सामाजिक दायित्वों का निवर्हन करते हुए मैनेज करके या फिर जेब से मरीजों को दवा उपलब्ध करातें

-तीनों पद्वति के जिले के नोडल डा. वीके वर्मा कहते हैं, कि अनेक बार लिखने के बाद भी दवाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही

-जब इसकी षिकायत मीडिया ने डीएम से की तो उन्होंने अधिकारियों को दवाओं की उपलब्धता को लेकर तलब किया

-इन तीन सालों में जिले के किसी भी नेता ने दवाओं की अनुलब्धता को लेकर आवाज नहीं उठाया और ना चिठठी पत्री ही लिखा

बस्ती। सुनकर अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच हैं, कि होम्योपैथ, यूनानी और आर्युवेद की 22 अस्पतालें हैं, इन सभी अस्पतालों में डाक्टर्स के साथ अन्य स्टाफ भी तैनात, मरीज भी आते हैं, डाक्टर्स ओपीडी भी करते हैं, लेकिन इन अस्पतालों में तीन साल से दवाएं ही नहीं उपलब्ध कराई गई, अब आप सोच रहें होगें, कि जब डाक्टर मरीज देख रहे हैं, तो इलाज कैसे कर रहे होगें और दवाएं कौन सी दे रहे होगें? चूंकि डाक्टर्स को नौकरी भी करनी और वेतन भी लेना हैं, इस लिए इनकी मजबूरी हो जाती है, कि यह अस्पताल जाएं और मरीज देखंे। कुछ डाक्टर्स तो पुरानी दवाओं से काम चला लेते हैं, और कुछ बाहर की लिखते हैं, और कुछ ऐसे भी हैं, जिनमें डा. वीके वर्मा का नाम भी षामिल हैं, जो सामाजिक दायित्वों का निवर्हन करते हुए या तो अपनी जेब से या फिर मैनेज करके मरीजों को दवाएं उपलब्ध कराते है। ऐसा भी नहीं कि इन अस्पतालों में मरीज नहीं आते, आकड़े गवाह है, कि सिर्फ नवंबर और दिसंबर 24 में एक माह में कुल 18370 मरीजों ने अपना इलाज कराया। सवाल यह नहीं हैं, कि बिना दवाओं के इतनी बड़ी संख्या में मरीजों का इलाज कैसे हुआ? सवाल यह है, कि जब सरकार की मंषा एक ही छत के नीचे अंग्रेजी, यूनानी, होम्योपैथ और आयुर्वेद सुविधा उपलब्ध कराने की है, तो फिर दवाएं क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई? एक तरफ सरकार कहती है, कि दवाओं के लिए बजट की कमी नहीं हैं, और दूसरी तरफ दवाओं का अभाव हैं, और अभाव ऐसा कि तीन साल में भी पूरा नहीं हुआ। इससे स्पष्ट पता चलता है, कि सरकार की मंषा दवाएं उपलब्ध कराना नहीं बल्कि इससे जुड़े लोगों को भ्रष्टाचार करने देने का है। वैसे भी जब से यह महकमा डिप्टी सीएम बृजेष पाठक के पास है, सिर्फ घोटाला ही घोटाला सामने आ रहा है। इनके राज में सीएमओ की कुर्सी तक की नीलामी हो रही हैं, 40-40 लाख तक का रेट है। सरकार के लोग जितना भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं या फिर कर रहें हैं, अगर उसका आधा भी दवाओं और सुविधा पर ध्यान देते तो मोदी और योगी को घर-घर जाकर वोट मांगने की आवष्यकता ही नहीं पड़ती, तब ना पूर्व सांसद हरीष द्विवेदी हारते और चार विधायक ही अपनी सीट खोते। जनता खुद इन्हें जीताती। भ्रष्टाचार के लिए मरीज सिर्फ डिप्टी सीएम को ही दोषी नहीं मान रहा हैं, बल्कि वह सबसे बड़ा दोषी ईमानदार कहे जाने वाले सीएम को मान रहा है। सवाल उठ रहा है, कैसे ईमानदार सीएम के रहते तीन साल से दवाएं नहीं मिल रही है? कैसे दवाओं के नाम पर अरबों रुपया का गोलमाल हो रहा है? जिम्मेदारी तो कुल मिलाकर सीएम ही बनती है।

भ्रष्टाचार चाहे डिप्टी सीएम करें या फिर नौकरषाह, आरोप तो सीएम पर ही लगेगा। अगर इन तीन सालों में दवाएं नहीं मिली तो इसके लिए नेता भी जिम्मेदार हैं, क्यों नहीं इन लोगों ने अपने मरीजों के इलाज और दवाओं के लिए आवाज उठाया, क्यों नहीं सदन में सवाल खड़ा किया और क्यों नहीं सड़क पर उतरें? यह लोग अमित शाह के इस्तीफे के लिए सड़क पर तो उतर सकते हैं, लेकिन दवाओं और बेहतर इलाज हो इसके लिए नहीं उतर सकते हैं, यही कारण है, कि जो सम्मान इन्हें जनता की ओर से मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा हैं, हालत यह है, कि यह बगल से गुजर जाते हैं, कोई ध्यान नहीं देता, नमस्ते करना तो बहुत दूर की बात है। अगर इनमें एक भी नेता दवाओं की अनुलब्धता को लेकर आवाज उठाता या फिर चिठठी पत्री ही लिख देता तो भी माना जाता कि इनके भीतर मरीजों के प्रति हमदर्दी है। बहरहाल, जब इसकी षिकायत मीडिया ने डीएम से की तो उन्होंने अधिकारियों को दवाओं की उपलब्धता को लेकर तलब किया, और कहा कि वह इसके लिए षासन तक पैरवी करेगें और लिखेगें। अब जरा तीनों पद्वति के जिले के नोडल डा. वीके वर्मा की भी सुन लीजिए। सरकार ने इन्हें मेन स्टीमिगं आफ आयुष का नोडल बनाया है। इनका कहना है, कि वह पिछले तीन साल से सीएमओ सहित अन्य को दवाओं की अनुपलब्धता के बारे में लिखते आ रहे हैं, सीएमओ कहते हैं, कि प्रक्रिया में है। सवाल उठ रहा है, कि आखिर यह कौन सी ऐसी प्रक्रिया हैं, जो तीन साल से चल रही हैं, वह भी दवाओं को लेकर। कहते हैं, कि इससे सरकार की उस मंषा को धक्का लगा है, जिसमें एक ही छत के नीचे चारों पद्वति के इलाज की सुविधा देने का है।

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