आखिर नेता मनोज सिंह क्यों बने बदनाम पब्लिक हास्पिटल के संचालक?

आखिर नेता मनोज सिंह क्यों बने बदनाम पब्लिक हास्पिटल के संचालक?

आखिर नेता मनोज सिंह क्यों बने बदनाम पब्लिक हास्पिटल के संचालक?

दसवीं फेल इटवा के राकेश यादव ने क्यों भानपुर के नेता मनोज सिंह के हवाले हास्पिटल कर दिया?

-क्यों जब से नेताजी के संरक्षण में पब्लिक हास्पिटल चला, तब से अस्पताल एक बार भी सील नहीं हुआ, जब कि राकेश यादव के सरंक्षण में दो-तीन बार अनियमितता के आरोप में सील हो चुका

-कहीं ऐसा तो नहीं कि बोर्ड पर नेताजी का नाम रहेगा तो कोई अधिकारी न तो जांच करने आएगा और न सील करने की हिम्मत करेगा

-नेताजी के हवाले के बाद जिसने भी कार्रवाई और सील करने की हिम्मत की दसकी पेशी पाठकजी के यहां हो गई

-हास्पिटल का तो पंजीकरण है, लेकिन मानकविहीन, हास्पिटल के बाहर एक भी डाक्टर का नाम नहीं लिखा, जब कि इस हास्पिटल में डिलीवरी भी होती और अल्टासाउंड भी होता

-कुछ दिन पहले एक बच्चे की मौत के बाद अस्पताल को सील कर दिया, छह माह तक सील रहा, नेताजी के जोर लगाने पर सील खुल गया, इससे पहले भी कई बार सील हो चुका, उसके बाद राकेश यादव ने मनोज सिंह को पूरा हास्पिटल हैंडओवर कर दिया

बस्ती। भानपुर क्षेत्र के लोग जानना चाहते हैं, कि आखिर नेता मनोज सिंह क्यों बदनाम पब्लिक हास्पिटल एंड मल्टी स्पेस्लिटी सेंटर के संचालक बने? क्या इन्हें नहीं मालूम था कि इस अस्पताल में डाक्टर की लापरवाही और लालची स्वभाव के चलते अनेक बच्चों की मौत हो चुकी है। कई बार हंगामा हो चुका। अस्पताल कई बार सील भी हो चुका। कुछ समय पहले तक इसके संचालक इटवा निवासी राकेश यादव रहें, यह जब तक इसके संचालक रहे खूब अनियमितता हुई, आए दिन आपरेशन के दौरान जज्चा बच्चा की मौत होने लगी। यह हास्पिटल कई बार सील हुआ। हाल ही में एक बच्चे की मौत के बाद जब खूब हंगामा हुआ तो सीएमओ ने अस्पताल को सील कर दिया, लगभग छह माह तक अस्पताल सील रहा, लेकिन नेताजी के आका के दबाव के चलते सील खुल गया। इससे पहले यह अस्पताल कई बार अनियमितता और मौत के कारण सील हो चुका है। बताते हैं, कि दसवीं फेल राकेश यादव हर वह काम करते थे, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। कोई कह नहीं सकता था, कि यह दसवीं फेल भी होगें। इन पर आपरेशन तक करने का आरोप कई मरीज लगा चुके है।  इनका एक अस्पताल इटवा में भी हैं, जो कई बार सील हो चुका है। यानि राकेश यादव का भी नाम भी उन तथाकथित डाक्टरों में शामिल हैं, जो पैसे के लिए मरीजों का खून चूसते हैं, और मरीजों की जान लेते है। भानपुर के नेता मनोज सिंह का इस अस्पताल के संचालक राकेश यादव से क्या संबध रहा, यह तो पता नहीं चला, इस बात का भी पता नहीं चला कि अस्पताल को हैंडओेवर/टेकओवर करने का निर्णय किसका था, माना जाता है, कि भवन राकेश यादव का है, और निर्णय भी उन्हीं का ही रहा होगा।  बहरहाल, जब अस्पताल में लापरवाही के चलते अधिक मौतें होने लगी तो संचालक बदलना पड़ा। लेकिन जैसे ही मनोज सिंह संचालक बने घटनाएं कम होने लगी, या इसे यह भी कहा जा सकता हैं, घटनाएं तो हो रही है, लेकिन न तो विभाग की हिम्मत नेताजी के रहते कार्रवाई करने की नहीं पड़ती और न शिकायत ही करने की। जब भी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने की बात आती है, तो पाठकजी के यहां से सीएमओ को फोन आ जाता है। अस्पताल की व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ, बताते हैं, कि एक महिला डाक्टर बस्ती से आती है, और डिलीवरी या आपरेशन कर चली जाती है। अस्पताल के बाहर एक भी डाक्टर का नाम नहीं लिखा है। अल्टासाउंड भी होता है, पंजीयन है, कि नहीं इसकी भी जानकारी नहीं हो सकी। चूंकि अस्पताल के बोर्ड पर नेता मनोज सिंह का नाम और उनका मोबाइल लिखा हुआ हैं, और इन्हें दूसरे बड़े नेता के करीबी माना जाता हैं, इस लिए डर के मारे न तो अस्पताल के खिलाफ कोई शिकायत कर पाता और सीएमओ की हिम्मत ही कार्रवाई करने की हिम्मत पड़ती। यानि नेताजी को यह अस्पताल इस लिए हैंडओवर किया गया, ताकि अस्पताल निर्वाध रुप से जैसे पहले चलता था, वैसे ही चलता रहे। 2025 में नेताजी ने आनलाइन पंजीकरण करने का आवेदन अपने नाम से किया है। व्यापार करना किसी के लिए कोई गलत नहीं हैं, गलत है, गलत काम करना और उस पर पर्दा डालना। अगर किसी अस्पताल में मरीजों को जीवन के बजाए मौत मिलती हैं, तो इसके लिए उपर वाला भी किसी को माफ नहीं करता। जिस तरह आए दिन अस्पतालों में लापरवाही या फिर पैसे के लालच में बच्चों की मौतें हो रही है, उससे पूरा समाज चिंतित है। अस्पताल संचालकों को भी यह सोचकर अस्पताल को संचालित करना चाहिए कि उनके अस्पताल से निकलने वाला मरीज स्वस्थ्य होकर घर जाए न कि पोस्टमार्टम हाउस जाए। जिस दिन अस्पताल संचालक किसी मरीज की सेवा अपने परिवार की तरह करने लगेंगे, उस दिन किसी भी अस्पताल में किसी बच्चे की मौत नहीं होगी। पैसा तो डाक्टर्स को इलाज करने के बाद भी मिलेगा, तो फिर क्यों गरीबों की आहें और बददुआएं ली जाए।

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