आखिर क्यों एक परिवार को कोतवाली के गेट पर धरने पर बैठना पड़ा?

आखिर क्यों एक परिवार को कोतवाली के गेट पर धरने पर बैठना पड़ा?

आखिर क्यों एक परिवार को कोतवाली के गेट पर धरने पर बैठना पड़ा?

-क्यों नहीं पुलिस और प्रशासन जमीनी विवाद को सुलझा पर रही?

-क्यों ऐसे परिवार को दर-दर भटकना पड़ रहा, जिसके पास जमीन के सारे अभिलेख हो

-पुलिस क्यों नहीं अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर निस्तारण कर पा रही?

बस्ती। अगर योगीराज में किसी परिवार की महिलाओं को अपनी ही जमीन को बचाने के लिए कोतवाली पर धरना देना पड़े, तो इसे क्या आप योगीजी कर सुशासन मान सकते है। बार-बार कहा जा रहा है, कि क्यों उस परिवार को दर-दर की ठोकरे खानी पड़ रही है, जिसकी जमीन हैं? क्यों और कैसे बैनामाशुदा जमीन किसी और की हो सकती है। दाखिल खारिज करना तहसील का दायित्व है। अगर कोई रात के अंधेरें में कब्जा करने का प्रयास करता है, और बवाल करता है, तो पुलिस को ऐसे लोगों के साथ सख्ती से निपटना चाहिए। अगर वाकई जमीन दूसरे पक्ष की है, और उनके पास अभिलेखीय साक्ष्य हैं, तो उसे भी देखना और दिखाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति कानून अपने हाथ में लेकर शांति व्यवस्था को भंग करने का प्रयास करता है, तो उसके साथ विधिक रुप से कार्रवाई करनी चाहिए। अराजकता का माहौल किसी भी दशा में नहीं होना चाहिए, इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता हैं। शहर के मालवीय रोड पर किरन सर्जिकल के सामने करीब 45 एअर बेशकीमती जमीन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। पिछले एक सप्ताह से एक पक्ष बगैर अभिलेखीय साक्ष्य के स्थानीय नागरिकों, पुलिस, जिला प्रशासन व मीडिया को गुमराह करते हुये उक्त जमीन पर लगातार अपना दावा कर रहा है। जबकि यह बैरिहवां मोहल्ले के रहने प्रकाश चन्द्र श्रीवास्तव और कृष्णचन्द्र श्रीवास्तव की पुश्तैनी जमीन है। सारे अभिलेखीय साक्ष्य उनके पक्ष मे हैं। पूरा प्रकरण पुलिस व जिला प्रशासन की जानकारी मे है। कृष्णचन्द्र श्रीवास्तव के आवेदन पर उक्त जमीन गाटा संख्या 401 की पैमाइश राजस्व व पुलिस टीम की मौजूदगी में हुई। कृष्णचन्द्र श्रीवास्तव के स्वामित्व वाले भूखण्ड जिसका रकबा 45 एअर है उसका सभी की मौजूदगी में चिन्हांकन किया गया। आदेश हुआ कि जमीन पर कृष्ण चन्द्र श्रीवास्तव आदि को कब्जा करने में कोई दखल न दिया जाये। मामला संवेदनशील उस वक्त हुआ जब पुलिस की मौजूदगी में जमीन पर मालिकाना हक रखने वाला पक्ष कब्जा करने पहुचा। घटना 30 मई की है। दोनो पक्ष आमने सामने आ गये। अपनी जमीन पर कब्जा करने पहुचे भूस्वामियों पर दबंगों ने जानलेवा हमला कर दिया। कई लोग चोटिल हो गये। स्कार्पियो वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। पुलिस के सामने किसी प्रकार मामला शांत हुआ लेकिन कृष्ण चन्द्र श्रीवास्तव का कहना है कि एक साजिश के तहत रोड पर लगे खंभों की लाइट बुझा दी गई और 60 से 70 की संख्या में पहुंचे अराजक तत्वों ने उन पर और उनके परिवार पर हमला कर दिया। इंट पत्थर फेंके गये, भागकर किसी तरह लोगों ने जांन बचाया। दूसरे पक्ष के पास कोई अभिलेखीय साक्ष्य मौजूद नही है। इस पक्ष से केवल महिलायें सामने आ रही हैं जिन्हें लोगों की सहानुभूति और संवेदनाओं का पूरा लाभ मिल रहा है। आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि जमीनों पर अवैध कब्जा करने के मामले में महिलाएं यदि मोर्चा संभाल लें तो सामने से सीधी लड़ाई लड़ने की हिम्मत बहुत कम लोगों की होती है। लेकिन अभिलेखीय साक्ष्य को कोई कैसे झुठला सकता है। इस पूरे मामले में पुलिस और जिला प्रशासन को सूझबूझ से काम लेना होगा और पूरी सुरक्षा के साथ अभिलेखीय साक्ष्य के अनुसार जमीन निर्विवाद रूप से वास्तविक स्वामियों के कब्जे में देनी होगी।

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