मुंडेरवा चीनी मिल घोटाले की नींव बर्खास्त एसके मेहरा ने रखी
- Posted By: Tejyug News LIVE
- क्राइम
- Updated: 20 May, 2025 21:25
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मुंडेरवा चीनी मिल घोटाले की नींव बर्खास्त एसके मेहरा ने रखी
-जिस कानुपर के लेनिगं सिक्यूरिटी एजेंसी ने गन्ना विकास के नाम पर लगभग 13 करोड़ का घोटाला किया, उसी एजेंसी को मुंडेरवा मिल के मार्केटिगं का करोड़ों का ठेका भी दे दिया
-जिस एजेंसी ने करोड़ों का चूना लगाया, उसी ने तीन करोड़ का दावा भी लखनउ हाईकोर्ट में ठोंक डाला
-इस एजेंसी के भ्रष्टाचार को जीएम और सामान्य गन्ना प्रबंधक ने खूब बढ़ावा दिया, भुगतान करने से यह दोनों क्षेत्र में देखने ही नहीं गए, कि एजेंसी ने गन्ने का विकास किया की नहीं, 30 फीसद बखरा मिल गया तो भुगतान कर दिया
-जिन किसानों ने खुद गन्ने का विकास किया था, उनका भी रक्बा नामपर प्रति हे. 35 हजार के दर से करोड़ों का भुगतान जिम्मेदारों ने कर दिया, ऐसे तीन सौ गांवों का फर्जी भुगतान लिया
-अब जब भुगतान का हिसाब-किताब जीएम मुंडेरवा से मांगा जा रहा है, तो रिकार्ड ही नहीं मिल रहे, जाते-जाते सीए रवि प्रभाकर घोटाले के सारे सबूत लेकर चले गए
-भाकियू नेता दीवानचंद्र पटेल जैसे अन्य गन्ना समिति के चेयरमैन हो जाए चीनी मिलों से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए
बस्ती। मुंडेरवा चीनी मिल के करोड़ों के घोटाले को उजागर करने वाले भाकियू नेता एंव मुंडेरवा गन्ना समिति के पूर्व चेयरमैन दीवानचंद्र पटेल का कहना है, कि जब तक घोटाले में शामिल जिम्मेदारों के खिलाफ एफआईआर और रिकवरी की कार्रवाई नहीं हो जाती, तब तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी, भलें ही चाहें उन्हें सीएम से फिर क्यों न मिलना पड़े? कहते हैं, कि अगर वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधि आवाज उठाए होते तो करोड़ों का घोटाला किसानों के नाम पर नहीं होता। मीडिया ने भी इस मामले में अपनी जिम्मेदारी वाली भूमिका नहीं निभाया। उम्मीद यह थी, कि बंद मुंडेरवा चीनी मिल के चलते से क्षेत्र के किसानों को लाभ होगा, उनकी परेषानियां दूर होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि गन्ना किसानों के विकास के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ। जिले के नेता अपने-अपने आदमियों को मिल में फिट करने में लगे रहे, किसी को इस बात की चिंता नहीं थी, कि मिल में घोटाला भी हो रहा है। जिस तरह नेताओं ने अपने लोगों को बीडीए में फिट करवा कर बीडीए को बर्बाद किया ठीक उसी तरह मुंडेरवा चीनी मिल को भी बर्बाद कर दिया। कहा भी जा रहा है, कि अगर दीवानचंद्र पटेल जैसे अन्य गन्ना समिति के चेयरमैन हो जाए तो मिलों से भ्रष्टाचार का सफाया हो जाए, लेकिन यहां पर तो टांसपोर्ट और अपने लोगों को चौकीदार रखवाने में मस्त है।
बताया जा रहा है, कि इस घोटाले की नींव बर्खास्त प्रधान प्रबंधक एसके मेहरा ने लखनउ में बैठकर रची। जीएम और सामान्य प्रबंधक गन्ना पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगा। इन्हीं लोगों की मेहरबानी से कानपुर की लेनिगं सिक्यूरिटी एजेंसी को फर्जी भुगतान हुआ। जीएम और सामान्य गन्ना प्रबंधक क्षेत्र में गए ही नहीं और चेंबर में बैठकर भुगतान कर दिया, तत्कालीन सीएम रवि प्रभारक और वर्तमान एकाउंटेंट रुपेश मल्ल ने अपनी जेबें भरी। 11 करोड़ से अधिक का भुगतान आंख बंदकर हुआ। इसमें अधिकतर भुगतान गलत हुआ। क्षेत्र में जिम्मेदार यह तक देखने नहीं गए कि जिन किसानों के गन्ना विकास के नाम पर भुगतान कर रहे हैं, उन किसानों के गन्ने का विकास हुआ कि नहीं, अगर देखने जाते तो उन किसानों का भुगतान एजेंसी को नहीं करते, जिन किसानों ने खुद गन्ने का विकास किया। अगर देखने जाते तो 130 गांव के सापेक्ष 430 गांव का भुगतान न करते। रिपोर्ट के मुताबिक 300 फर्जी गांव का भुगतान करने की बातें सामने आ रही है। जिन किसानों ने खुद गन्ने का विकास किया था, उनके भी रक्बे को अपना बताकर प्रति हे. 35 हजार के दर से करोड़ों का भुगतान एजेंसी ने ले लिया। जीएम पर इस लिए आरोप लग रहे हैं, क्यों कि इन्होंने एमडी के दो बार रोक के बावजूद एजेंसी को भुगतान करते रहें, यही जांच का सबसे बड़ा बिंदु बना, हो सकता है, कि इसी आरोप में इन्हें जांच अधिकारी नवनीत सेहरा के द्वारा आरोप पत्र थमाया जाए। आरोप पत्र थमाने से पहले जीएम से भुगतान की पूरी जानकारी मांगी है। लेकिन पता चला कि भुगतान की पत्रावली तत्कालीन सीए रवि प्रभाकर अपने साथ लेकर फरार हो गए। मुख्यालय से यह जानकारी तब जीएम से मांगी गई, जब एजेंसी ने चीनी निगम पर तीन करोड़ से अधिक के बकाए का दावा लखनउ हाईकोर्ट में ठोंक दिया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस एजेंसी पर 11 करोड़ से अधिक के घोटाले का आरोप लगा हो, वह एजेंसी चीनी निगम पर तीन करोड़ से अधिेक का दावा ठोंकती हैं, उसके बाद भी इस एजेंसी को मुंडेरवा चीनी मिल के मार्केटिगं करने का करोड़ों का ठेका दे दिया।
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