आखिर ठेकेदार ‘हर्रैया’ की ओर ही ‘क्यों’ रुख कर ‘रहें’?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 7 September, 2025 14:55
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आखिर ठेकेदार ‘हर्रैया’ की ओर ही ‘क्यों’ रुख कर ‘रहें’?
-क्यों नहीं जा कप्तानगंज, रुधौली, महादेवा एवं सदर की ओर जा रहें, हर्रैया की तरह व्यवस्था पाने की मंशा पर पीडब्लूडी के ठेेकेदारों ने फेरा पानी, कहते हैं, कि जब अधिकारी विपक्ष की सुनते ही नहीं तो उनके पास क्यों जाए? जिनकी सुनते हैं, उसी के पास जाने में ही भलाइ, 20 फीसद लाभ बचाने के लिए ठेकेदार हर्रैया की ओर से रुख कर रहा
-अब सपा के चारों विधायकों के पास सिर्फ जांच करवाने का ही रास्ता बचा, जिसको झेलने के लिए ठेकेदार तैयार, कहते हैं, हर्रैया जाने पर कम से कम 30-40 फीसद टेंडर बिलो तो नहीं डालना पड़ेगा
-ठेकेदारों के सामने सबसे बड़ी समस्या अधिकारियों से हैं, यह टेकेदारों को बिलकुल ही बख्सने को तैयार नहीं हैं, कहते हैं, कि भले ही चाहें 30-40 फीसद बिलो डालो, लेकिन मेरा 10 फीसद कमीशन मिलना ही चाहिए
-आखिर ठेकेदार किससे-किससे निपटे, नेता से निपटे, अधिकारी से निपटे, जांच से निपटे या फिर सड़क की गुणवत्ता देखे, आखिर कोई ठेकेदार 50 फीसद में काम करे तो कैसे करें, कहां से वह सड़क की गुणवत्ता लाए
बस्ती। पीडब्लूडी के ठेकेदार सत्ता और विपक्ष के बीच में पिसकर रह जा रहा है। ठेकेदारों के सामने ईधर खाई उधर कुंआ जैसी स्थित हो गई। विपक्ष का नेता चाहते है, कि जो सुविधा हर्रैया के नेता को मिल रहा है, वही सुविधा ठेकेदार चारों विधानसभाओं में भी दें। दिक्कत यह है, कि ठेकेदारों को हर्रैया की ओर जाने में ही लाभ नजर आ रहा है, कम से कम हर्रैया जाने में उसे 30-40 फीसद टेंडर बिलो तो नहीं डालना पड़ता। चूंकि अधिकारी विपक्ष के नेताओं की बात मानने को तैयार नहीं, इस लिए ठेकेदार भी सोचता है, कि जिसकी बात अधिकारी सुने और माने उसी के पास जाना चाहिए। बस ठेकेदारों को जांच का डर हमेषा रहेगा, और यही डर ठेकेदारों को कमजोर भी बना सकता है। रही बात ठेकेदारों की तो वह उसी तरफ जाता हैं, जिस ओर उसे लाभ नजर आता है। अब चारों विपक्ष के नेताओं को कौन समझाने जाए कि जब आप की अधिकारी सुनता ही नहीं तो क्यों ठेकेदार कप्तानगजं, महादेवा, रुधौली और सदर विधानसभाओं की ओर रुख करेगा? कहना गलत नहीं होगा कि हर्रैया की तरह सुविधा पाने के सपने पर ठेकेदारों ने चारों नेताओं पर एक तरह से पानी फेर दिया। कहने का मतलब 20 फीसद लाभ पाने के लिए ठेकेदार हर्रैया की ओर से रुख कर रहें है। अब विपक्ष के चारों नेताओं के पास सिर्फ जांच करवाने का ही हथियार बचा, जिसको झेलने के लिए ठेकेदार तैयार, हैं, ठेकेदारों का कहना है, कि हर्रैया जाने पर कम से कम 30-40 फीसद टेंडर बिलो तो नहीं डालना पड़ेगा। ठेकेदारों के सामने सबसे बड़ी समस्या अधिकारियों से हैं, यह ठेकेदारों को बिलकुल ही बख्सने को तैयार नहीं हैं, कहते हैं, कि भले ही चाहें 30-40 फीसद बिलो डालो, लेकिन मेरा 10 फीसद कमीषन देना ही पड़ेगा, इसी के चलते कई पुराने भुगतान लंबित है। सवाल उठ रहा है, कि आखिर ठेकेदार किससे-किससे निपटे, नेता से निपटे, अधिकारी से निपटे, जांच से निपटे या फिर सड़क की गुणवत्ता देखे, आखिर कोई ठेकेदार 50 फीसद में काम करे तो कैसे करें? कहां से वह सड़कों की गुणवत्ता को 50 फीसद में लाए। एक बात तो साफ हो गई, कि चाहें पक्ष का हो या फिर विपक्ष का सड़कों की गुणवत्ता से किसी को भी कोई सरोकार नहीं, जब इन्हें सुविधा नहीं मिलती तो यह जांच कराने लगते हैं, और जैसे ही सुविधा मिलने लगती है, चुप हो जाते है। इसमें सबसे अधिक नुकसान ठेकेदार वर्ग का होता है, अधिकारी और नेता दोनों का कोई नुकसान नहीं होता। सड़क चले या धंस जाए ‘नो प्राब्लम’ सुविधा मिलना बंद नहीं होना चाहिए। जनता, नेताओं से यह जानना चाहती है, कि आखिर एक ही सड़क पर कितने लोगों का भोजन तैयार होगा। विपक्ष का नेता तो चाह ही रहा है, कि ठेकेदार उसके पास आए, लेकिन कोई जाता ही नहीं, जांच और एफआईआर की धमकी से भी ठेकेदार जाने को तैयार नहीं है। विपक्ष के नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि यही काम वह सत्ता में रह कर चुके है। समय-समय की बात हैं, हो सकता है, कि विपक्ष को फिर मौका मिले, तब वही ठेकेदार आपके आगे-पीछे घूमेंगे जो आज बुलाने पर भी नहीं आते। कहना गलत नहीं होगा कि एक सड़क से नेता, अधिकारी और ठेकेदार सब की पोल खुल जाती है। एक सच यह भी है, सभी विभागों और नेताओं ने सुविधा षुल्क को तो बढ़ा दिया, लेकिन पीडब्लूडी में आज भी वही सुविधा षुल्क जमा होता हैं, जो दस साल पहले जमा होता था। सड़कों की जो हालत खराब हुई हैं, वह विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों के चलते नहीं बल्कि नेताओं के चलते खराब हुई। जब से नेताओं की हिस्सेदारी बनी हैं, तब से अधिकारी और ठेकेदार दोनों मिलकर भी सड़कों की अच्छी गुणवत्ता नहीं दे पा रहे है। जीरो टालरेंस की नीति का बखान करने वाले नेता ही सबसे अधिक इसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं। योगीजी का जीरोटालरेंस कागजों में सिमटकर रह गया है।

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