आखिर गोरखपुर वाले बाबा टेडर्स ही क्यों?

आखिर गोरखपुर वाले बाबा टेडर्स ही क्यों?

आखिर गोरखपुर वाले बाबा टेडर्स ही क्यों?

-आखिर सीएमओ, एनएचएम के आरसीएच डा. एके गुप्त और लिपिक संदीप राय क्यों बाबा टेडर्स को स्टशनरी की आपूर्ति और छपाई का ठेका देने के लिए उत्साहित रहते?

-जब कि इस फर्म पर फर्जी सप्लाई और भुगतान तक का आरोप लग चुका, हाल में एमएलसी देवेंद्रप्रताप सिंह के प्रतिनिधि हरीश सिंह इस फर्म पर 50 लाख का फर्जी भुगतान करने का आरोप लगा चुके

-2020-21 में तत्कालीन आरसीएच डा. सीके वर्मा के कार्यकाल में लगभग 80 लाख का फर्जी भुगतान करने का प्रयास हुआ, तत्कालीन सीएमओ डा. चंद्रशेखर ने भुगतान करने से इंकार करते हुए कहा था, कि मैं नहीं करुंगा किसी और से करवा लीजिए, भुगतान हुआ कि नहीं पता नहीं चल सका

-खरीदे गए सामान का आरसीएच के पास कोई रिकार्ड नहीं था, बचने और भुगतान होने के लिए आपूर्ति रजिस्टर तक अलग से बनवाना पड़ा

-दावा किया जा रहा है, कि अगर पिछले तीन-चार सालों के कांटीजेंसी और प्रिटिगं की जांच हो जाए तो न जाने कितने फर्जी भुगतान के मामले सामने आ सकते

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि स्टेशनरी और प्रिटिगं के मामले में आखिर गोरखपुर वाले बाबा टेडर्स पर ही क्यों सीएमओ, एनएचएम के आरसीएच और लिपिक मेहरबान रहते हैं, और क्यों इसी फर्म को करोड़ों का ठेका देने के लालायित रहते हैं? आखिर इस फर्म में ऐसी क्या खासियत हैं, कि इसे ठेका देने के लिए सारे नियम कानून तक तोड़ दिए जाते हैं? या तो इनकी डिलीगं अच्छी होगी या फिर सामानों की क्वालिटी अच्छी होगी, कुछ तो बाबा टेडर्स में हैं, जो पूरा सीएमओ कार्यालय और एनएचएम के लोग इनके प्रति आकर्षित रहते हैं। हालही में एमएलसी देवेंद्रप्रताप सिंह के प्रतिनिधि हरीश सिंह ने दिषा की बेैठक में इस फर्म पर 50 लाख रुपये का फर्जी भुगतान करने का आरोप लगाया था, जांच में क्या हुआ जानकारी नहीं हो पाई। 2020-21 में तत्कालीन आरसीएच डा. सीके वर्मा के कार्यकाल में लगभग 80 लाख का फर्जी भुगतान करने का प्रयास हुआ, तत्कालीन सीएमओ डा. चंद्रशेखर ने भुगतान करने से इंकार करते हुए कहा था, कि मैं नहीं करुंगा किसी और से करवा लीजिए, भुगतान हुआ कि नहीं पता नहीं चल सका। खरीदे गए सामान का आरसीएच के पास कोई रिकार्ड नहीं था, बचने और भुगतान होने के लिए आपूर्ति रजिस्टर तक अलग से बनवाना पड़ा। दावा किया जा रहा है, कि अगर पिछले तीन-चार सालों के कांटीजेंसी और प्रिटिगं की जांच हो जाए तो न जाने कितने फर्जी भुगतान के मामले सामने आ सकते है। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, और सवाल उठ रहे हैं, कि ऐसे फर्म पर सीएमओ कार्यालय क्यों इतना मेहरबान रहता जिसका रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा। उसके बावजूद यह फर्म लोगों का प्यारा और दुलारा बना हुआ है। वर्तमान में इस फर्म को 5.81 करोड़ के स्टशनरी और प्रिटिगं का ठेका देने का प्रयास हो रहा है। इसके लिए उस नियम को तोड़ा गया, जिसमें सिर्फ एक साल के लिए ही अनुबंध करने का नियम है। सवाल उठ रहा है, जब भारत सरकार ही एक साल के लिए पीआईपी जारी करती है, तो कैसे इस फर्म को दो साल के लिए अनुबंध करने का निर्णय लिया गया। इस मामले में डीएम को भी गुमराह किया गया और उनसे फाइल पर अनुमोदन ले लिया गया। जब इसकी जानकारी डीएम को दी गई तो उन्होंने पत्रावली की पुनः समीक्षा करने की बात कही। जब उन्हें यह बताया कि आप को गुमराह करके अनुमोदन ले लिया गया तो नाराज हुए। उन्हें यह भी बताया गया कि सीएमओ और आरसीएच मिलकर हर साल डीएम को गुमराह करके अनुमोदन ले लिया जाता रहा है। वैसे भी एनएसआरएम सरकारी धन की डकैती बन चुका है। इसी एनएचआरएम के चलते न जाने कितने सीएमओ, आरसीएच, लिपिक और ठेकेदार कहां से कहां पहुंच गए। प्रिटिगं और स्टेशनरी की आपूर्ति का ठेका पाने के लिए कुछ भी ठेकेदार करने को तैयार रहता है, क्यों कि सबो अधिक कमाई इसी में ही है। सरकारी धन का अगी दुरुपयोग देखना हो तो एनएचएम में देखा जा सकता है। यहां पर ईमानदारी वाला कोई काम नहीं होता और न ही कोई अधिकारी ईमानदारी दिखाने का प्रयास ही करता है। जिस विभाग के अधिकारी और बाबू बेईमान और चोर होते हैं, उस विभाग के ठेकेदारों की चांदी रहती है। तभी तो एनएचएम का ठेका पाने के लिए ठेकेदार कुछ भी करने को तैयार रहता है। सारी गलती सीएमओ, आसीएच और बाबू की ही नहीं होती हैं, डीएम की भी होती है, जिस तरह अधिकारियों पर विष्वास करके करोड़ों के काम का अनुमोदन डीएम को देते आ रहे हैें, उसके लिए डीएम को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। माना जाता है, कि जिस फाइल पर डीएम का अनुमोदन होता है, इसकी जांच नहीं होती, यह मामला मंत्रीजी के प्रेसवार्ता भी उठ चुका है, तब मंत्रीजी ने कहा था, कि डीएम को हर विभाग की जानकारी नहीं रहती है, इस लिए कभी-कभी गलती हो जाती है।

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