आखिर नेताओं का पेट इतना बड़ा क्यों होता जो कभी भरता ही नहीं?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 29 July, 2025 21:51
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आखिर नेताओं का पेट इतना बड़ा क्यों होता जो कभी भरता ही नहीं?
-क्या कभी किसी नेता का पेट भरा हैं, जो अब भरेगा? भूख से अधिक खाने के बाद भी इनका हाजमा न जाने क्यों खराब नहीं होता, इन्हें हाजमोला की आवष्यकता ही नहीं पड़ती
-आखिर नेताओं का ही क्यों विकास हो रहा जनता का क्यों नहीं? क्यों नेता बनते ही यह अकूत संपत्ति के मालिक हो जाते?
-क्यों नेताओं के ही आवास और कार्यालयों पर ईडी और इंकम टैक्स का छापा पड़ता? क्यों नहीं किसी गरीब के घर पर छापा पड़ता?
-कोई आटो चालक, ठेला वाले, सब्जी विक्रेता, पान वाले जैसे गरीब निवेशकों का पैसा मारकर करोड़पति/अरबपति बन रहे हैं, तो कोई निधियों को बेचकर तिजोरी भर रहें
-आखिर नेता गरीबों का हीरो क्यों नहीं बन पाते, क्यों यह भ्रष्टाचारियों के हीरो बनते? नेताओं को क्यों नहीं अपने मान-सम्मान और इज्जत की चिंता रहती? क्यों यह चोर बेईमान और भ्रष्टाचारी कहलाना पंसद करते?
बस्ती। आज का नेता, माननीय बनते ही सबसे पहले अपनी पहचान को ही समाप्त कर दे रहें है। गरीबों का मसीहा बनने के बजाए ठेकेदारों का रहनुमा बन जातें हैं। गरीबों का पेट भरने के बजाए अपनी तिजोरी भरने लगते है। आटो चालक, ठेला वाले, सब्जी विक्रेता, पान वाले जैसे गरीब निवेशकों का पैसा मारकर करोड़पति/अरबपति बन जाते है। कोई निधियों को बेचकर तिजोरी भर रहा है, तो कोई सरकारी योजनाओं के धन का दुरुपयोग करके मालामाल हो रहा है। जनता सवाल कर रही हैं, कि आखिर नेताओं का इतना बड़ा पेट क्यों होता जो कभी भरता ही नहीं? आवष्यकता से अधिक खाने के बाद भी इनका हाजमा खराब नहीं होता, हाजमा सही रखने के लिए इन्हें हाजमोला की आवष्यकता भी नहीं पड़ती। सवाल उठ रहें हैं, कि आखिर नेताओं का ही क्यों विकास हो रहा जनता का क्यों नहीं? क्यों नेता बनते ही यह अकूत संपत्ति के मालिक हो जाते? क्यों नेताओं के आवास और कार्यालयों पर ही ईडी और इंकम टैक्स का छापा पड़ता? क्यों नहीं किसी गरीब के घर पर छापा पड़ता? आखिर नेता गरीबों का हीरो क्यों नहीं बनते? क्यों भ्रष्टाचारियों के हीरो बनते? नेताओं को क्यों नहीं अपने मान-सम्मान और इज्जत की चिंता रहती? क्यों यह चोर, बेईमान, धोखेबाज और भ्रष्टाचारी कहलाना पंसद करते? कोई नेता बिलकुल ही न भूले कि वह अपनी काबिलियत से माननीय बना, बल्कि जनता की मेहरबानी से माननीय बना। क्या कोई ऐसा माननीय हैं, जो अपने विधानसभा क्षेत्र में होने वाले निर्माण कार्यो पर ठेकेदारों से कमीषन न लेता हो, अब तो यह कमीषन 20 फीसद तक हो गया, मंहगाई भले ही उतनी न बढ़ी हो लेकिन माननीयों का कमीशन अवष्य आसमान छू रहा। बिना कमीशन के कोई भी ठेकेदार निर्माण कार्य करा ही नहीं सकता, अगर कराने लगेगा तो इतनी जांच करवा देगें कि उसे शरणागत होना ही पड़ता है। अब आप उस सड़क के गुणवत्ता का अंदाजा लगाइए, जिसमें माननीय को लेकर कुल 40 फीसद कमीशन में चला जाता हो, अगर कहीं किसी ठेकेदार को 20-25 फीसद बिलो पर ठेका मिला जो समझो उसकी मरनी हो जाएगी। जो सड़क पांच साल तक चलनी चाहिए, वह बनते ही टूटने लगेगी। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि आखिर नेताओं का पेट कब भरेगा, भरेगा भी कि नहीं? और सड़क कब पांच साल तक चलेगी, चलेगी भी कि नहीं? अगर कोई नेता गरीबों की गाढ़ी कमाई को छलकपट से हड़पना चाहेगा तो क्या आप और हम उसे अच्छा नेता कहगें? माननीयों और लालची किस्म के डाक्टरों को जनता और मीडिया बार-बार यह एहसास कराती आ रही है, कि कोई भी गलत काम कर लीजिए लेकिन गरीबों की आहें और बबदुआएं मत लीजिए। वरना उसका परिणाम परिवार को किसी न किसी रुप में भुगतना पड़ेगा। यह जिले के लोगों का दुर्भाग्य रहा कि बस्ती को गेैरों नहीं बल्कि अपनों ने सबसे अधिक लूटा। जिन अपनों पर जनता भरोसा ने विष्वास किया, उसी ने जनता को छला। धोखा दिया, हक मारा। उन्हें रोने के लिए छोड़ दिया। जिस तरह नेता जिले को लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, उसी तरह अधिकारी भी लूटकर चले जा रहें है। तभी तो एक एडीएम ने कहा था, कि वह बस्ती से जितना पैसा लेकर जा रहे हैं, उतना पैसा पूरे कार्यकाल में नहीं कमाया। यह उस एडीएम की गलती नहीं हैं, बल्कि जिले के नेताओं की गलती है, कि जिन्होंने अधिकारी को लूटने दिया, लूटने इस लिए दिया, क्यों कि यह खुद लूट रहे है, और एक लुटेरा दूसरे लुटेरे का विरोध नहीं करता।
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