आयुर्वेद के मरीजों को दवा नहीं, धूल मिटटी बालू का चूरन खिलातें!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 12 July, 2025 19:47
- 54

आयुर्वेद के मरीजों को दवा नहीं, धूल मिटटी बालू का चूरन खिलातें!
-अगर सरकारी अस्पतालों एवं प्राइवेट नर्सिगं होम खून चुसवा डाक्टर हैं, तो आयुर्वेद एवं यूनानी के सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों को गला घोटू डाक्टर कहा जाता
-पिछले 12 साल से प्रभारी आयुर्वेद एंव यूनानी चिकित्साधिकारी डा. जगदीश यादव और वरिष्ठ लिपिक ओबैदुर नूर खान मिलकर बस्ती और संतकबीरनगर के 56 अस्पतालों में आयुर्वेद के मरीजों को दवा के नाम पर मिटटी और बालू का चूरन खिला रहें
-आयुर्वेदिक और यूनानी की कच्ची दवाएं की खरीद स्थानीय होती है, सारी खरीद लिपिक के चहेते अंबेडकरनगर के फर्म से की जाती, इस फर्म ने पैकेट में भरकर चाहें जो भेज दिया, उसे प्राप्त कर लिया जाता
-अधिकतर पैकेट में दवा के नाम पर धूल मिटटी और बालू भरा रहता, जो दवाएं आयुष मंत्रालय से आती है, उसकी गुणवत्ता काफी हद तक सही रहती
-हर साल यूनानी और आयुर्वेद की कच्ची दवाओं की खरीद पर 20 से 25 लाख का बजट आता इसके अतिरिक्त रखरखाव के नाम पर भी बजट आता, लेकिन बजट का 80 फीसद हिस्सा डा. जगदीश यादव और लिपिक ओबैदुरनूर खान के जेबों में चला जाता
-आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी डा. जगदीश यादव शुभकर फिरोजपुर पटटी मुंडेरवा में पिछले 10 साल से ओपीडी करने नहीं गए, यहां का ओपीडी चपरासी करता
-भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी ने पीएम और सीएम और आयुष मंत्रालय को पत्र लिखकर घोटाले की जांच करने की मांग की
बस्ती। शोले फिल्म के बीरु और जय की जोड़ी की तरह आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डा. जगदीश यादव और लिपिक ओबैदुरनूर खान की जोड़ी खूब हिट हो रही है। लगभग 12-13 साल से यह जोड़ी आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा को बस्ती और संतकबीरनगर में भ्रष्टाचार की आग में झोंक दिया है। कमीशनबाजी के चक्कर में आयुर्वेद के मरीजों को दवा के नाम पर धूल, मिटटी और बालू का चूरन खिलाया जाता है। बदहाली की हालत यह है, कि डाक्टर के स्थान पर चपरासी ओपीडी कर रहा है, और डाक्टर कार्यालय में बैठकर नोट गिन रहे है। अगर सरकारी अस्पतालों एवं प्राइवेट नर्सिगं होम के डाक्टरों को खून चुसवा कहा जा सकता है, तो आयुर्वेद एवं यूनानी के चिकित्सकों को गला घोटू डाक्टर कहा जा रहा है। पिछले लगभग दो साल से प्रभारी आयुर्वेद एंव यूनानी चिकित्साधिकारी डा. जगदीष यादव और वरिष्ठ लिपिक ओबैदुर नूर खान मिलकर बस्ती और संतकबीरनगर के 56 अस्पतालों में आयुर्वेद के मरीजों को दवा के नाम पर आए धन का बंदरबांट कर रहे है। मरीजों को मिटटी और बालू का चूरन खिला रहें। यह वही डाक्टर जगदीश यादव हैं, तो लगभग 10 साल से चिकित्सक के रुप में शुभकर फिरोजपुर पटटी मुंडेरवा में ओपीडी करने नहीं गए, यहां का ओपीडी चपरासी करता। आयुर्वेदिक और यूनानी की कच्ची दवाएं की खरीद स्थानीय होती है, सारी खरीद लिपिक के चहेते अंबेडकरनगर के फर्म से की जाती, इस फर्म ने पैकेट में भरकर चाहें जो भेज दिया, उसे प्राप्त कर भुगतान कर दिया जाता है। अधिकतर पैकेट में दवा के नाम पर धूल मिटटी और बालू भरा रहता, जो दवाएं आयुष मंत्रालय से आती है, उसकी गुणवत्ता काफी हद तक सही रहती, लेकिन वे दवांए और चवनप्राश मरीजों को नहीं बल्कि डाक्टर और अन्य स्टाफ अपने परिवार को या तो खिला दूेते हैं, या फिर गाजार में बेच देते है। हर साल यूनानी और आयुर्वेद की कच्ची दवाओं की खरीद पर 20 से 25 लाख का बजट आता इसके अतिरिक्त रखरखाव के नाम पर भी बजट आता, लेकिन बजट का 80 फीसद हिस्सा डा. जगदीश यादव और लिपिक ओबैदुरनूर खान के जेबों में चला जाता। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी ने पीएम और सीएम और आयुष मंत्रालय को पत्र लिखकर घोटाले की जांच करने की मांग की है। कहा कि अगर आयुर्वेद के चिकित्सक जागरुक और ईमानदार होते तो एलोपैथ से लोहा ले सकते। कहा कि जिले सहित पूरे प्रदेश और देश में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा को सरकारी डाक्टरों ने चौपट कर दिया, जब कि यह अपनी प्रमाणिता कोरोना काल में साबित कर चुका है। कहते हैं, कि सरकार बस्ती सहित पूरे प्रदेश में आयुर्वेद के नाम पर भारी भरकम बजट आवंटित करती है, लेकिन क्षेत्रीय!यूनानी चिकित्साधिकारी के चलते जिस सम्मान का पात्र आयुर्वेद रहा, वह नहीं मिला। कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पीएम मोदी ने पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक को महत्वपूर्ण बना दिया। आयुर्वेदिक और योग पीएम के प्रथम काल की प्राथमिकताएं भी हैं, लेकिन आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पर सरकार जितना खर्च कर रही हैं, उसका लाभ भ्रष्ट अधिकारियों और लिपिकों के चलते नहीं मिल रहा है।
Comments