जो भाजपाईयों का नहीं हुआ, वह सपाईयों का क्या होगा?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राजनीति
- Updated: 22 February, 2025 09:30
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जो भाजपाईयों का नहीं हुआ, वह सपाईयों का क्या होगा?
-जब सपाईयों को धोखा मिलेगा, तब उन्हें पता चलेगा कि अध्यक्ष क्या चीज? भाजपा के सांसद/ विधायकों के बाद, अब सपा के सांसद और विधायकों के लालीपाप मिलने की बारी
-चार साल तक भाजपा के एक सांसद, पांच विधायकों और 43 जिला पंचायत सदस्यों को लालीपाप देने वाले क्या इनके लालीपाप से सपा के सांसद तीन विधायकों बच पाएगें
-यह उन भाजपाईयों के नहीं हुए, जिन लोगों ने इन्हें कुर्सी पर बैठाया, करोड़ों रुपया लगाया, तो क्या यह उन सपाईयों के हो पाएगें, जो आजकल ढ़ाल बने हुए
-जिला पंचायत के पिछले दो बैठकों में जिस लालच में सपा के माननीय, अध्यक्ष के बचाव में सामने आए, उसका फल उन्हें धोखे के रुप में मिलने वाला
बस्ती। बार-बार कहा जा रहा है, कि जो अध्यक्ष अपने रिष्तेदार, भाजपा के एक सांसद और पांच विधायकों का नहीं हुए, उन लोगों का नहीं हुए जिन्होंने इन्हें कुर्सी पर बैठाया, चुनाव में करोड़ों लगाया, अपनों से नाराजगी मोल ली, वह क्या उन सपा के सांसद और विधायकों के हो पाएगें, जो आजकल इनके ढ़ाल बने हुएं है। कहा जाता है, कि जिस लालच में सपाई भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष का ढ़ाल बने हुए है, क्या उनका सपना पूरा हो पाएगा? इन लोगों के सवालों का जबाव ना में है। यह बात सपाई जितनी जल्दी हो सके समझ ले, वरना रोने और पछताने के आलावा कुछ भी हाथ में आने वाला नहीं है। इनके विरादरी वाले भी यह बात गांठ बांध ले कि उन्हें भी एक दिन धोखा ही मिलेगा। जिस व्यक्ति ने धोखे को ही अपनी सफलता मान ली है, उस व्यक्ति से ईमानदारी और वफादारी की कैसे उम्मीद की जा सकती है? अगर इसके बाद भी किसी को अध्यक्ष के बारे में गलतफहमी है, तो उसे जल्दी से जल्दी दूर कर लेना चाहिए। कहा जाता है, कि जिला पंचायत, सपा के सांसद और विधायकों से नहीं चलता, बल्कि जिला पंचायत सदस्यों की सहमति और असहमति से चलता है। इस बात पर सपा के नेताओं को अवष्य विचार करना चाहिए। इस बात भी विचार करना चाहिए कि जब इनके बचाव में एक भी भाजपाई सामने नहीं आए, तो वह क्यों आ रहे हैं? अगर सपाईयों को इतनी छोटी सी बात समझ में नहीं आती तो भगवान ही उनका मालिक है। इनका जो काम है, वह तो कर नहीं रहे हैं, बल्कि अपने ठेका पटटी के लिए दूसरे के काम में अड़गा लगा रहे है। कहा जाता है, कि इनके आखों पर से जाति का पर्दा तब उठेगा, जब पता चलेगा कि ढ़ाल बनकर उन्हें क्या मिला और क्या नहीं मिला? सपाईयों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह विपक्ष में हैं, और उनका काम सत्ता पक्ष के भ्रष्टाचार का विरोध करना और उजागर करना ना कि भ्रष्टाचारियों का साथ देना, वैसे भी जिला पंचायत के अध्यक्ष का बचाव करके विपक्ष की जगहसांई हो रही है। लोग कह भी रहे हैं, कि ऐसे में भाजपा के अध्यक्ष और विपक्ष के नेताओं में क्या फर्क रह गया? यह सोचना जनता का नहीं बल्कि विपक्ष के नेताओं का काम है। क्यों कि जनता ने उन्हें विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए वोट दिया है, ना कि सत्ता पक्ष के भ्रष्टाचार का समर्थन करने और उनका बचाव करने के लिए। विपक्ष के नेता जिला पंचायत में व्याप्त भ्रष्टाचार की अनदेखी नहीं सकते, क्यों कि इसके लिए सबसे अधिक जबावदेही विपक्ष के नेताओं की ही बनती है। सपाईयों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिला पंचायत उनका नहीं बल्कि भाजपा का है। आज जो जिला पंचायत के भ्रश्टाचार को लेकर बाहर हो रही है, उसके लिए सपा के माननीयों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। यह लोग अपने नगर पालिका अध्यक्ष भाजपा में जाने से बचा नहीं पाए और चले हैं, भाजपा के जिला पंचायत को बचाने। यह लोग पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की आवाज नहीं उठा रहे हैं, अलबत्ता जिला पंचायत के भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए आगे अवष्य आ रहे है। हिम्मत तो नगरपालिका की बैठक में जाइए और वहां भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर हमला बोलिए, तब तो आप को विपक्ष का माना जाएगा।
अब आ जाइए, 50 करोड़ के बजट पर, जिस पर सबकी नजर लगी है। यही वह अंतिम जिला पंचायत अध्यक्ष का बजट हैं, जिसके बंदरंबाट करने के लिए इतना हो हल्ला हो रहा है। अनेक जिला पंचायत सदस्य और जानकारों का कहना है, कि अगर कोई समझदार अध्यक्ष होता तो वह 50 करोड़ में से 20 करोड़ सदस्यों को दे देता, यानि एक-एक सदस्य को 50-50 लाख का काम दे देता। सारे खुष हो जाते। बचा 30 करोड़, इनमें अगर सपा के सांसद और चारों विधायकों को पांच करोड़ भी दे देते तो भी अध्यक्ष के खाते में 25 करोड़ बचता, एक डेढ़ करोड़ एएमए को दे देते, तब भी अध्यक्ष के पास लगभग 23-24 करोड़ बचता। अब यह अध्यक्ष के उपर होता कि वह 24 करोड़ में से किसको कितने कमीषन पर काम देते। रही बात 25 करोड़ के काम कराने की तो उसमें से भी 20 फीसद कमीषन के दर से अध्यक्ष को पांच करोड़ मिलेगा। इस तरह देखा जाए तो बिना किसी विवाद के अध्यक्ष के जेब में जाते-जाते 15 करोड़ से अधिक आ जाता। लेकिन यह गणित एक ईमानदार अध्यक्ष के लिए है, ना कि उसके लिए जिसे अकेले खाने की आदत पड़ी हो। यह भी सही हैं, कि सभी लोग अंतिम समय में अधिक से अधिक माल बटोरने चाहेगें। अब यह गिल्लम चौधरी के उपर है, कि वह हीरो की भूमिका में अपने सदस्यों की अपेक्षाओं पर खरे उतर पाते हैं, कि नहीं?
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