विशेषाधिकार न मिलने की छटपटाहट,
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 28 December, 2024 07:36
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विशेषाधिकार न मिलने की छटपटाहट,
लाख कोशिश के बावजूद गांधी परिवार अपनी कानूनी परेशानियों से बाहर निकल नहीं पा रहा है। 2014 के बाद से ही उसके लिए यह स्थिति पैदा हुई है। उसे अदालतों से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। आजादी के तत्काल बाद से ही नेहरू-गांधी परिवार कानून से ऊपर माना जाता रहा। तरह-तरह की कानूनी परेशानियों से यह परिवार साफ बच निकलता रहा, पर प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्थिति को बदल कर रख दिया है। इसी कारण गांधी परिवार नेशनल हेराल्ड मामले की गिरफ्त में है।
नतीजतन गांधी परिवार में अजीब तरह की बेचैनी है। उसका असर राहुल गांधी की देह-भाषा पर है और उनकी जुबान पर भी। राहुल गांधी और उनके लोग कभी चुनाव आयोग तो कभी अदालत के खिलाफ बोलते हैं और कभी संसद के पीठासीन पदाधिकारियों को अपमानित करते हैं। इससे उन्हें कोई राजनीतिक या चुनावी लाभ नहीं मिल रहा है, लेकिन वे समझने को तैयार नहीं।
राहुल गांधी यह समझते हैं कि मोदी तथा संवैधानिक संस्थाओं पर भी तरह-तरह के झूठे आरोप लगाकर उन्हें अपने स्तर पर नीचे खींच लाएंगे, ताकि आम लोग मोदी को उनसे बेहतर न मानें, पर ऐसा तो तब होगा जब प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई प्रमाण हाथ लगे। राहुल गांधी को हवा में तीर चलाने से अब तक तो कोई लाभ नहीं मिला है। उल्टे विपक्षी गठबंधन के अधिकतर दलों ने उन्हें एक विफल नेता मानकर उनसे किनारा करना शुरू कर दिया है।
नेहरू-गांधी परिवार में 2014 तक यह धारणा बनी हुई थी कि यह परिवार किसी भी कानून से ऊपर है। भारत उसकी मिल्कियत है। उसे ही इस देश पर शासन करने का नैसर्गिक अधिकार है। मोदी के सत्तासीन हो जाने के बाद परिवार का वह विशेषाधिकार समाप्त हो गया है। नेहरू-गांधी परिवार कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत वाली व्यावहारिक स्थिति को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो पा रहा है। सोनिया-राहुल की छटपटाहट का सबसे बड़ा कारण यही है। इससे पहले इस परिवार को इतनी छूट रही कि एक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री कहा करते थे कि ‘‘प्रथम परिवार” को छूना तक नहीं है।
ऐसे अघोषित विशेषाधिकार प्राप्त परिवार के सामने जब कानूनी गिरफ्त से बचने का कोई तरीका नजर न आए तो उसकी मनोदशा कैसी होगी, इसकी कल्पना कर लीजिए। इस तनाव और छटपटाहट के कारण ही राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका भी गरिमापूर्ण ढंग से निभाने में विफल हैं।
यदि प्रतिपक्ष का नेता विवेकपूर्ण ढंग से ठोस तथ्यों पर आधारित अपनी बातें रखे तो जनता के बीच उसकी लोकप्रियता बढ़े, छवि बेहतर हो, पर राहुल गांधी ने अपनी असंगत बोली तथा असामान्य देह भाषा के जरिए सदन की गरिमा गिराने की जितनी कोशिश की, वह अभूतपूर्व है। अपने परिवार के इतिहास के गर्व में पल रहे राहुल गांधी ने पूर्वजों के इतिहास के किस्से सुन रखे होंगे। संभवतः अपने प्रति उसी तरह के व्यवहार की उम्मीद वह मौजूदा सरकार से भी कर रहे होंगे। अब यह संभव नहीं।
गांधी परिवार पर पहला कानूनी संकट नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही आया था।1949 में लंदन में भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्णमेनन पर जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगा। कांग्रेसी नेता अनंत शयनम अयंगार की जांच कमेटी ने उन्हें सरसरी तौर पर दोषी माना और विस्तृत न्यायिक जांच की सिफारिश की। न्यायिक जांच के परिणामस्वरूप सरकार के खिलाफ कुछ असुविधाजनक जानकारियां सामने आने का खतरा दिखा। इसलिए गृह मंत्री ने 30 सितंबर 1955 को लोकसभा में यह घोषणा कर दी कि जीप घोटाले के इस मामले को बंद कर दिया गया है।
1975 में जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद कर दिया था तो यह आरोप साबित हो गया था कि चुनाव में उन्होंने सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया है। कोई अन्य उपाय न देखते हुए इंदिरा ने 1975 में इमरजेंसी लगा दी और चुनाव कानून बदल दिया। इस तरह उनकी सदस्यता और गद्दी दोनों बच गई। एक अन्य तरह के जीप घोटाले के सिलसिले में 3 अक्तूबर 1977 को सीबीआइ ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर अगले दिन दिल्ली के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया।
मजिस्ट्रेट ने सबूत मांगा तो सीबीआइ के वकील ने कहा कि जांच हो रही है। मजिस्ट्रेट ने श्रीमती गांधी को रिहा करने का आदेश दे दिया। 1979 में जनता पार्टी में आंतरिक कलह के कारण मोरारजी देसाई सरकार गिर गई। कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देकर चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। इंदिरा गांधी ने चरण सिंह को संदेश भेजा कि आप संजय गांधी के खिलाफ जारी मुकदमे को वापस ले लें। चरण सिंह ने इन्कार किया तो उनकी सरकार गिरा दी गई। 1980 में चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं। फिर कौन मुकदमा और कैसी जांच? सब कुछ समाप्त हो गया।
जब 1990 में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तो राजीव गांधी ने उन्हें संदेश भेजा कि बोफोर्स केस वापस कर लीजिए। ऐसा करने से मना करते हुए चंद्रशेखर ने इस्तीफा दे दिया। बीते दिनों यह खबर आई कि बोफोर्स मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है। ज्ञात हो कि 2004 में बोफोर्स मामले में राजीव गांधी और संबंधित दलाल को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिल गई थी।
हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए सीबीआइ को अनुमति नहीं दी गई थी, जबकि एजेंसी के ला अफसर ने अपील के लिए इसे एक मजबूत मामला बताया था। नेहरू-गांधी परिवार की समस्या यह है कि सरकार तथा संवैधानिक संस्थानों पर ओछे आरोपों और टिप्पणियों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी इस परिवार को कानून से ऊपर नहीं मान रहे हैं। इसी कारण यह परिवार उन पर अनावश्यक रूप से हमलावर रहता है।
सुरेंद्र किशोर।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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