प्रधानपति और देवर ने मिलकर जखनी को किया जख्मी!

प्रधानपति और देवर ने मिलकर जखनी को किया जख्मी!

प्रधानपति और देवर ने मिलकर जखनी को किया जख्मी!

-एक करोड़ से अधिक कीमत की जमीन को तत्कालीन एसडीएम ने सुविधा शुल्क लेकर गांव कौड़ियों के भाव वाली जमीन से बदल दिया और बंजर की जमीन ग्राम प्रधान के रिश्तेदारों के नाम दर्ज कर दिया।


-जखनी के लोगों को कैसे मिले प्रधान पति और देवर से छुटकारा?

-जिले भर के गांव के लोग प्रधानपति और नकली प्रधानों के लूटखसोट से परेशान


-पति लालजी और देवर गोपाल मिलकर पत्नी और भाभी को काठ का उल्लू बनाकर

-गांव वालों का कहना कि दोनों भाइयों ने कानून का मजाक बनाकर रख दिया

-इन दोनों को न तो पत्नी और न भाभी से बल्कि सरकारी संपत्ति हड़पने से प्रेम

बस्ती। सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि षहर से सटे ग्राम पंचायत जखनी को प्रधानपति लालजी और देवर गोपाल ने एक तरह से जख्मी कर दिया है। ऐसा जख्म दिया जो भरने वाला नही। वैसे देखा जाए तो प्रधानपतियों और नकली प्रधानों ने जिले भर के गांव को अपनी इच्छा की पूर्ति के जख्मी कर दिया। गांव वाले कहते हैं, कि हम लोगों ने इद्रावती को प्रधान चुना न कि उनके पति और देवर को। कहते हैं, कि अगर उन लोगों को यह मालूम होता कि उनका गांव प्रधानपति और देवर के कारण जख्मी हो जाएगा तो इंद्रावती को कभी प्रधान नहीं चुनते। गांव वालों का यह भी कहना है, कि पति और देवर दोनों झगड़ालू और दबंग किस्म के लोग है। यह दोनों कानून को मजाक बनाकर रख दिया। इन दोनों के लिए नियम कानून एक कागत की टुकड़ा जैसा है।

अब जरा भाईयों का बंजर जमीन प्रेम तो देखिए। लालजी ने, अपने सगे भाईयों गोपालजी चौरसिया, बालाजी, बृजेश कुमार, और अपनी माता मालती देवी के नाम पर उप जिलाधिकारी, बस्ती सदर के न्यायालय में एक विनिमय पत्र (तबादला) का वाद दाखिल किया। सुनने में बड़ा सीधा-साधा मामला लगता है, लेकिन जखनी की जमीन का ये तबादला, किसी हॉलीवुड थ्रिलर से कम नहीं है। प्रधानपति गोपाल ने दावा पत्र में कहा कि बंजर जमीन गाटा संख्या 293 बंजर है, जिसे वह लेना चाहता है, यहां पर सरकार आंगनवाड़ी केंद्र बनाना चाह रही थी उसे गांव के अंदर उसकी व्यक्तिगत जमीन गाटा संख्या 217 से बदल दिया जाए, जब एसडीएम साहब को सुविधा शुल्क मिल गया तो सारे नियम कानून ताक पर रख दिया। एक करोड़ से अधिक कीमत की जमीन को तत्कालीन एसडीएम ने गांव के अंदर कौड़ियों के भाव वाली जमीन से बदल दिया और बंजर की जमीन ग्राम प्रधान के रिश्तेदारों के नाम दर्ज कर दिया। शिकायतकर्ता और ग्रामीणों का कहना है कि लालजी ने अपने शातिर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए हल्का लेखपाल और राजस्व निरीक्षक को भी अपनी साजिश में शामिल  लिया। जिसका परिणाम, जिस बंजर जमीन पर गाँव का हक था, उस पर अब लालजी, उनके भाईयों और माता जी के नाम खतौनी में दर्ज हो गया। सवाल उठ रहा है, कि जब एसडीएम, लेखपाल और कानूनगो ही सरकारी जमीनों को बेचने लगेगें तो फिर इसके दफरुपयोग को रोकेगा कौन? हैरान करने वाली बात यह है कि गाँव में न कोई डुग्गी मुनादी हुई और न ही भूमि प्रबंधक समिति की ओर से कोई प्रस्ताव ही पारित हुआ। इसे कहते हैं, शातिर भाईयों के दिमाग का खेल। गाँव वालों को तो इस महा-बदलाव की भनक तक नहीं लगी। भनक लगे भी तो कैसे? जब सरकारी जमीन के घोटाले में प्रधान से लेकर कानूगो और एसडीएम तक साजिश में शामिल रहे। यहां तक कि पत्रावली में जिस देवनाथ नामक ग्रामीण को डुग्गी मुनादी करने की जिम्मेदारी दी गई, उसका कहना है, कि उसे कुछ नहीं मालूम। इसके अलावा पांच ग्राम सदस्यों ने भी डीएम को लिखकर बताया कि उनके फर्जी सिग्नेचर से जमीन विनिमय कर लिया गया है।

लेखपाल महोदय ने अपनी रिपोर्ट में फरमाया है कि इन दोनों गाटों की मालियत शून्य है। साथ ही, बंजर में आने-जाने का रास्ता भी नहीं है। जखनी के मूल निवासी जानते हैं कि ये बंजर मुख्य मार्ग से सटा है और इसकी मालियत बाजार मूल्य से कई गुना ज््यादा है, वहीं सरकारी दस्तावेज इसे शून्य घोषित कर रहे हैं। इस एक शुन्य ने चालाक भाईयों को करोड़पति बना दिया। जिस गाटे 217 का विनिमय/तबादला हुआ है, वहाँ नक्शे में कोई जगह खाली नहीं है। आज की तारीख में, प्रधानपति लालजी और उनके परिवार ने इस शून्य मालियत वाले बंजर पर पूरा कब्जा जमा लिया है। अब अगर कोई काश्तकार अपनी जमीन पर कब्जा करने या कोई निर्माण कार्य करने की सोचता है, तो लालजी और उनकी सेना तुरंत फौजदारी पर आमादा हो जाती है। अगल-बगल के काश्तकारों द्वारा विरोध करने पर उन्हें जान से मारने की धमकियां तक मिलती हैं। जिसके शिकार दिलीप और गुड़िया है जिन्होंने बाकायदा डीएम से लिखित शिकायत कर पूरे प्रकरण से पर्दा हटाने और तत्काल जांच कर कार्रवाई की मांग की है। डीएम रवीश कुमार गुप्त ने शिकायत का संज्ञान लेकर तुरंत मुख्य राजस्व अधिकारी को जांच के लिए कहा है, अब आने वाला समय ही बताएगा सरकारी जमीन हड़पने वाले माफियाओं के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है? वैसे भी जिन मामलों अधिकारी की भूमिका रहती है, उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती, क्यों कि कोई डीएम, सीडीओ और एडीएम नहीं चाहेगें कि उसके वर्ग की बदनामी हो।


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