आठ साल में डा. एसके गौड़ ने कमाया सौ करोड़!

आठ साल में डा. एसके गौड़ ने कमाया सौ करोड़!

आठ साल में डा. एसके गौड़ ने कमाया सौ करोड़!

-सबसे अधिक बच्चों को मारने का रिकार्ड चाइल्ड स्पेसिल्ड गौड़ के नाम रहा, हर साल लापरवाही और नकली दवाओं से मरते एक दर्जन मासूम बच्चे

-पैसा कमाने की ललक ने इन्हें डाक्टर से हत्यारा बना दिया,सोषल मीडिया पर कोई इन्हें हत्यारा तो कोई लूटेरा बता रहा

-कोई कह रहा है, कि यह डाक्टर नहीं डकैत हैं, इसने बस्ती में काली कमाई करके अकूत संपत्ति अर्जित किया

-इनके प्रतिदिन की कमाई पांच लाख से अधिक, मरीज भर्ती के नाम पर एक लाख, नकली दवा लिखने पर एक लाख, जांच के नाम पर एक लाख और मरीज देखने के नाम पर एक लाख

-इनके साल की कमाई 18 करोड़ से अधिक बताई जा रही, प्रतिदिन पांच लाख, प्रति माह 1.50 करोड़ की कमाई, तभी तो यह छह डाक्टर्स का काम अकेले करते  

-इन्हें बहृमा का अवतार कहा जाता हैं, तभी तो यह प्रतिदिन 250-300 मरीज देखते, एक मरीज को एक मिनट भी नहीं देते, सीधे कहते हैं, भर्ती करो़

-किसी ने लिखा कि भईया बेबी डाल वाले भी गौड़ नकशेकदम पर चल रहे, जल्दी दिखाना है, तो 900 रुपया लेते, किसी की मजबूरी नहीं समझते, कोई कह रहा है, पीएमसी और भव्या में भी नकली दवाएं लिखी जा रही

-डाक्टर एक चार रुपया लेकर नकली दवाएं लिखते, मरीजों के परिजनों से बददतमीजी से बात करते, जांच के नाम डबल पैसा लेते

-खून चूसने के लिए यह डाक्टर नार्मल बच्चों का भी टीबी का इलाज करते, ताकि पैसा एठां जा सके, यह पैसे के लिए कुछ भी कर सकते, कहीं भी जा सकते, बच्चों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ भी कर सकते

-नकली दवा माफियों के चगुंल में फंस कर बड़े-बड़े डाक्टर भगवान से षैतान बनते जा रहे, तभी तो जिले में मात्र दो फीसद डाक्टर्स मरीजों के लिए भगवान बने हुए, डाक्टरी के साथ बड़े-बड़े होटल और मैरिज का कारोबार करने लगे डाक्टर्स

बस्ती। जिस जिले में मात्र दो फीसद डाक्टर्स को मरीज भगवान मान रहे हैं, उस जिले में मरीजों के मरने की संख्या तो बढ़ेगी ही। सूर्या और डाक्टर गौड़ के यहां सबसे अधिक मरीजों के मरने के आकड़े सामने आ रहे है। इन्हीं दोनों के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में भी सबसे अधिक मुकदमें लंबित है। अब तक जितने भी निर्णय हुए, उनमें दोनों के खिलाफ सबसे अधिक जुर्माना और हर्जाना लगाया जा चुका, बावजूद न तो इन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास हुआ, और न डाक्टर्स होने का बोद्य ही हुआ। हर साल दोनों के यहां एक-एक दर्जन मरीजों की मौत लापरवाही और नकली दवाओं के कारण होती रही है। उसके बाद भी डीएलए और डीआई की आंख नहीं खुल रही है, इसी लिए इन दोनों को भी मरीजों के मौत का जिम्मेदार माना जा रहा है। पवन फार्मा जैसे नकली दवाओं का कारोबार करने वालों के हाथों में डाक्टर्स बिकते नजर आते है। पैसे के लालच में अपना ईमान और धर्म बेचकर मरीजों की जान लेने वाले डाक्टरों को शायद यह नहीं मालूम कि समाज उन्हें किन नजरों से देख रहा हैं, क्या कहकर उन्हें संबाधित कर रहा है। सबसे अधिक बच्चों के मरने का रिकार्ड चाइल्ड स्पेशिल्ड डा. एसके गौड़ के यहां रहा, हर साल लापरवाही और नकली दवाओं से इनके यहां एक दर्जन मासूम बच्चों की मौत होती है। पैसा कमाने की ललक ने इन्हें डाक्टर से हत्यारा बना दिया, सोशल मीडिया पर कोई इन्हें हत्यारा तो कोई लूटेरा बता रहा, कोई कह रहा है, कि यह डाक्टर नहीं डकैत हैं, इसने बस्ती में काली कमाई करके अकूत संपत्ति अर्जित किया, इनके प्रतिदिन की कमाई पांच लाख से अधिक, मरीज भर्ती के नाम पर एक लाख, नकली दवा लिखने पर एक लाख, जांच के नाम पर एक लाख और मरीज देखने के नाम पर एक लाख, इनके साल की कमाई 18 करोड़ से अधिक बताई जा रही, प्रतिदिन पांच लाख, प्रति माह 1.50 करोड़ की कमाई, तभी तो यह छह डाक्टर्स का काम अकेले करते, इन्हें बहृमा का अवतार भी कहा जाता हैं, तभी तो यह प्रतिदिन 250-300 मरीज देखते, एक मरीज को एक मिनट भी नहीं देते, सीधे भर्ती करने को कहते है। भले ही चाहें मरीज के परिजन के पास भर्ती करने की सुविधा न हो, लेकिन बच्चों की जान देख वह डाक्टर कर बात मानकर भर्ती कर देते हैं, जब परिजन का खून चूस लेते हैं, तो कह दिया जाता है, मामला बहुत सीरीएस हैं, फौरन लखनउ ले जाओ नहीं तो बच्चा मर जाएगा। यह डाक्टर सर्दी जुखाम वाले बच्चों को भी भर्ती करने के लिए मजबूर करते है। इन्हीं के यहां सबसे अधिक नकली दवाएं अंदर के मेडिकल से बिकती है। एक दिन पहले डेढ़ साल के बच्चे की मौत के बाद  सोशल मीडिया पर इन्हें किसी ने हत्यारा कहा तो किसी ने लूटेरा, सभी ने इनके खिलाफ मुकदर्मा दर्ज करने और इनकी संपत्ति की जांच करने की मांग की है। लिखा कि भईया बेबी डाल वाले भी गौड़ के नक्षेकदम पर चल रहे, यहां पर जल्दी दिखाना है, तो 900 रुपया लेते, किसी की मजबूरी नहीं समझते, कोई कह रहा है, पीएमसी और भव्या में भी नकली दवाएं लिखी जा रही है। डाक्टर एक रुपये की दवा को चार रुपया लेकर नकली दवाएं लिखते, मरीजों के परिजनों से बदतमीजी से बात करते, जांच के नाम पर डबल पैसा लेते, खून चूसने के लिए यह डाक्टर नार्मल बच्चों का भी टीबी का इलाज करते, ताकि पैसा एठां जा सके, यह पैसे के लिए कुछ भी कर सकते, कहीं भी जा सकते, बच्चों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ भी कर सकते नकली दवा बेच-बेचकर बड़े-बड़े डाक्टर भगवान से शैतान बनते जा रहे है। डाक्टरी के साथ बड़े-बड़े होटल और मैरिज हाल का कारोबार करने लगे। हमारे जिले में एक दो ऐसे भी डाक्टर्स हैं, जिनके पास 250-300 करोड़ की चल और अचल संपत्ति जिले से लेकर राजधानी और पहाड़ों में है। जिले के अधिकांश डाक्टर प्रापर्टी डीलर बन गएं है।

आइए हम आपको सोशल मीडिया के कुछ कमेंट को बताते हैं, जो जिलेें के डाक्टर्स पर किए गए। रजनीश मिश्र राजन लिखते हैं, कि यह बस्ती का सबसे बड़ा लुटेरा डाक्टर है। जेनरिक दवाओं का पूरा एमआरपी का पैसा लेता। अरुण मिश्र लिखते हैं, जैसे ही यह सरकारी अस्पताल से नौकरी छोड़ते हैं, तीन-चार साल में अकूत संपत्ति के मालिक बन जाते। प्रशांत द्विवेदी लिखते हैं, कि सबसे गंदा अस्पताल है। जाते ही इमरजेंसी फीस लेनी शुरु हो जाती है। फिर मरीज देखते हैं, और उसके बाद भर्ती कर देते है। मरीज भले ही जाए इनके सामने मर जाए लेकिन यह बिना इमरजेंसी फीस लिए मरीज को नहीं देखते। कमीशन वाली दवाएं लिखते हैं, वार्ड का मुहंमागी रकम मांगते है। गोपाल पुस्तक भंडार लिखते हैं, कि पहले डाक्टर्स को भगवान का दर्जा मरीज देते थे, लेकिन अब इन्हें खून चुसवा कहा जा रहा है। कमीशन कर दवा लिखने में डाक्टर्स जितना उिमाग लगाते हैं, अगर यही दिमाग मरीज के दलाज में लगाए तो 75 फीसद मरीज की जान बच सकती। एक ने लिखा कि 14 मई को मेरे बेटे की तबियत खराब हो गई, 500 रुपया फीस दिया, साहब ने बिना मरीज को ठीक से देखे कहा कि भर्ती कराना पड़ेगा, कहा भी साहब पैसे की दिक्कत हैं, लेंकिन डाक्टर ने कहा कि पैसा महत्वपूर्ण या बेटे की जान। किसी तरह दो हजार जमा किया, सोचा इसी में दवा का दाम भी शामिल होगा, दवा का अलग से दो हजार लिया। ओमप्रकाश सिंह लिखते हैं, जो मरीज आपको  भगवान मान रहा है, अगर उसे लुटोगे तो भगवान आपको भी एक दिन समाप्त कर देगा। एक ने लिखा कि हमने तीन दिन के बच्चे कां एडमिट कराया, ठीक हो गया, लेकिन डाक्टर डिसचार्ज करने का नाम ही ले रहे थे। आशीष कुमार गुप्त लिखते हें, कि बहुत बदतमजी से बात करते हैं, जांच में डबल पैसा लेते है। जबकि कोई जांच मशीन नहीं है। यहां पर नार्मल बच्चों का टीबी का इलाज किया जाता है, ताकि खून चूसा जा सके। संतोश कुमार लिखते हें, कि डाक्टर्स का दूसरा नाम दलाल हो गया है।

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *