50 करोड़ के क्लब में शामिल होने वाला देश का पहला ब्लाक बना बनकटी

50 करोड़ के क्लब में शामिल होने वाला देश का पहला ब्लाक बना बनकटी

50 करोड़ के क्लब में शामिल होने वाला देश का पहला ब्लाक बना बनकटी

-इसका श्रेय पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी और पूर्व जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल को पूरी तरह जाता

-यह जिले के लिए गौरव की बात हैं, कि हमारे जिले ऐसा भी कोई ब्लॉक हैं, जिसने मनरेगा 50 करोड़ खर्च किया

-इस उपलब्धि के लिए इस ब्लॉक को राष्टीय पुरस्कार मिलना चाहिए, प्रशासन को इसकी सिफारिश भी करनी चाहिए

-वित्तीय साल बीतते परसरामपुर भी 50 करोड़ के क्लब में षामिल होने की दौड़ में शामिल, दो माह में इन्हें आठ करोड़ और खर्च करना, जो आसानी से पूरा हो जाएगा

-साढ़े चार अरब खर्च करने वाले जिले के मात्र 16127 मजदूरों का 100 दिन का रोजगार मिला, यह भी देश का एक रिकार्ड

बस्ती। नकली प्रमुख की अगुवाई में बनकटी ब्लॉक की टीम ने दिखा दिया कि अगर टीम को इससे पहले मौका मिला होता तो वह पहले ही ब्लाक को देश का नंबर वन बना देते। यह भी सही हैं, कि अगर यह असली प्रमुख होते तो कभी भी ब्लॉक 50 करोड़ के क्लब में शामिल नहीं हो पाता। जो असली वाले हैं, वह 30-35 करोड़ के क्लब में भी षामिल नहीं हो पाए। अब आप समझ गए होगें कि असली और नकली में कितना अंतर होता। असली वाले बचा-बचा कर काम करते हैं, उन्हें डर रहता है, कि अगर कहीं उंच नीच हो गया तो उनकी ही बदनामी होगी, लेकिन यही डर नकली वालों को नहीं रहता, उन्हें तो इस बात का भी ख्याल नहीं रहता कि जिसकी बदौलत वह ब्लॉक का राजा बनकर मलाई खा रहे हैं, फंसने पर उनका क्या होगा? ऐसे लोगों का एक मात्र टारगेट ब्लॉक को चाहें जैसे देष में नंबर वन बना कर मलाई काटना। यह लोग जिले और प्रदेश में नाम नहीं कमाना चाहता, यह लोग देश में अपना झंडा गाड़ने चाहते है।

कुदरहा जैसा ब्लॉक और उसके असली प्रमुख की सूई 38 करोड़ पर जाकर अटक जाती है, इन्हें मुस्किल से तीसरा स्थान नशीब होता हैं, जो कभी जिले का नंबर वन ब्लाक होता था, आज तीसरे पर आ गया, इस बात का मंथन असली प्रमुख करना चाहिए। बड़ी मुस्किल और मेहनत से ब्लॉक प्रमुख बनने का मौका अनिल दूबे को मिला। इनसे अच्छा तो परसरामपुर जैसे नकली प्रमुख वाला ब्लॉक हैं, जो 43 करोड़ के क्लब में शामिल होकर दूसरे स्थान पर आ गया। पहले हम आपको नकली प्रमुखों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने मनरेगा को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ा। यह खुद तो करोड़पति की श्रेणी में शामिल हो गए, लेकिन असली प्रमुख का एक कमरे का मकान तक नहीं बना, असली प्रमुख होने के बाद लोगों के घरों में काम कर रही है। वैसे भी नकली प्रमुख बनने के चक्कर में हत्या तक हो गई, अब जब 2026 में प्रमुखों की नई टीम आएगी, तो सबसे अधिक मारामारी नकली प्रमुख बनने को लेकर होगी। क्यों कि नकली प्रमुख बनने में मलाई भी अधिक खाने को मिलता हैं, और जीरो रिस्क रहता है। कहने का मतलब जो मजा नकली प्रमुख में हैं, वह मजा असली में कहां। नकली प्रमुख बनने में बस नेताओं को पटाना और पानी की तरह पैसा बहाना रहता है। कमाई को देखते हुए 2026 में एक-एक प्रमुख की कुर्सी की कीमत दस करोड़ से अधिक हो जाएगी। अगर डायरेक्ट चुनाव नहीं हुआ तो ना जाने कितना खूनखराबा और हत्याएं तक हो सकती है। कहना गलत नहीं होगा कि अगर बनकटी देष का नंबर वन ब्लॉक बना है, तो इसका श्रेय पूर्व सांसद और पूर्व जिलाध्यक्ष को जाता है। एक तरह से यही लोग मनरेगा को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार है। आने वाले दिनों में भी नेता लोग ही बर्बादी के लिए जिम्मेदार होगे। जिस तरह जिले के भाजपाईयों ने ब्लॉकों को नकली लोगों के हवाले कर दिया, उसका खामियाजा भी इन्हें भुगतना पड़ा। अब आप जरा अंदाजा लगाइए कि बनकटी ब्लॉक 50 करोड़ के क्लब में तो षामिल हो गया, लेकिन इस ब्लॉक के मात्र 1892 मजदूरों को ही सौ दिन का रोजगार मिल सका, आखिर इतना पैसा गया कहां। जिस जिले में अब तक मनरेगा में साढ़े चार अरब से अधिक खर्च हो गया, और उस जिले के मात्र 16127 मजदूरों को ही सौ दिन का रोजगार मिला, तो पैसा कहां गया? जमीन खा गई या फिर असली-नकली प्रमुख खा गए। विक्रमजोत जिले का पहला ऐसा ब्लाक हैं, जहां पर एक भी दिव्यागं को सौ दिन का रोजगार नहीं मिला। दिव्यांग को सबसे अधिक सौ दिन के रोजगार देने के मामले में असली प्रमुख वाला ब्लॉक सदर रहा, यहां पर 55 को सौ दिन का रोजगार मिला। बनकटी जिसने पूरे देश में झंडा फहराया, उसने भी मात्र 18 दिव्यांग को सौ दिन का रोजगार दिया। जिले में अगर चार लाख 78 हजार 633 मजदूरों में मात्र 16127 को ही सौ दिन तक रोजगार मिलता हैं, तो फिर सौ दिन का रोजगार देने की गांरटी देने वाले इस योजना का क्या औचित्य और महत्व रह गया। नकली प्रमुख वाले ब्लॉक की फीगर जान लीजिए। बहादुरपुर में 38.04 करोड, बनकटी 50 करोड़, दुबौलिया 29.40 करोड़, गौर 34.39 करोड़, हर्रैया 31.81 करोड़, कप्तानगंज 23.36 करोड़, परसरामपुर 42.81 करोड़, सल्टौआ 19.92 करोड़ जनवरी 25 तक खर्च किया। अब जरा उन असली प्रमुखों का जान लीजिए, जो नकली के आगे बुरी तरह फेल हो गए। यह लोग सोच रहे होगें कि अगर मैं नकली होता तो अधिक फायदें में रहता। भले ही सरकारी बैठकों में भाग ना लेने का मौका मिलता, लेकिन जमकर मलाई काटने का मौका तो मिलता। सदर ने 15.52 करोड़, रामनगर ने 24.28 करोड़, रुधौली ने 20.58 करोड़, साउंघाट ने 13.01 करोड़ यहां के प्रमुख की गिनती सबसे गरीब प्रमुखों में होती हैं, इसी तरह विक्रमजोत ने 22.37 करोड़ खर्च किया। भाजपा नेताओं की ओर से लूटपाट में रिकार्ड बनाने वाले सभी नकली और असली प्रमुखों को ढ़ेरों बधाई।

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