अध्यक्षजी मिलजुल खाइए, वरना ना खाउंगा और ना खाने दूंगा!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- क्राइम
- Updated: 22 February, 2025 10:02
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अध्यक्षजी मिलजुल खाइए, वरना ना खाउंगा और ना खाने दूंगा!
-कहा कि अगर एक सदस्य का दस रुपये का नुकसान होगा तो अध्यक्ष का 90 रुपये का होगा, गेंद पूरी तरह अध्यक्ष के पाले में हैं, अगर इन्हें 50 करोड़ का मजा लेना है, तो समझौता करना ही पड़ेगा
-जिले के प्रथम नागरिक को कार्यकाल के अंतिम दिनों में सबसे कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ेगा, अगर पास नहीं हुए तो 50 करोड़ से हाथ धोना पड़ेगा, वैसे इनका अब तक का रिकार्ड पास होने का रहा
-इनके पास सिवाय समझौता के और कोई रास्ता नहीं रह गया, और अगर इन्होंने जीएसटी नहीं काटा तो समझौते के रुप में लगभग पांच करोड़ का हर्जाना भरना पड़ सकता, जो कि अब तक सबसे बड़ा हर्जाना होगा
-अगर समझौता हो गया तो सदस्यों ने जितना चार साल में नहीं कमाया, उससे अधिक एक साल में कमा सकते, एक-एक सदस्यों के हिस्से में दस-दस लाख तक आ सकता
-अगर सदस्यों ने लड़ाई की अगुवाई कर रहे गिल्लम चौधरी का ईमानदारी से साथ दिया तो तीसरी बार लखपति बन सकते
-गिल्लम चौधरी भले ही जिले के जनता के हीरो नहीं बन पाए, लेकिन जिला पंचायत सदस्यों के हीरो अवष्य बन गए
बस्ती। जिले के प्रथम नागरिक और बागी जिला पंचायत सदस्यों के बीच आजकल जो जंग छिड़ी हुई हैं, वह कोई जिले के विकास के लिए नहीं, बल्कि कौन कितना खा रहा है, और कौन नहीं खाने को पा रहा हैं, के लिए छिड़ी। बागी इस बार इस लिए इतना उग्र हैं, क्यों कि इन्हें अच्छी तरह मालूम हैं, कि लखपति और करोड़पति बनने का यह इनका अखिरी मौका है। अगर इन लोगों ने इस मौके को गवां दिया तो इन्हें जिदंगी भर पछतावा रहेगा। रही बात जिले के प्रथम नागरिक की तो इन्हें इस बार सदस्यों के आगे घुटनाप टेकना ही पड़ेगा, नहीं तो 50 करोड़ के लाभ से हाथ धोना पड़ेगा, और संजय चौघरी जैसा व्यक्ति इतना बडा घाटा उठाने को तैयार नहीं होगे, अंत में समझौता ही होने वाला हैं, और यह समझौता अब तक का सबसे बड़ा समझौता होगा। अध्यक्षजी को इस बार समझौते में पांच करोड़ देना पड़ेगा। अब तक का रिकार्ड दो करोड़ 49 लाख का रहा। यह रिकार्ड टूटने वाला हैं, क्यों कि रिकार्ड टूटने में ही चाहे जिले को कोई लाभ हो या ना हो लेकिन अध्यक्ष सहित सदस्यों को अवष्य होगा, एक-एक सदस्य के पास कम से कम दस-दस लाख आने वाला हैं, इस रकम को इस लिए अब तक की सबसे बड़ी रकम मानी जा रही हैं, क्यों कि पिछले चार साल मिलाकर भी सदस्यों को इतनी रकम नहीं मिली होगी, जितना पांचवें साल मिलने वाली है। इस लिए गिल्लम चौधरी की अगुवाई में सदस्यों ने सबकुछ झोंक दिया है, यह सही हैं, गिल्लम चौधरी भले ही जिले के जनता के हीरो नहीं बन पाए लेकिन सदस्यों के हीरो अवष्य बनकर उभरे है। इन्हीं की अगुवाई में ही सदस्य दो-तीन बार मलाई काट चुके है। सदस्य अपना भविष्य अब गिल्लम चौधरी के हाथों में अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे है। गिल्लम चौधरी ने भी अपने सदस्यों को पूरा भरोसा दिलाया है, कि अगर सदस्यों ने उनका साथ ईमानदारी से दिया तो उनका मान-सम्मान भी रह जाएगा और दस-दस लाख से अधिक की मलाई खाने को भी मिल जाएगा। वैसे हालात कुछ ऐसे बन रहे हैें, कि इस बार अध्यक्ष धोखा या फिर किसी को ठग नहीं पाएगें, इन्हें अंत में समझौते वाले फारमूले पर हस्ताक्षर करना ही होगा, नहीं नो सदस्यों ने स्पष्ट कह दिया है, कि ना खाउंगा और ना अध्यक्ष को खाने दूंगा। सदस्यों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है, कि वह लोग दस लाख का नुकसान उठाने को तैयार हैं, क्या अध्यक्षजी करोड़ों का नुकसान उठाने को तैयार है? कहा कि इस लड़ाई में अगर सदस्यों का दस रुपये का नुकसान होगा तो अध्यक्ष का 90 रुपया डूब जाएगा, और जहां तक मेरी जानकारी है, इस मामले में अध्यक्षजी की गणित इतना कमजोर नहीं हैं, कि वह दस रुपये के लिए 90 रुपया गवाना चाहेगें।
इनकी लड़ाई को भले ही जायज ना माना जा रहा हैं, लेकिन इनकी लड़ाई उस समय जायज हो जाती है, जब इन्हें लगने लगा कि उनके नाम पर अध्यक्ष करोड़पति होते जा रहे हैं, तमाम चल और अचल संपत्तियों के मालिक होते जा रहे हैं, उनकी बदौलत महल खड़ा कर रहे हैं, तब इनकी मांग को काफी हद तक जायज माना जा सकता। चूंकि अभी तक अध्यक्ष को अकेले खाने की आदत पड़ी हुई, इस लिए जब मिलजुल खाने की बात आई तो इनके मान-सम्मान को ठेस पहुंचा। यह तिलमिला उठे। कहा भी जाता हैं, कि इंसान सबकुछ बदल देता हैं, लेकिन सिग्नेचर और नेचर नहीं बदल पाता। यही कारण है, कि अध्यक्ष अपना नेचर नहीं बदल पा रहे है। हालांकि इसी नेचर ने इन्हें कुर्सी पर बैठाया, और इसी नेचर ने इन्हें 50 करोड़ के क्लब में शामिल होने का सम्मान दिया, अगर एक नेचर के चलते मात्र चार साल में किसी व्यक्ति को इतना सबकुछ मिल सकता हैं, तो वह व्यक्ति नेचर बदलना भी चाहे तो नहीं बदल सकता, क्यों कि ऐसे लोगों की नजरों में ना तो किसी रिष्तेदार की और ना ही इंसानियत की कोई अहमियत होती है। भले ही चाहें अध्यक्ष को अब तक के सबसे कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है, अगर यह इसमें पास नहीं हुए तो 50 करोड़ में से मिलने वाले 30 करोड़ से हाथ धोना पड़ेगा, वैसे इनका अब तक का रिकार्ड पास होने का ही रहा है। अगर किसी के सामने इतनी बड़ी रकम का आफर हो तो उसे चाहें जो भी कुर्बानी देनी पड़े वह बिना सोचे समझे दे देगा। जब गिल्लम चौधरी को उनके चुनाव खर्चे का दो करोड़ 49 लाख का हिसाब-किताब अध्यक्ष को देने में हिचक हो रही थी, और तकलीफ हो रहा था, तो गिल्लम चौधरी ने यह अवष्य कहा था, कि अध्यक्षजी यह रकम कोई आप खेत या मकान/होटल बेचकर नहीं दे रहे है। अब तक चार सालों में अगर कोई अध्यक्ष से पैसा ले पाया तो उसे आसानी से नहीं मिला, जब भी मिला ब्लैकमेल के जरिए ही मिला, और गिल्लम चौधरी को यह बात अच्छी तरह मालूम हैं, कि अध्यक्ष से कब और किस तरह पैसा निकाला जा सकता है। यही कारण है, कि सदस्य इन्हें अपना हीरो मानते है। कहने का मतलब एक बार फिर सदस्य ही दांव पर लगेंगे। अगर अध्यक्ष नहीं झुके जिसकी संभावना ना के बराबर है, तो 50 करोड़ के इस बजट का उपयोग/दुरुपयोग आने वाले जिले के प्रथम नागरिक करेगे। बागी सदस्यों का कहना है, कि अगर बैठक षून्य नहीं किया गया तो कोर्ट जाया जाएगा। इसी लिए कहा जा रहा है, कि वर्तमान में बागियों का पलड़ा भारी है। अध्यक्ष और एएमए के सामने सिवाय समझौता करने का और कोई रास्ता नहीं बचा है।
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