जब हथियार चलाने वाले सिपाही ही नहीं रहेगें तो भाजपा 27 का जगं कैसे जीतेगी?

जब हथियार चलाने वाले सिपाही ही नहीं रहेगें तो भाजपा 27 का जगं कैसे जीतेगी?

जब हथियार चलाने वाले सिपाही ही नहीं रहेगें तो भाजपा 27 का जगं कैसे जीतेगी?

-बूथ कार्यकर्त्ता कोई एमपी, एमएलए या फिर प्रमुख तो बनना नहीं चाहता, वह तो यह चाहता है, कि लेखपाल, सचिव, चौकी इंचार्ज, पीएचसी, सरकारी डाक्टर और बीडीओ उसकी जायज बातों को सुन ले, और पीड़ितों की मदद कर दें, अगर इतना भी उसे सम्मान नहीं मिलेगा तो वह क्यों दरी बिछाएगा? क्यों पार्टी के लिए वोट मांगने जाएगा?

-किसी भी पार्टी के लिए प्राथमिक इकाई बूथ होती, अगर बूथ स्तर का कार्यकर्त्ता निराश रहेगा, तो फिर वह क्यों चुनाव में मदद करेगा या फिर रैली और जुलूस में क्यों भीड़ एकत्रित करेगा

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि जब हथियार चलाने वाले सिपाही ही नहीं रहेगें तो भाजपा 2027 का जगं जीतेगी तो कैसे जीतेगी? पार्टी और नेताओं की उपेक्षाओं के चलते जिस तरह बूथ स्तर के कार्यकर्त्ता निराश और हताश होकर तितर-बितर हो रहे हैं, अगर यही तितरने और बितरने का सिलसिला जारी रहा है, तो भाजपा के लिए 27 का चुनाव जीतना टेढ़ी खीर साबित होगा। आखिर भाजपा किसके दम पर 27 फतह करेगी? जिन बूथ कार्यकर्त्ताओं पर नाज था, वह तो घर बैठ गए, ऐसे में क्या कोई नेता या फिर प्रत्याशी के भरोसे पार्टी चुनाव जीतेगी? कहा भी जाता है, कि कोई चुनाव रुपी जंग तभी जीती जा सकती है, जब उसके सिपाही खुष और संतुष्ट रहतें हैंे। निराषा और हताशा के साए में ना तो जंग और ना ही चुनाव ही जीता जा सकता है। पार्टी जिसे अपना बैकबोन कहती हैं, उसी बैकबोन को पार्टी और उनके नेता तोड़ दे रहें है। भाजपा को सत्ता में लाने वाला बूथ कार्यकर्त्ता इतना निराश और हताष हो चुका है, कि वह बूथ तक जाने को तैयार नहीं, जिसे भाजपा सबसे अधिक मजबूत कड़ी मानती है, उसी कड़ी को भाजपा के लोगों ने अपने लाभ के लिए कमजोर कर दिया। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि पार्टी प्रदेश में सत्ता में आएगी कैसे? जब बूथ को जीताने वाला कार्यकर्त्ता ही नहीं रहेगा। क्या सांसद और एमएलए प्रत्याशी बूथ जीताएगें? जीताएगा तो सिर्फ और सिर्फ बूथ स्तर का कार्यकर्त्ता ही। यह भी सच है, कि अगर किसी निराश और हताश सिपाही के हाथ में तोप भी दे दिया जाए तो वह जंग जीतने को कौन कहे, तोप तक नहीं चला सकता। जंग हमेशा जाबांज सिपाहियों के जज्बें और उनकी हिम्मत एवं हौसले से जीती जाती। भाजपा का सिपाहियों को मानसिक रुप से इतना कमजोर कर दिया गया है, कि उसके पास तलवार चलाने को कौन कहे, तलवार उठाने तक ताकत नहीं रह गई। चुनावी रुपी जंग जीतना तो बहुत दूर की बात है।

आप लोग भी सोचते होगें कि क्यों मीडिया बार-बार कार्यकर्त्ताओं का ही रट लगाए रहती है। यह बात वही मीडिया वाला और कार्यकर्त्ता समझ और महसूस कर सकता है, जिसने उपेक्षा का दंश झेला और देखा होगा। अगर कार्यकर्त्ताओं की बात इनके नेता नहीं सुनते, और ऐसे में किसी मीडिया वाले ने सुन लिया तो इन्हें यह लगता है, कि चलो अगर उनकी पार्टी ने नहीं सुना तो कम से कम मीडिया ने तो सुना। चुनाव ही एक ऐसा जंग हैं, जो कार्यकर्त्ताओं के बिना नहीं जीता जा सकता। क्यों कि नेता तो स्वार्थी होतें हैं, लेकिन कार्यकर्त्ता आज भी अपने आप को भाजपा का सच्चा सिपाही कहता है। बूथ स्तर का एक कार्यकर्त्ता ही ऐसा होता है, जो ना तो एमपी और ना एमएलए का टिकट मांगता है, और ना उसकी नजर प्रमुख की कुर्सी पर ही रहती है। वह तो सिर्फ इतना ही चाहता हैं, कि पार्टी में उसका मान-सम्मान बना रहें, स्थानीय स्तर के अधिकारी उनकी बातों पर ध्यान दें, बूथ स्तर के कार्यकर्त्ताओं की पहुंच चौकी और ब्लॉक तक रहती है, अगर यहां पर भी उसकी नहीं सुनी जाएगी तो फिर उसके लिए भाजपा का कार्यकर्त्ता होने का कोई मतलब नहीं। इन लोगों की यही पीड़ा है, कि उनकी बात को कोई भी नहीं सुन रहा है। पार्टी के नेता तक नहीं सुन रहे हैं, ऐसे में कार्यकर्त्ता अपने ही पार्टी और अपने ही लोगों के बीच ठगा हुआ महसूस कर रहा है। जिस भी पार्टी ने कार्यकर्त्ताओं की उपेक्षा की उसका खामियाजा उसे भुगतना ही पड़ा। अगर इतनी छोटी सी बात भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के लोगों के समझ में नहीं आती तो फिर पार्टी को डुबने से कोई नहीं बचा सकता। अगर कार्यकर्त्ताओं को उनकी पसंद का जिलाध्यक्ष नहीं मिला या फिर ऐसा जिलाध्यक्ष मिला जो कमजोर हो, या फिर जिसका रिमोट किसी और के हाथ में रही तो रही सही कसर भी पूरी हो जाएगी। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा हैं, कि इस बार पार्टी को नया प्रयोग करना चाहिए, किसी ओबीसी या फिर एससी कार्यकर्त्ता को अवसर देना चाहिए। क्यों कि इसी दोनों वर्ग के कार्यकर्त्ता पिछले 30-35 सालों से अपने वर्ग के नेता को जिलाध्यक्ष के रुप में देखना चाहते है। अगर पार्टी ने कार्यकर्त्ताओं के इच्छाओं का सम्मान किया तो निराशा और हताशा में डुबा एक बड़ा वर्ग पार्टी के साथ जुड़ सकता है। जिसकी पार्टी की आज के दौर में सबसे अधिक आवष्यकता है।

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