नहीं बच पाएगें डा. बाबू राम मौर्य, इन्हें भी होना पड़ेगा निलंबित!

नहीं बच पाएगें डा. बाबू राम मौर्य, इन्हें भी होना पड़ेगा निलंबित!

नहीं बच पाएगें डा. बाबू राम मौर्य, इन्हें भी होना पड़ेगा निलंबित!

-मानवेंद्र श्रीवास्तव को निलंबित करके इन्होंने साबित कर दिया, कि यह भी दोषी

-चार माह बाद भी जिला कृषि अधिकारी ने अभी तक 55 लाख के घोटाले के दोषी कौशल किशोर सिंह पर कार्रवाई नहीं किया, मलाईदार पटल भी दे दिया, इन्हें भी निलंबित होना

-इस मामले में तत्कालीन उप निदेशक कृषि डा. संजय त्रिपाठी भी दोषी पाए, कार्रवाई भी हुई

-जिला कृषि अधिकारी यह कहकर नहीं बच सकते कि बाबू ने धोखे से हस्ताक्षर करवा लिया, क्यों कि साहब ने नोटशीट पर हस्ताक्षर किया, यानि इन्हें अच्छी तरह मालूम था, कि वह 50 लाख के गबन करने की साजिश पर हस्ताक्षर कर रहें

बस्ती। जिला कृषि अधिकारी डा. बाबूराम मौर्य की मुसीबते कम होने वाली नहीं है। इसके लिए इन्हें खुद जिम्मेदार माना जा रहा है। आठ साल के 50 लाख के अतिरिक्त वेतन निर्धारण के मामले में इनपर भी कार्रवाई हो सकती है। इन्होंने भले ही पटल सहायक मानवेंद्र श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया, लेकिन यह भी नहीं बच पाएगें, क्यों कि साहब के रुप में अंतिम हस्ताक्षर तो इन्हीं का हैं, साहब यह कहकर भी नहीं बच सकते कि बाबू ने धोखे से पत्रावली पर हस्ताक्षर करवा लिया, क्यों कि नोटशीट पर इनका हस्ताक्षर हैं, और नोटशीट पर अधिकारी अंजाने में हस्ताक्षर नहीं करता और न बाबू ही धोखे से करवा सकता, साहब ने हस्ताक्षर जानबूझकर और सोच समझकर किया। कोई भी जिला स्तर का अधिकारी यूंही नहीं आंख बंदकरके नोटशीट पर हस्ताक्षर करता। अगर एक ही मामले में दो लोगों को दोषी बनाया गया, तो कार्रवाई भी दोनों के खिलाफ नियमानुसार होना चाहिए, भले ही जिला कृषि अधिकारी होने के नाते विभाग इन्हें मामूली दंड देकर बरी कर दें, लेकिन जब यह मामला हाईकोर्ट में जाएगा, तो मानवेंद्र श्रीवास्तव को बहाल होने में एक सेकेंड नहीं लगेगा। कोर्ट अवष्य सरकार से पूछेगी कि जब एक ही मामले में दो दोषी हैं, तो फिर सजा क्यों एक को दी गई, क्यों नहीं जिला कृषि अधिकारी को दी गई। चूंकि पीड़ित पक्ष सिर्फ अपना पक्ष रखने जाता है, इस लिए राहत भी उसी को ही मिलती है, अगर मानवेंद्र कोर्ट से यह कहे कि जिला कृषि अधिकारी को भी निलंबित होना चाहिए, तो कोर्ट निर्णय ले सकती है। बहरहाल, यह एक ऐसा अनूठा घोटाला करने की साजिश का पर्दाफाश हुआ, जो बहुत ही कम सुनाई और दिखाई देता है। यह सही है, कि बाबू और साहब ने मिलकर मृतक को आठ साल की सैलरी का फिक्सेशन जानबूझकर और नीजि लाभ के लिए किया। ऐसा लगता है, कि फिक्सेषन के लिए 15 साल तक ग्राहक के आने का इंतजार साहब और बाबू करते रहे। वरना विभाग ने तो 2010 में ही 1997 तक वेतन फिक्सेशन करने का आदेश दिया था। 15 साल तक जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायक इस बात का इंतजार कर रहे थे, कि कोई भक्त आवे और चढ़ावा चढ़ाए, तब फाइल खोली जाए। इन 15 सालों में विभाग ने भी यह पता करने का प्रयास नहीं किया कि उनके आदेश का पालन हुआ कि नहीं? यह तो वह मामला है, जहां पर वित्तीय अनियमितता तो नहीं हुई, सिर्फ साजिश की गई, लेकिन एक ऐसा भी मामला है, जिसमें 23-24 में 55 लाख की वित्तीय अनियमितता की गई, शासन ने पटल सहायक कौशल किशोर सिंह और तत्कालीन उप निदेशक कृषि डा. संजय त्रिपाठी को इसके लिए दोषी माना। लगभग चार माह पहले जिला कृषि अधिकारी डा. बाबूराम मौर्य को पटल सहायक के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई यानि निलंबित करने को लिखा, कई स्मरण पत्र भी आए, लेकिन ठहरे जिला कृषि अधिकारी, इस लिए यह चार माह तक मामले को ठंडें बस्ते में डाल रखा, क्यों डाल रखा होगा, यह लिखने की नहीं बल्कि समझने की बात है। हुआ यह था, कि 23-24 में विभाग ने एससी वर्ग के किसानों के लिए अनुदान योजना के तहत 55 लाख का बजट जारी किया, लेकिन बाबू और साहब ने मिलकर अधिक बखरा के चक्कर में अनुदान को सवर्ण के किसानों में वितरित होना कागजों में दिखा दिया। जब षिकायत पर इसकी जांच हुई तो साहब और बाबू दोनों दोषी पाए गए। लेकिन चार माह हो गए, अभी तक जिला कृषि अधिकारी ने पत्र को संज्ञान में ही नहीं लिया, इतना ही नहीं 55 लाख के घोटाले के दोषी पटल सहायक को मलाईदार पटल थमा दिया। इसी लिए कहा जा रहा है, कि डा. बाबू राम मौर्य भी नहीं बच पाएगें। हो सकता है, कि बस्ती से इनकी विदाई जल्द ही हो जाए। जिला कृषि अधिकारी, पटल सहायक को जितना दिन तक बचाना चाह रहे थे, बचा लिया, लेकिन अब बचने वाले नहीं है। मानवेंद्र श्रीवास्तव की तरह इन्हें भी आज नहीं तो कल निलंबित होना ही है। जब भी जिला कृषि अधिकारी बस्ती से जाएगें तो यह अपने साथ ब्रीफ केस तो लेकर जाएगें, साथ ही ऐसी कड़वी यादें लेकर जाएगें जो कभी नहीं भूलेगा। अगर बाबू कोई गलती या गोलमाल करता है, तो बात समझ में आती है, लेकिन अगर कोई जिला स्तरीय अधिकारी गलत करता है, तो किसी को भी समझ में नहीं आता। चूंकि कृषि विभाग की बुनियाद ही भ्रष्टाचार के मिटटी गारे से बनी है, इस लिए यह कोई नई बात नहीं है। यहां पर किसान नहीं बल्कि बाबू और साहब उन्नति करते है।

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